मित्रो!
जहाँ कुछ लोग जश्न मना रहे हों और कुछ अन्य लोग
अपनी भूख मिटाने के लिए संघर्ष कर रहे हों तब सब मिल कर 'हम सब एक हैं' नारा कैसे बुलंद
कर सकते हैं? आर्थिक एकता के बिना राष्ट्रीय एकता की सोच एक कल्पना मात्र है।
अगर हम चाहते हैं कि सभी देशवासी एक साथ राष्ट्रीय
एकता का नारा बुलंद करें तब हमें, धर्मों और जातियों के आधार पर भेद-भाव किये बिना,
उनके लिए जो विकास की दौड़ में पिछड़ गए हैं, ऐसी नीतियां और योजनाएं बनाकर क्रियान्वित
करनी होंगी जिनसे उनकी न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी हों और वे निडर होकर स्वछन्द वातावरण
में सांस ले सकें।
विभिन्न प्रकार के कार्यों को करने के आधार पर
ऊँच-नीच का भेद-भाव हमारी प्रगति और एकता में
बाधक है। हम जानते हैं कि कोई कर्म छोटा-बड़ा
नहीं होता। अतः कर्म के आधार पर मनुष्यों के
बीच भेद-भाव किया जाना अनुचित है। जरूरत इस बात की है कि अगर कोई कार्य घृणित कार्य
नहीं है तब न तो कार्य से घृणा की जाय और न ही कार्य करने वाले से। आवश्यकता इस बात की है कि मानवीय स्तर पर तुच्छ
कार्य करने वाले को वही सम्मान दिया जाय जो सम्मान बड़ा कार्य करने वाला पाता है।
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