मित्रो !
यदि तुम्हारी अंतर्रात्मा कहती है कि तुम मुझे मेरे गुनाहों की सजा दे रहे हो तब तुम ऐसा करके मुझ पर उपकार कर रहे हो। किन्तु यदि तुम्हारी अन्तर्रात्मा कहती है कि तुम मुझे अकारण सजा दे रहे हो तब तुम अपने गुनाहों का बोझ बढ़ा रहे हो।
एक न्यायाधीश को चाहिए कि वह किसी को सजा देकर उस पर उपकार करे न कि किसी को सजा देकर अपने गुनाहों का बोझ बढ़ाए। एक वास्तविक अपराधी को सजा देकर एक न्यायाधीश अपराधी के गुनाहों का बोझ कम करके उस पर उपकार करता है वहीँ पर निर्दोष को दण्डित करके स्वयं गुनहगार बन जाता है।
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