मित्रो!
हम भारत
के निवासी और भारत के बाहर रहने वाले अधिकांश अनिवासी भारतीय स्वामी
विवेका नन्द जी
और उनके विचारों
का बहुत सम्मान
करते हैं। स्वामी
जी मानव सेवा को भक्ति (devotion) और मुक्ति (Salvation) से भी उच्च स्थान देते थे।
विदेशों में भी जो लोग स्वामी के बारे में ज्ञान रखते हैं वह भी स्वामी जी का नाम आदर
से लेते हैं। स्वामी जी द्वारा कहे गए कुछ शब्द मैं यहां नीचे उद्धृत कर रहा हूँ:─
"Who cares for your bhakti and mukti? Who
cares what your scriptures say? I will go into a thousand hells cheerfully if I
can rouse my countrymen, immersed in tamas, to stand on their own feet and be
men inspired with the spirit of karma-yoga. I am a follower only of he or she
who serves and helps others without caring for his own bhakti and mukti."
Meanings:
आपकी भक्ति
और मुक्ति की
परवाह कौन करता
है? आपके शास्त्र
क्या कहते हैं?
की परवाह कौन करता
है। मैं
हज़ारों नरकों में प्रसन्नतापूर्वक
जाऊंगा यदि मैं
अँधेरे में डूबे
हुए अपने देशवासियों
को उनके अपने
पैरों पर खड़ा
होने के लिए
जाग्रत कर सका
और उन्हें कर्म-योग की
भावना से प्रेरित
कर सका। मैं
केवल उस स्त्री
या पुरुष का
अनुयायी हूँ जो
अपनी भक्ति और
मुक्ति की परवाह
किए बिना दूसरों
की सेवा और सहायता करता
है!
यहां पर
स्वामी विवेका नन्द जी
भारत में रहने
वाले किसी धर्म-विशेष के लोगों
की बात नहीं
करते, वे सभी
भारत वासियों की
बात करते हैं,
किसी धर्म विशेष
का उल्लेख किये
बिना वे अपने
को हर उस
स्त्री या पुरुष
का अनुयायी मानते
हैं जो दूसरों
की सेवा या
सहायता करता है।
Here
Swami Viveka Nand ji does not talk about the people who reside in India and who
follow any particular religion, he talks about all Indians, without mentioning
any particular religion. Irrespective of any religion, caste or sex, he admits
himself to be follower of every man or woman who serves and helps others.
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