Saturday, August 22, 2015

सज्जन भी हम, दुर्जन भी हम


मित्रो !

श्रीमद भगवद गीता के अनुसार -
       मनुष्य के अन्दर सतो, रजो और तमो तीन तरह के गुणों वाली प्रकृति होती है। प्रकृति में यह तीनों गुण साम्यावस्था में नहीं रहते हैं। किसी भी समय पर मनुष्य की प्रकृति में जिस गुण की प्रधानता होती है वह उसी गुण से प्रेरित हुआ सात्विकी, राजसी अथवा तामसी प्रकृति का आचरण करता है। 
आचरण पर नियंत्रण कैसे करें?
       सात्विकी भोजन, अच्छी संगति या अच्छे साहित्य के अध्ययन या श्रवण से हमारे अन्दर की प्रकृति का सतो गुण प्रेरित होता है तथा वह प्रकृति के अन्य गुणों रजो और तमो पर बलबती हो जाता है, वहीँ पर तामसी भोजन, कुसंगति और घटिया साहित्य के अध्ययन या श्रवण से हमारे अन्दर की प्रकृति का तमो गुण प्रेरित होकर सतो और रजो गुणों पर बलबती हो जाता है। जिस समय प्रकृति का जो गुण बलबती होता है उसी से प्रेरित हुए हम सात्विकी, राजसी अथवा तामसी प्रकृति का आचरण करते हैं।


No comments: