मित्रो !
अपने शरीर के लिए सुख - साधन जुटाना और शरीर को रोग, बुढ़ापा तथा मृत्यु से मुक्ति दिलाना अधिकांश व्यक्तियों के लिए चिन्ता तो कुछ के लिए चिन्तन का विषय बने रहे हैं। कालान्तर में चिन्तन घटा है और चिन्तायें बढ़ीं हैं। विडम्बना यह है कि मनुष्य अब तक यह नहीं समझ पाया है कि चिन्तन की लौ ही चिंताओं को भश्म कर सकतीं हैं।
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