मित्रो !
कोई व्यक्ति उसी वस्तु को पहचान सकता है जिसका चित्र मूर्त रूप में या विचारों में उसके मस्तिष्क में पहले से हो। ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास न रखने वाले व्यक्ति के मस्तिष्क में ईश्वर किसी रूप में भी नहीं होता अतः उसे ईश्वर मिल जाने पर भी वह उसे पहचान नहीं सकता।
आस्तिक के लिए ईश्वर सर्वत्र विद्यमान होता है, नास्तिक का मानना होता है कि ईश्वर है ही नहीं। जो वस्तु है ही नहीं उसका देखना और ढूंढना कैसा।
यह भी कि किसी वस्तु की तलाश तभी की जा सकती है जब दो जानकारियां उपलब्ध हों, पहली यह कि खोज करने वाला उस वस्तु के स्वरुप को जानता हो, दूसरी यह कि तलाश करने वाले को यह ज्ञात हो कि वह वस्तु कहाँ मिलेगी। यह बात ईश्वर दर्शन के मामले में भी लागू होती है।
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