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हमारा भोजन सुपाच्य और स्वास्थ्यवर्धक हो, इसके लिए हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए :
हमारा भोजन सुपाच्य और स्वास्थ्यवर्धक हो, इसके लिए हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए :
1. भोजन रूप, रंग और फ्लेवर में अच्छा हो। जिस भोजन के देखने से घृणा या अरुचि होती हो ऐसा भोजन नहीं करना चाहिए। अग्नि को प्रोत्साहित करने के लिए भोजन स्वादिष्ट होना चाहिए।
2. जो भोजन पकाकर खाया जाता है वह ठीक से पका हुआ होना चाहिए, कच्चा या अधिक पका हुआ नहीं होना चाहिए।
3. पकाये हुए भोजन का खाने के समय ताप शरीर के ताप से थोड़ा अधिक होना चाहिए, भोजन न तो ठंडा होना चाहिए और न ही अत्यधिक गर्म।
4. पकाये गए भोजन को सामान्यतः पकाने के तीन घंटे के अन्दर खा लेना चाहिए।
5. बासी भोजन नहीं खाना चाहिए।
6. भोजन में थोड़ी घी की मात्रा शामिल किये जाने पर जठराग्नि तेज होती है।
7. भोजन अधिक मसालेदार या अधिक घी-तेल वाला नहीं होना चाहिए। अधिक मसालेदार या अधिक घी-तेल वाला भोजन जलन पैदा करता है और गैस बढ़ाता है।
8. मौसम में पैदा होने वाले फल और सब्जियों को खाने में शामिल किया जाना चाहिए।
9. रसेदार शाक और दाल भोजन में शामिल किये जाने चाहिए।
10. खाने के साथ या खाने से पहले अदरक, नीबू का जूस लेने से जठराग्नि प्रबल होती है।
11. शाम के खाने के लगभग एक घंटे बाद एक गिलास गरम दूध लेना उपयोगी होता है।
12. भोजन के साथ अत्यधिक ठन्डे पदार्थ आइस क्रीम, कोल्ड कॉफी, कोल्ड ड्रिंक्स, आदि नहीं लेना चाहिए। भोजन के साथ गर्म चाय या कॉफी ली जा सकती है। भोजन के साथ अदरक या सौंफ की चाय भी ली जा सकती है। इससे पाचन शक्ति बढ़ती है।
13. यदि संभव हो तब सप्ताह में एक दिन हल्का भोजन फल, सूप, आदि का करना चाहिए।
14. भोजन तभी करना चाहिए जब खाने का समय हो और भूख लगी हो। अन्यथा भोजन के पचने में कठिनाई होती है।
15. जो पदार्थ भोजन में साथ-साथ लेना वर्जित है, उन्हें साथ-साथ नहीं लेना चाहिए।
16. भोजन सदैव बैठ कर खाया जाना चाहिए। खड़े होकर या चलते-फिरते या कुछ कार्य करते हुए नहीं लिया जाना चाहिए।
17. खाने में खट्टे, नमकीन, चटपटे, कड़ुए, मीठे स्वाद वाले पदार्थों को शामिल किया जाना चाहिए किन्तु पदार्थ अत्यधिक कड़ुए,खट्टे, तीखे या मीठे नहीं होने चाहये। भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद भगवद गीता के अध्याय 17 के श्लोक 8 व 9 में निम्प्रकार कहा है :
(1) अध्याय 17, श्लोक 8 :
आयु: सत्त्ववला रोग्यसुखप्रीतिविवर्धनः।
रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्विकप्रियाः।।
जो भोजन सात्विक व्यक्तियों को प्रिय होता है, वह आयु बढ़ाने वाला, जीवन को शुद्ध करने वाला तथा बल, स्वास्थ्य, सुख तथा तृप्ति करने वाला होता है। ऐसा भोजन रसमय, स्निग्ध, स्वास्थ्यप्रद तथा ह्रदय को भाने वाला होता है।
(2) अध्याय 17, श्लोक 9 :
कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णंरूक्षविदाहि
आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः।।
अत्यधिक तिक्त (कड़ुए), खट्टे, नमकीन, गरम, चटपटे, शुष्क, तथा जलन उत्पन्न करने वाले भोजन रजोगुणी व्यक्तियों को प्रिय होते हैं। ऐसे भोजन दुःख, शोक तथा रोग उत्पन्न करने वाले हैं।
18. भोजन के बाद इलायची के बीज या सौंफ चबाने से पाचन शक्ति बढ़ने के साथ-साथ मुंह भी तरोताजा होता है।
19. खाने के बाद पानी न पीकर कम से कम खाना खाने के एक घंटे बाद पानी पीना चाहिए। अत्यधिक ठंडा पानी (chilled water) नहीं पीना चाहिए। यदि खाने के बीच में पानी पीने की आवश्यकता पड़े तब भोजन को ग्रास नाली में नीचे उतारने के लिए एक या दो घूँट (जैसा आवश्यक हो) गुनगुना पानी या सामान्य तापक्रम वाला पानी पीना चाहिए।
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