Wednesday, May 13, 2015

पहले 100 प्रतिशत जियें फिर 100 वर्ष के जीवन की कामना करें


मित्रो ! 

जीवन में जितने समय में हम कोई शरीर निर्वाह, विश्राम, मनोविनोद, आदि का अथवा कोई अन्य कार्य नहीं करते, उस समय में हम केवल समय गुजारते हैं, जीवन नहीं जीते। जो जिया न जाय वह जीवन कैसे। समय गुजारना जीवन जीना नहीं है। मेरा मानना है कि कोई व्यक्ति अपनी जीवन अवधि का जितना समय निष्क्रिय रह कर गुजारता है वह अपनी जीवन की अवधि को उस सीमा तक कम कर लेता है। 
उदहारण के लिए यहाँ पर हम मान लेते हैं कि किसी व्यक्ति की उम्र दो दिन (48 घंटे) की है। इस समय को हम 8-8 घंटे के अंतरालों में बाँट लेते हैं। मान लेते हैं कि व्यक्ति ने इन 48 घंटों में से 8 से 16 घंटे और 24 से 32 घंटे के मध्य का समय निष्क्रिय रहकर गुजारा। नीचे देखते हैं कि क्या परिणाम प्राप्त होता है। 
दो दिन (48 घंटे) की जीवन अवधि
0--------8--------16--------24--------32--------40---------48 
अवधि जिसमें जीवन निष्क्रिय रहा गया 8 से 16 और 24 से 32
जिए गए जीवन के समय अंतराल 
0--------8 16--------24 32--------40 40--------48
कुल जिया गया जीवन 
0--------8----------16--------24--------32
यहां पर जीवन अवधि 48 घंटे के सापेक्ष जीवन केवल 32 घंटे ही जिया गया है। 16 घंटे की जीवन अवधि का हमारे लिए कोई अर्थ नहीं रहा। इसका होना या न होना हमारे लिए कोई अर्थ नहीं रखता। 
ईशावास्योपनिषद् में कहा गया है :
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः। एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे॥
अर्थात्- श्रेष्ठ कर्म करते हुए सौ वर्ष तक जीवित रहने की इच्छा करनी चाहिए। ऐसा करते रहने से मनुष्य कर्म बन्धन से मुक्त हो जाता है।
इन्हीं विचारों ने मुझे निम्नलिखित विचार आपके सामने रखने के लिए प्रेरित किया :
हमारे बीच अधिकाँश लोग चाहते हैं कि उनकी जीवन अवधि अधिक और अधिक लम्बी हो, एक-दूसरे के दीर्घायु होने की कामना भी करते हैं किन्तु विडम्बना यह है कि हमें जो जीवन अवधि मिली है उसका एक बड़ा भाग हम निष्क्रिय रह कर बिना जिये ही गुजार देते हैं। हमें चाहिए कि हम पहले 100 प्रतिशत जियें फिर 100 वर्ष के जीवन की कामना करें।


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