Peace, Co-existence, Universal Approach Towards Religion, Life, GOD, Prayer, Truth, Practical Life, etc.
Saturday, October 20, 2018
चिंता : WORRY
मित्रो !
कहते हैं:
1. चिंता चिता समान
है।
2. जीते को चिंता
खाती है, मुर्दे
को चिता जलाती
है।
It is said:
1. Worry is similar to pyre;
2. Worry eats the living being and pyre burns the dead.
प्रश्न यह है :
Question is:
चिंताओं से छुटकारा
कैसे पाएं : How to get rid of worries?
मेरा मानना है कि
चिंताओं पर केवल
चिंतन से विजय
पायी जा सकती
है।
I believe that worry can only be won over by contemplation.
इससे पहले कि
चिंता आपको खाये,
आप चिंता को
मार डालो।
Before, the worry kills you, you kill the worry.
Monday, October 8, 2018
Friday, September 7, 2018
शून्य दर पूर्ति : Zero rated supply
मित्रो!
एकीकृत माल और सेवा
कर अधिनियम की धारा 16 अथवा जीएसटी कानूनों में अन्य स्थानों पर प्रयुक्त अथवा संदर्भित पद "शून्य दर पूर्ति"
(Zero rated supply) का प्रयोग भ्रम की स्थिति उत्पन्न करता है। इसका सामान्यतः समझी
जाने वाली "Zero rated supply" से कोई सम्बन्ध नहीं है और न ही इसका सम्बन्ध
कर की दर अथवा सप्लाई की कर देयता से है।
पोस्ट से अधिक
जाने ---
एकीकृत माल और
सेवा कर अधिनियम
की धारा 16
की उपधारा (1) में
पद "शून्य दर पूर्ति"
(Zero rated supply) को निम्न प्रकार परिभाषित
किया गया है:
16. (1) ‘‘शून्य दर पूर्ति’’ से माल या सेवाओं या
दोनों की निम्नलिखित कराधेय पूर्तियां अभिप्रेत हैं, अर्थात् :--
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(क)
माल या सेवा या दोनों का निर्यात ; या
(ख)
किसी विशेष आर्थिक जोन विकासकर्ता या किसी विशेष आर्थिक जोन
इकाई को माल या सेवाएं या दोनों की पूर्ति।
इस धारा की उपधाराएं (2) व (3)
निम्नवत हैं:
|
(2) केंद्रीय माल और सेवा कर अधिनियम की धारा 17 की उपधारा (5) के उपबंधों के अध्यधीन शून्य दर पूर्तियां करने के लिए इनपुट कर का प्रत्यय इस बात के होते हुए
भी प्राप्त किया जा सकेगा कि ऐसी पूर्ति कोई छूट प्राप्त पूर्ति हो सकेगी ।
(3) माल या सेवा या दोनों का निर्यात करने वाला रजिस्ट्रीकृत कोई व्यक्ति केंद्रीय माल और सेवा कर अधिनियम की धारा 54 और उसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अनुसार निम्नलिखित विकल्पों में किसी के अधीन प्रतिदाय का दावा करने का पात्र होगा, अर्थात् :--
(क)
वह एकीकृत कर के संदाय बिना ऐसी शर्तों, रक्षापायों और प्रक्रिया के अध्यधीन, जो विहित किए जाएं, बंधपत्र या वचनबंध पत्र के अधीन माल या सेवाओं या दोनों का निर्यात कर सकेगा और अनुपयोजित इनपुट कर प्रत्यय के प्रतिदाय का दावा कर सकेगा ;
या
(ख)
वह पूर्ति किए गए माल या सेवाओं या दोनों पर एकीकृत कर के संदाय पर ऐसी शर्तों, रक्षापायों और प्रक्रिया के अध्यधीन, जो विहित किए जाएं, माल या सेवा या दोनों का निर्यात कर सकेगा और ऐसे संदत्त
कर के प्रतिदाय का दावा कर सकेगा ।
अगर हम पद
"शून्य दर पूर्ति"
(Zero rated supply) के स्थान पर पद
"विशिष्ट श्रेणी पूर्ति"
(Special category supply) सभी जगह रख दें तो हम देखते हैं कि कर देयता या इनपुट टैक्स क्रेडिट या बापसी
(refund) सम्बन्धी प्राविधानों में कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जाहिर है कि पद
"शून्य दर पूर्ति"
का कोई कर देयता या इनपुट टैक्स क्रेडिट या बापसी के प्राविधानों पर कोई प्रभाव नहीं है। पद
"शून्य दर पूर्ति"
का प्रयोग दो प्रकार की पूर्तियों को संदर्भित करने मात्र के लिए किया गया है।
उपधारा (2) में शब्दों
"ऐसी पूर्ति कोई छूट प्राप्त पूर्ति हो सकेगी।"
के प्रयोग से स्पष्ट है कि "शून्य दर पूर्ति"
के छूट प्राप्त पूर्ति होने की स्थिति में
भी इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ अनुमन्य होगा। इसका आशय यह हुआ कि शून्य दर पूर्ति कर योग्य और कर मुक्त दोनों प्रकार की हो सकती है। यदि शून्य दर पूर्ति का आशय ऐसी सप्लाई से रहा होता जिस पर कर की दर शून्य रही होती तब सभी शून्य दर पूर्तियाँ कर मुक्त रही होतीं क्योंकि केंद्रीय माल और सेवा कर अधिनियम की धारा 2 के क्लाज (47)
में शून्य दर आकर्षित करने वाली पूर्तियों को
"छूट प्राप्त प्रदाय"
(exempt supply) में शामिल किया गया है।
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Tuesday, September 4, 2018
Friday, August 10, 2018
Persons Concerned With GST: Pay Attention Please
मित्रो!
पार्लियामेंट द्वारा अंग्रेजी और हिंदी भाषाओँ में पारित अधिनियमों और हिंदी भाषी राज्यों में विधायिकाओं द्वारा हिंदी में पारित अधिनियमों तथा उनके अंग्रेजी में प्रकाशित अनुवाद में "छूट प्राप्त प्रदाय" (exempt supply) की परिभाषा में महत्वपूर्ण भिन्नता है।
अधिनियमों के हिंदी पाठ में "छूट प्राप्त प्रदाय" की परिभाषा निम्नप्रकार दी गयी है:
"(47) "छूट प्राप्त
प्रदाय" से ऐसे किसी माल या सेवाओं या दोनों का प्रदाय अभिप्रेत है, जिसकी,
एकीकृत माल और सेवा कर अधिनियम की धारा 6 के अधीन कर की दर शून्य हो या जिसे धारा
11 के अधीन कर से पूरी छूट दी जा सकेगी और इसके अंतर्गत गैर-कराधेय प्रदाय भी है;"
इस परिभाषा में तीन प्रकार की सप्लाई शामिल की गयीं हैं :-
1. सप्लाई जिसकी एकीकृत माल और सेवा कर अधिनियम की धारा 6 में कर की दर शून्य हो; अथवा
2. जिस पर धारा 11 में कर से पूरी छूट दी जा सकती हो; अथवा
3. जो गैर-कराधेय सप्लाई हो।
यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि एकीकृत माल और सेवा कर अधिनियम की धारा 6 में कर की दर निर्धारित करने का प्राविधान नहीं है। दूसरे एकीकृत माल और सेवा कर अधिनियम की धारा 11 में कर से छूट देने का प्राविधान नहीं है। केंद्रीय माल और सेवा कर अधिनियम की धारा 11 में कर से छूट देने का प्राविधान है किन्तु परिभाषा में इस अधिनियम की धारा 11 का उल्लेख नहीं है। शब्द
"इस अधिनियम की धारा 11" (under section 11 of this Act) का प्रयोग आवश्यक था। ऐसा न होने से परिभाषा में एकीकृत माल और सेवा कर अधिनियम की धारा 11 समझी जाएगी।
केंद्रीय माल और सेवा कर अधिनियम के अंग्रेजी संस्करण The Central Goods and Services Tax Act, 2017 की धारा 2 के क्लाज (47)
में पद "exempt supply" की परिभाषा निम्न प्रकार दी गयी है:-
(47) “exempt supply” means supply of any goods or services or both
which attracts nil rate of tax or which may be wholly exempt from tax under section
11, or under section 6 of the Integrated Goods and Services Tax Act, and
includes non-taxable supply;
इस परिभाषा में 4 तरह की सप्लाई कर मुक्त सप्लाई होने की बात कही गयी है:
1. सप्लाई जो शून्य (nil) कर की दर आकर्षित करती है; अथवा
2. जो धारा 11 के अंतर्गत कर से पूरी तरह से मुक्त है ; अथवा
3. जो एकीकृत माल और सेवा कर अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत कर से पूरी तरह मुक्त है ; अथवा
4. जो गैर- कराधेय प्रदाय (
non-taxable supply) है;
इस परिभाषा में शब्दों "may be wholly exempt from tax" का प्रयोग उचित नहीं है। कोई भी सप्लाई जनहित में कर से पूर्णतः मुक्त की जा सकती है। मेरा विचार है कि इन शब्दों के स्थान पर "is wholly exempt from tax" का प्रयोग उचित रूप से किया जा सकता था। अन्यथा भी प्रथम उपवाक्य (First sub-clause) में शब्द "attracts" प्रयोग किया गया है। इसे देखते हुए भी "may be wholly exempt from tax" के स्थान पर शब्दों
"is wholly exempt from tax" का प्रयोग उचित रहा होता।
हिंदी और अंग्रेजी, दोनों भाषाओँ में दी गयी परिभाषाओं के अवलोकन से स्पष्ट है कि उनमें महत्वपूर्ण अंतर है। हिंदी भाषा में परिभाषा अन्यथा भी अनुचित और प्राविधानों के विरुद्ध है।
जीएसटी कानून बनाने के बाद लगभग सवा वर्ष से अधिक का समय गुजर गया है अभी तक जीएसटी काउन्सिल, सीबीआईसी, और कानूनों का ड्राफ्ट तैयार करने वाले लोगों का ध्यान इस ओर नहीं गया है। कुछ अन्य प्राविधानों में भी महत्वपूर्ण असंगतियां विद्यमान हैं।
केंद्रीय माल और सेवा कर अधिनियम की धारा 17 जिसमें ऐसे माल और सेवाओं या परिस्थितिओं का उल्लेख है जिनमें इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलना है अथवा आंशिक रूप में मिलना है। ध्यान देने योग्य है कि जहां माल और सेवाओं का आंशिक रूप से प्रयोग करयोग्य सप्लाई, जीरो रेटेड सलाई को सम्मिलित करते हुए, करने में और आंशिक रूप से कर मुक्त सप्लाई करने में किया जाता है वहां पर आंशिक इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलने का प्राविधान तो किया गया है किन्तु जहां माल और सेवाओं का प्रयोग पूर्णरूपेण करमुक्त सप्लाई करने में ही किया जाता है उसमे कोई इनपुट टैक्स क्रेडिट न मिलने का प्राविधान नहीं किया गया है।
मेरा विचार है कि कानून के प्राविधानों का कानून का ड्राफ्ट तैयार करने वाले व्यक्तियों द्वारा लगातार अध्यन किया जाता रहना चाहिए। इससे उन्हें इसकी खामियों का पता चलेगा और कानून को बेहतर बनाया जा सकेगा।
अस्वीकरण: यहाँ पर व्यक्त किये गए विचार मेरे निजी विचार हैं। विचार शैक्षिक चर्चा हेतु प्रस्तुत किये गए हैं। यदि कोई व्यक्ति इनके आधार पर कार्यवाही करता है और ऐसा करने पर उसे किसी प्रकार की क्षति पंहुचती है तब इसके लिए मेरा कोई दायित्व नहीं होगा।
Thursday, August 2, 2018
आत्मा की आवाज सुनो : LISTEN TO YOUR SOUL
मित्रो !
मान लीजिये कि आपका वयस्क पुत्र आपके द्वारा
किये गए मार्गदर्शन को बार-बार नजरअंदाज कर गलत निर्णय लेता है। ऐसी स्थिति में आप
उसका मार्गदर्शन किया जाना व्यर्थ मानकर उसके द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों के प्रति
उदासीन (unconcerned) हो जाते हैं और उसका मार्गदर्शन करना बंद कर देते हैं। आपके सामने
गलत निर्णय लेने पर भी आप उसको नहीं रोकते। यही सब कुछ आत्मा और बुद्धि के साथ होता
है।
आत्मा बुद्धि से श्रेष्ठ होती है। जब आत्मा द्वारा
बुद्धि का उचित मार्गदर्शन किये जाने के बाद भी, बुद्धि मार्गदर्शन को नजरअंदाज कर
आत्मा के परामर्श के विपरीत निर्णय लेकर गलत कार्य करने की प्रवृत्ति अपना लेती है
तब आत्मा उदासीन (unconcerned) रहकर बुद्धि को परामर्श देना बंद कर देती है। ऐसी स्थिति
में आत्मा मूक दर्शक बन जाती है। यह स्थिति आत्मा की सोई हुयी स्थिति के समान होती
है।
Suppose when you see your adult son taking
any wrong decision in any matter, you guide him but your son, does not pay heed
to your advice and takes wrong decision. This happens times and again. After
few instances, you stop advising him thinking that your advice is of no use and
thereafter, you become unconcerned towards decisions that are made by him. Then
you become a silent spectator and your son continues to take right or wrong
decisions independently. Same thing happens with the intellect and the soul. When
the intellect, under influence of desires, ignores the guidance provided by the
soul, the soul becomes unconcerned silent spectator and the intellect (the brain)
continues to take, independently, right or wrong decisions.
मानव शरीर
में ईश्वर अंश
के रूप में
विद्यमान आत्मा मनुष्य का
मार्गदर्शन करती है।
उसकी राय और
मार्गदर्शन कभी गलत
नहीं होते। वह
कुछ गलत करने
के लिए प्रेरित
भी नहीं
करती अपितु वह गलत निर्णय लेने से मनुष्य को रोकती है।
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