मित्रो !
यदि हम प्राकृतिक संसाधनों का आवश्यकता से अधिक दोहन करते हैं तब ऐसा करके हम दूसरों का हक़ छीनने के साथ - साथ अपनी संतानों का भी हक़ छीनते हैं। हमें ऐसे अमानवीय कृत्य से बचना चाहिये। साथ ही हम जितना प्रकृति से लें उसकी भरपाई पर भी हमें विचार करना चाहिए।
अपनी संतानों का हक़ तो पशु - पक्षी भी नहीं छीनते। हम तो इस धरा पर ईश्वर की सर्वोत्तम रचना हैं। तब हम परिंदों से भी गया - गुजरा आचरण क्यों कर रहे हैं?
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