मित्रो !
जब अर्जुन (परीक्षार्थी ) आप, कर्मों (प्रश्नों) के निर्धारक भी आप और आप ही फल के दाता कृष्ण (परीक्षक) भी हों तब असफल होने का प्रश्न ही नहीं उठता, आवश्यकता केवल अच्छे परिणाम का ढिंढोरा पीटने की ही रह जाती है।
ऐसे व्यक्ति के लिए सफलता उसकी चेरी (दासी) होती है। उसके असफल होने का प्रश्न ही नहीं उठता है। मेरा तो कहना है कि परीक्षा, परीक्षक की आवश्यकता ही क्या है, बस एक आज्ञाकारी ढिंढोरा पीटने वाला अपना होना ही पर्याप्त है।
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