Thursday, May 21, 2015

प्रजातन्त्र


मित्रो !

हम सब जानते हैं कि प्रजातांत्रिक तरीके से गठित सरकार लोगों की, लोगों के द्वारा और लोगों के लिए होती है। हमारी वर्तमान पद्यति में जो नेता बनना चाहता है वह जनता के पास जाकर उसे नेता बनाने के लिए जनता से वोट माँगता है, हमारी जनता किसी व्यक्ति से यह नहीं कहती कि वह उनका नेतृत्व करे। नेता बनने के इच्छुक अधिकाँश लोग जनता से वोट पाने के लिए अनेक प्रकार के नैतिक और अनैतिक तरीके अपनाते हैं। झूठे - सच्चे वादे करते हैं। जब अधिक वोट पाकर नेता बन जाते हैं तब वह जनता के लिए कानून बनाते हैं। विडम्बना यह होती है कि अधिकाँश नेता स्वयं के द्वारा बनाये गए कानूनों से अपने को ऊपर समझते हैं। यही नहीं उनके निचले स्तर के छुटभैये नेता भी अपने को कानून से परे समझने लगते हैं। अधिकाँश नेता ऊपर से प्रकट होते हैं अतः वे अपने क्षेत्र की जमीनी हकीकत से भी अनभिज्ञ होते हैं।
हम सब तो पढ़े-लिखे हैं। अगर अनपढ़ कबीलों को ही ले लें तब हम पाएंगे कबीले के लोग अपना नेता कबीले में से चुनते हैं, किसी बाहरी व्यक्ति को कबीले का नेता नहीं बनाते। कोई बाहरी व्यक्ति किसी कबीले का तभी नेता बन सकता है जब वह कबीले को जीतकर अपने अधीन कर ले। मेरी इसी सोच ने निम्नप्रकार अपने विचार व्यक्त करने के लिए मुझे प्रेरित किया है :
जब किसी क्षेत्र की जनता के बीच से आने वाला कोई व्यक्ति उस जनता का हमदर्द और सेवक बनकर उस जनता के दिलों पर राज करने लगेगा और चुनाव आने पर जनता उसके पास जाकर कहेगी कि वह उनका नेतृत्व करे तब यह प्रजातन्त्र होगा। मेरे विचार से छल, बल, प्रपंच अथवा लोक लुभावने वादों का सहारा लेकर जनता पर अपने को थोपने वाले नेता प्रजातांत्रिक तरीके से चुने गए नेता नहीं कहे जा सकते।


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