मित्रो !
यदि बुढ़ापे और मृत्यु को टालने की बूटियां या युक्तियाँ मनुष्य के हाथ लग जांय तब प्रत्येक मनुष्य सदैव जवान ही रहना चाहेगा। ऐसे में जनसँख्या लगातार बढ़ती रहने पर पृथ्वी पर जगह नहीं रह जाएगी। मनुष्य स्वर्ग की चाहत में पृथ्वी को ही नर्क बना बैठेगा। अगर किसी और गृह पर जीवन हुआ और मनुष्य ऐसे गृह पर गया तब कुछ समय में ही वहां पर भी ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।
उपर्युक्त परिस्थितियों में मनुष्य यह सोचने को विवश हो जाएगा कि वह मृत्यु और बुढ़ापे की हत्या का अपराधी है, मृत्यु और बुढ़ापा रहित जीवन से बुढ़ापे और जन्म-मृत्यु के बंधनों में बंधा जीवन ही श्रेयस्कर है। अंत में मनुष्य या तो स्वयं ऐसी बूटियां और युक्तियाँ नष्ट कर देगा या फिर ईश्वर से प्रार्थना करेगा कि वह उसे ऐसी बूटियों और युक्तियों से मुक्ति दिलाये।
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