मित्रो !
हमारे शरीर, मन तथा बुद्धि को ऊर्जा (energy) हमारे द्वारा लिए जाने वाले भोजन (food) से प्राप्त होती है किन्तु हमारे
शरीर के अंग सीधे भोजन से ऊर्जा प्राप्त नहीं कर सकते। इसके अतिरिक्त हमारे द्वारा
लिए जाने वाले भोजन में शरीर को ऊर्जा देने वाले पदार्थ भोजन में एक अंश के रूप में
विद्यमान रहते हैं, भोजन का शेष भाग अनुपयोगी होता
है। जो कुछ हम भोजन के रूप में खाते हैं उसके साथ हमारे आमाशय में दो क्रियाएँ हो
सकती हैं। यदि हमारी पाचन शक्ति ठीक है तब आमाशय में भोजन पर पाचन क्रिया (Digestion)
होती
है और इस क्रिया द्वारा पोषक तत्व और पदार्थ तथा अनुपयोगी तत्व और पदार्थ अलग-अलग
हो जाते हैं। पोषक तत्व और पदार्थ शरीर में अवशोषित कर लिए जाते हैं और अनुपयोगी
एवं त्याज्य तत्व और पदार्थ मल-मूत्र के रूप में शरीर के बाहर निकल जाते हैं। यदि
पाचन शक्ति ठीक नहीं है तब आमाशय में भोजन पचने के बजाय सड़ता (fermentation)
है।
सड़ने की स्थिति में अनेक विषाक्त पदार्थ (toxins) उत्पन्न होते हैं। यह
विषाक्त पदार्थ शरीर में विभिन्न प्रकार की बीमारियां और अवरोध उत्पन्न करते हैं।
ऐसी स्थिति में शरीर नीरोग नहीं रह पाता, शरीर को आवश्यक ऊर्जा
प्राप्त नहीं हो पाती। इसका प्रतिकूल प्रभाव हमारे शरीर के विकास, कार्य क्षमता, मन तथा बुद्धि पर पड़ता
है। शरीर के अंदर हानिकारक गैसें उत्पन हो जाती हैं। दिन भर आलस्य रहता है, किसी कार्य के करने में
मन नहीं लगता। आमाशय में भोजन के सड़ने की क्रिया न हो, इसके लिए आवश्यक है कि
हमारी पाचन शक्ति ठीक रहे।
आयुर्वेद चिकित्सा पद्यति के अनुसार हमारे आमाशय में भोजन पचाने का
कार्य जठराग्नि (digestive fire) करती है। जैसे ही हम
कुछ भी खाते है यह अग्नि प्रदीप्त हो जाती है। यह अग्नि भोजन से पोषक तत्वों और
त्याज्य पदार्थों को अलग कर देती है। इस अग्नि के कमजोर होने पर पाचन क्रिया मंद
पड़ जाती है और भोजन अधपचा रह जाता है जिसमें विषाक्त पदार्थ (toxins)
होते
हैं। यह विषाक्त पदार्थ अनेक बीमारियों को जन्म देते हैं। भोजन करने के बाद पानी
पीने से यह अग्नि कमजोर पड़ जाती है और भोजन पच नहीं पाता। इस कारण खाना खाने के
तुरंत बाद पानी पीना बर्जित
(prohibit) किया गया है।
जठराग्नि मंद या ख़राब होने के लक्षणों में जीभ पर सफेद कोटिंग हो
जाना, भूख का कमजोर होना या भूख न लगना, मल त्याग का नियमित न
होना, मल त्याग के लिए अंदर से जोर लगाने की आवश्यकता का होना,
मल
का पानी में डूब जाना, अस्पष्ट सोच,
सूजन,
गैस,
कब्ज
का होना, सुस्ती रहना, कार्य में अरुचि का
होना, आदि होते हैं।
वैसे तो पूर्णरूपेण स्वस्थ शरीर में भी भोजन से पोषक तत्वों और
पदार्थों का शत-प्रतिशत निष्कर्षण व्यवहारिक रूप में संभव नहीं होता किन्तु
जठराग्नि के अभाव में भोजन से कोई भी पोषक तत्व और पदार्थ प्राप्त नहीं होते।
जठराग्नि से हमें भूख होने का भी आभाष होता है। हमारे शरीर की जठराग्नि मंद न पड़े,
इसके
लिए भोजन में लिए जाने वाले पदार्थों, भोजन करने का समय,
भोजन
करने के समय वातावरण, भोजन करने के समय हमारे शरीर का
आसान या मुद्रा (posture) आदि का भी ध्यान रखना
होता। मंद पडी जठराग्नि को भी भोजन में कुछ विशिष्ट पदार्थ शामिल करके अथवा कुछ
पदार्थों को छोड़ कर अथवा उनकी मात्रा कम करके ठीक किया जा सकता है।
यहॉं यह प्रश्न उत्पन्न
होता है कि यदि खाना खाने के तुरंत पानी नहीं पीना है तब खाना खाने के कितने समय बाद
पानी पिया जाय? इस सम्बन्ध में यह मानना है कि
खाना खाने के एक घंटा और अड़तालीस मिनट बाद खाने पर जठराग्नि का काम समाप्त हो जाता
है अतः आदर्श रूप में खाना खाने के 1 घंटा और 48
मिनट
बाद पानी पिया जाय किन्तु खाना खाने के 1 घंटे बाद भी पानी पिया
जा सकता है। एक प्रश्न यह भी उठता है कि कभी - कभी खाना खाने के दौरान खाना गले या
ग्रास नाली में फंस जाता है, क्या तब भी पानी न पिया
जाय? इस सम्बन्ध में दो बातें करनी होतीं हैं, एक तो पानी अल्प मात्रा
में इतना लिया जाय कि खाना ग्रास नली में आगे बढ़ जाय, दूसरे यह कि ठंडा पानी
न पिया जाय, पानी का तापक्रम सामान्य हो या
सामान्य से कुछ अधिक हो। यदि खाना खाने से पूर्व पानी पीना है तब खाने से लगभग 45
मिनट
पूर्व पानी पिया जाना चाहिए। इतने समय बाद पानी आमाशय में नहीं रहता।
हमारे शरीर, मन तथा बुद्धि को ऊर्जा (energy) हमारे द्वारा लिए जाने वाले भोजन (food) से प्राप्त होती है किन्तु हमारे
शरीर के अंग सीधे भोजन से ऊर्जा प्राप्त नहीं कर सकते। इसके अतिरिक्त हमारे द्वारा
लिए जाने वाले भोजन में शरीर को ऊर्जा देने वाले पदार्थ भोजन में एक अंश के रूप में
विद्यमान रहते हैं, भोजन का शेष भाग अनुपयोगी होता
है। जो कुछ हम भोजन के रूप में खाते हैं उसके साथ हमारे आमाशय में दो क्रियाएँ हो
सकती हैं। यदि हमारी पाचन शक्ति ठीक है तब आमाशय में भोजन पर पाचन क्रिया (Digestion)
होती
है और इस क्रिया द्वारा पोषक तत्व और पदार्थ तथा अनुपयोगी तत्व और पदार्थ अलग-अलग
हो जाते हैं। पोषक तत्व और पदार्थ शरीर में अवशोषित कर लिए जाते हैं और अनुपयोगी
एवं त्याज्य तत्व और पदार्थ मल-मूत्र के रूप में शरीर के बाहर निकल जाते हैं। यदि
पाचन शक्ति ठीक नहीं है तब आमाशय में भोजन पचने के बजाय सड़ता (fermentation)
है।
सड़ने की स्थिति में अनेक विषाक्त पदार्थ (toxins) उत्पन्न होते हैं। यह
विषाक्त पदार्थ शरीर में विभिन्न प्रकार की बीमारियां और अवरोध उत्पन्न करते हैं।
ऐसी स्थिति में शरीर नीरोग नहीं रह पाता, शरीर को आवश्यक ऊर्जा
प्राप्त नहीं हो पाती। इसका प्रतिकूल प्रभाव हमारे शरीर के विकास, कार्य क्षमता, मन तथा बुद्धि पर पड़ता
है। शरीर के अंदर हानिकारक गैसें उत्पन हो जाती हैं। दिन भर आलस्य रहता है, किसी कार्य के करने में
मन नहीं लगता। आमाशय में भोजन के सड़ने की क्रिया न हो, इसके लिए आवश्यक है कि
हमारी पाचन शक्ति ठीक रहे।
आयुर्वेद चिकित्सा पद्यति के अनुसार हमारे आमाशय में भोजन पचाने का
कार्य जठराग्नि (digestive fire) करती है। जैसे ही हम
कुछ भी खाते है यह अग्नि प्रदीप्त हो जाती है। यह अग्नि भोजन से पोषक तत्वों और
त्याज्य पदार्थों को अलग कर देती है। इस अग्नि के कमजोर होने पर पाचन क्रिया मंद
पड़ जाती है और भोजन अधपचा रह जाता है जिसमें विषाक्त पदार्थ (toxins)
होते
हैं। यह विषाक्त पदार्थ अनेक बीमारियों को जन्म देते हैं। भोजन करने के बाद पानी
पीने से यह अग्नि कमजोर पड़ जाती है और भोजन पच नहीं पाता। इस कारण खाना खाने के
तुरंत बाद पानी पीना बर्जित
(prohibit) किया गया है।
जठराग्नि मंद या ख़राब होने के लक्षणों में जीभ पर सफेद कोटिंग हो
जाना, भूख का कमजोर होना या भूख न लगना, मल त्याग का नियमित न
होना, मल त्याग के लिए अंदर से जोर लगाने की आवश्यकता का होना,
मल
का पानी में डूब जाना, अस्पष्ट सोच,
सूजन,
गैस,
कब्ज
का होना, सुस्ती रहना, कार्य में अरुचि का
होना, आदि होते हैं।
वैसे तो पूर्णरूपेण स्वस्थ शरीर में भी भोजन से पोषक तत्वों और
पदार्थों का शत-प्रतिशत निष्कर्षण व्यवहारिक रूप में संभव नहीं होता किन्तु
जठराग्नि के अभाव में भोजन से कोई भी पोषक तत्व और पदार्थ प्राप्त नहीं होते।
जठराग्नि से हमें भूख होने का भी आभाष होता है। हमारे शरीर की जठराग्नि मंद न पड़े,
इसके
लिए भोजन में लिए जाने वाले पदार्थों, भोजन करने का समय,
भोजन
करने के समय वातावरण, भोजन करने के समय हमारे शरीर का
आसान या मुद्रा (posture) आदि का भी ध्यान रखना
होता। मंद पडी जठराग्नि को भी भोजन में कुछ विशिष्ट पदार्थ शामिल करके अथवा कुछ
पदार्थों को छोड़ कर अथवा उनकी मात्रा कम करके ठीक किया जा सकता है।
यहॉं यह प्रश्न उत्पन्न
होता है कि यदि खाना खाने के तुरंत पानी नहीं पीना है तब खाना खाने के कितने समय बाद
पानी पिया जाय? इस सम्बन्ध में यह मानना है कि
खाना खाने के एक घंटा और अड़तालीस मिनट बाद खाने पर जठराग्नि का काम समाप्त हो जाता
है अतः आदर्श रूप में खाना खाने के 1 घंटा और 48
मिनट
बाद पानी पिया जाय किन्तु खाना खाने के 1 घंटे बाद भी पानी पिया
जा सकता है। एक प्रश्न यह भी उठता है कि कभी - कभी खाना खाने के दौरान खाना गले या
ग्रास नाली में फंस जाता है, क्या तब भी पानी न पिया
जाय? इस सम्बन्ध में दो बातें करनी होतीं हैं, एक तो पानी अल्प मात्रा
में इतना लिया जाय कि खाना ग्रास नली में आगे बढ़ जाय, दूसरे यह कि ठंडा पानी
न पिया जाय, पानी का तापक्रम सामान्य हो या
सामान्य से कुछ अधिक हो। यदि खाना खाने से पूर्व पानी पीना है तब खाने से लगभग 45
मिनट
पूर्व पानी पिया जाना चाहिए। इतने समय बाद पानी आमाशय में नहीं रहता।
खाने के तुरंत बाद पानी न पियें
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