Saturday, May 9, 2015

ईश्वर का अस्तित्व नकारना आत्मघाती : Denial of Existence of God is Fatal

मित्रो !
      जो लोग ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं वे उसे सर्वव्यापीसर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ मानने के साथ-साथ वे उसको अपना माता और पिता भी मानते हैं। ईश्वर सर्वव्यापी और सर्वज्ञ होने से, ईश्वर को मानने वालों की मान्यता होती है कि वे जो कुछ भी सही या गलत कर रहे हैं ईश्वर उसको देख रहा है, वे जो कुछ सोच रहे हैं अर्थात उनके मन में जो कुछ है, उसे भी ईश्वर जानता है। ऐसी सोच के कारण उन्हें गलत न करने और सदमार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है। वे निर्जन में भी अकेले होने का अनुभव नहीं करते क्योंकि ईश्वर सर्वव्यापी होने से निर्जन में भी उनके साथ होता है। फिर जब सर्वशक्तिमान मित्र के रूप में जिसके साथ हो उसके डरने का कोई कारण नहीं रह जाता।
      ईश्वर के अस्तित्व को मानने वाले के लिए उसके माता- पिता का उसके सिर से छाया उठ जाने पर भी ईश्वर रुपी माँ-वाप का छाया सदैव बना रहता है। अतः ईश्वर को मानने वाला कभी अनाथ नहीं हो सकता। ईश्वर निष्पक्ष है, सत्य उसे प्रिय है, वह दयालु है और अहिंसा उसे प्रिय हैं, वह काम, क्रोध, मद और लोभ से परे हैं। अतः ईश्वर को मानने वाले उसे प्रसन्न रखने के लिए दया, सत्य, अहिंसा और निष्पक्षता में विस्वास रखते हैं, काम, क्रोध, मद और लोभ को घृणित आचरण मान कर उसके करने से बचते हैं। 
     मेरा विचार है कि ईश्वर को न मानने से उपर्यक्त प्राप्तियां होना संभव नहीं है। विपरीत इसके ईश्वर को न मानने से अराजकता फैलेगी और भय और असुरक्षा की भावनाओं का राज होगा। इन्हीं परिस्थितयों में मेरे अन्दर निम्नलिखित विचार ने जन्म लिया और मैंने यह उपयुक्त समझा कि इसे आपके साथ साझा किया जाय :
    यदि ईश्वर का अस्तित्व स्वीकारने से हमारे अन्दर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, हम निडर बनते हैं, अनाथ होने पर भी सनाथ होने का अनुभव करते हैं, दया, सत्य, अहिंसा और निष्पक्षता जैसे दैवीय गुणों से प्रेम करते हैं तथा काम, क्रोध, मद और लोभ से घृणा करते हैं, तब किसी के द्वारा ईश्वर के अस्तित्व का नाकारा जाना उसका अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है।




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