मित्रो !
किसी महापुरुष की मृत्यु पर उसके प्रति सच्ची श्रद्धांजली उसकी पुण्यात्मा द्वारा छोड़े गए पार्थिव शरीर पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर शीश झुका लेने मात्र से पूरी नहीं होती, सच्ची श्रद्धांजली तो उस जीवात्मा द्वारा जिए गए आदर्शों को आत्मसात कर लेने, उसके बताये मार्ग पर चलने और उसके द्वारा छोड़े गये अधूरे कार्यों को पूरा करने में निहित होती है।
मृत्यु के उपरांत पार्थिव शरीर में ऐसा कुछ भी नहीं रह जाता जिसके प्रति श्रद्धा का भाव उत्पन्न हो सके।
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