मित्रो !
ऐश्वर्यपूर्ण दीर्घ जीवन के लिए अमृत की खोज में मनुष्य नभ, जल और थल का मंथन किये जा रहा है। वह भूल गया है कि समुद्र के मंथन पर विष और अमृत दोनों निकले थे। आज पृथ्वी के मंथन पर भी विनाशकारी विष और जीवनदायी अमृत दोनों ही निकल रहे हैं किन्तु मनुष्यों के बीच विष को धारण करने वाला जटाधारी शिव कोई नहीं है।
ऐसा होने पर सबल दीर्घायु के लिए अमृत पान करेंगे। विनाशकारी विष को धारण करने वाला कोई नहीं होगा, यह वसुंधरा विषाक्त हो जाएगी। धीरे-धीरे पृथ्वी की उर्वरता शक्ति में भारी गिरावट आएगी। नदियों में जल कम हो जायेगा। मौसम अनियमित हो जाएंगे, जल स्तर नीचे चला जायेगा। भू कम्पनों की संख्या बढ़ जाएगी, सुनामी आने की संख्या भी बढ़ जाएगी। पृथ्वी पर वर्षा क्षेत्रों में भी बदलाव होगा, कृषि उपज पर निर्भर प्राणी बेघर हो जाएंगे। वन क्षेत्रों का दायरा सिमट जायेगा, मौसमों के बिगड़ने से वनो में दावानल की घटनाओं में बृद्धि होगी जिससे वनों और वन प्राणियों का विनाश होगा। आने वाली पीढ़ियों की शारीरिक बनावट और स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव हो सकता है। ऐसे ही अन्य भयानक परिणाम भी हो सकते हैं।
मेरा विचार है कि यदि हम मानवता का भला चाहते हैं तब हम प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ न करें। प्रकृति से मित्रता करना सीखें और पृथ्वी पर अधिक बोझ न डालें।
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