मित्रो !
मेरे विचार से सभी धर्म इंसानियत के सिद्धांतों के पोषक हैं। ऐसी स्थिति में किसी भी धर्म में इंसानियत के सिद्धांतों के विपरीत कोई निर्देश या उपदेश उस धर्म का हिस्सा नहीं हो सकते। यदि हम ऐसे विपरीत निर्देशों को धर्म का भाग मानते हैं तब ऐसा मानने का कारण हमारी अज्ञानता है।
सभी धर्मों में इंसानियत को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी है। इस कारण हमें धर्म के किसी ऐसे उपदेश या निर्देश, जो प्रथम दृष्टया इंसानियत के सिद्धांत के विरुद्ध लगता हो, की व्याख्या इंसानियत के सिद्धांतों के अधीन रहकर या प्रतिबंधित मानकर करनी चाहिए। दुनियां के सभी लोगों को जोड़ने और विश्व शान्ति स्थापित करने का यही एक रास्ता है।
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