मित्रो !
किसी भी सरकार को यह जानना चाहिए कि जब कोई बच्चा भूख से रो रहा होता है तब उसे झुनझुना (खिलौना) थमाकर या सुहावने भविष्य के सुनहरे सपने दिखाकर चुप नहीं कराया जा सकता। ऐसा नहीं है कि बच्चे को खिलोने या सुनहरे सपने अच्छे नहीं लगते। यथार्थ यह है कि भूखे पेट वाले की पहली आवश्यकता भोजन होती है। दूसरे यह कि पेट का दर्द सिर पर पट्टी बाँध देने से ठीक नहीं होता। मेरा तात्पर्य यह है कि सरकारों द्वारा जनता की समस्याओं के अनुरूप समाधान दिया जाना चाहिए। जनता की समस्यायों की अनदेखी कर समस्यायों के असंगत अपने विवेक से प्रस्तावित योजनाओं से, चाहे ऐसी योजनाएं कितनी भी अच्छी क्यों न हों, जनता का भला नहीं होता। तीसरे वर्ग विशेष के हितों को साध लेने और शेष लोगों को भगवान भरोसे छोड़ देने से वर्ग विशेष आगे बढ़ता है, देश या राज्य आगे नहीं बढ़ता। सभी देश या प्रदेश वासियों को साथ लेकर आगे बढ़ने से ही देश या प्रदेश आगे बढ़ता है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रजातंत्र में सरकारों से वही किया जाना अपेक्षित होता है जो जनहित में हो। मेरा यह भी मानना है कि किसी सरकार द्वारा अपनी पीठ थपथपाने की बजाय अपने कार्य का मूल्यांकन किसी विशेषज्ञ निष्पक्ष संस्था से कराना चाहिए। यह संस्था सरकार की केवल उपलब्धियों की ही रिपोर्ट प्रस्तुत न करे, वल्कि सरकार के द्वारा लिए गए निर्णयों से जनता के हितों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों का भी अध्ययन करे। इससे जनता का भी भला होगा और सरकार को जनहित में उचित निर्णय लेने में मदद मिलेगी। संत कबीर जी का निम्नलिखित दोहा अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकता है :
निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय।
बिनु साबुन पानी बिनु, निर्मल करे सुभाय।।
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