Thursday, May 21, 2015

कहीं हम इस ओर तो नहीं बढ़ रहे


इस पोस्ट को पब्लिश करने के पीछे मेरा उद्देश्य यह सुझाव देने का है कि हमें अपनी गरिमामयी संस्कृति बनाये रखने के लिए लगातार आत्मनिरीक्षण (Introspection) करते रहने की आवश्यकता है। 
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मित्रो !

मैं एक छोटा सा वृतांत आपके साथ साझा करना चाहता हूँ। मेरे दो पुत्रों में से बड़ा पुत्र मेरे साथ रहता है, छोटा पुत्र एक पाश्चात्य देश में अनिवासी भारतीय है। मेरा छोटा पुत्र नियमित रूप से प्रत्येक शनिवार को इंटरनेट पर चैट करने के अतिरिक्त सप्ताह के अन्य दिनों में अपनी माँ या मुझसे फोन पर नियमित रूप से प्रत्येक दिन कुशल क्षेम पूछता है। प्रत्येक वर्ष आकर कम से कम 15 दिन हम लोगों के साथ रहता है। जब वह भारत में आता है तब माँ के लिए, मेरे लिए, अपने बड़े भाई के लिए, मेरे बड़े भाई और भाभी जी, जो दूसरे शहर में निवास करते हैं, के लिए, विवाहित बहिन जो अपने परिवार के साथ अलग रहती है तथा उसके पति और बच्चों के लिए परिधान तथा उपयोग की अन्य वस्तुयें लाता है। वह स्वयं मार्किट जाकर यह सब सामान खरीदता है। अविवाहित है। यद्यपि हम लोग उसे डांटते रहते हैं कि वह उतना अधिक सामान क्यों लाता है क्योंकि इतनी आवश्यकता नहीं रहती है। परिवार की दैनिक आवश्यकतायें भी वही देखता है। इसका एक कारण और भी है, बड़ा बेटा जो साथ रहता है वही कोई कमी नहीं होने देता। माँ-वाप के प्रति उसकी सेवाओं को कम करके नहीं आँका जा सकता। 

इस वर्ष फरबरी 2015 में वह भारत आया था। आदत के मुताविक पूर्व की भांति ही सामान लाया था। उसने एक बड़ी रोचक घटना हम लोगों को सुनाई। उसने बताया कि जब वह फैशन स्टोर से गारमेंट्स ले रहा था उसी समय वहाँ एक पढ़ी-लिखी उसी देश की निवासी एक बुजुर्ग महिला भी कुछ खरीदने वहाँ पर आ गयी। उसने मेरे बेटे से प्रश्न किया कि क्या वह अपनी महिला मित्र (Girl friend) को गिफ्ट करने के लिए परिधान खरीद रहा था। मेरे बेटे ने बताया कि उसकी कोई महिला मित्र या पत्नी नहीं है। वह अपने नेटिव प्लेस आ रहा था। वह परिधान आदि अपने माता-पिता, भाई, बहिन और उसके बच्चों के लिए खरीद रहा था। यह सुनकर वह बुजुर्ग महिला आश्चर्यचकित रह गयी। उसके मुँह से अचानक शब्द निकले "How lucky those parents are !". फिर उसने पूछा कि क्या वस्त्रों के चयन में वह सहायता कर सकती थी। इस पर मेरे बेटे ने उसे धन्यवाद कहकर मना कर दिया। इसके बाद उस महिला ने अपनी आप बीती निम्नप्रकार सुनाई। 

उसने बताया कि उसका अपना एक बेटा है जो उसी शहर में उससे अलग रहता है। उसका अपना परिवार और बच्चे हैं। वह अपने काम में व्यस्त रहता है। इस बजह से उससे कभी बात नहीं होती। उसी दिन वह दो वर्ष बाद उससे मिलने आया था। घर पर 15 मिनट रुका फिर उसे एक रेस्टोरेंट ले जाकर खाना दिलवाया और उसे घर छोड़ कर चला गया। आगे उस महिला ने कहा कि वह अपने बेटे की शुक्रगुजार थी कि उसने अपनी व्यस्तता से उसके लिए समय निकाला और उसे अच्छा खाना दिलवाया। उसके बाद उस महिला ने एक लम्बी सांस लेकर कहा "Man ! You are lucky."। उसके बाद मेरे बेटे ने महिला से कहा कि वह उसकी माँ के समान थी, यदि वह अनुमति देती तब वह उनको उनकी पसंद का परिधान उपहार में देना चाहता था। इस पर उस महिला ने धन्यवाद कहकर मना कर दिया। उसने जाते हुए कहा "I am sure, you are from India." मेरे बेटे ने उत्तर दिया "yes, madame, I am from India." जाते समय बेटे ने उनको अभिवादन किया, उस महिला ने जबाव में कहा "God bless you my son !".

इस छोटी सी घटना ने मुझे अपने देश में आ रहे सांस्कृतिक बदलाव पर सोचने के लिए विवश किया। इसी कारण यह पोस्ट मैं प्रकाशित कर रहा हूँ। मैं आशा करता हूँ कि मेरे मित्र इस पर जरूर चिंतन करेंगे। देश और शहर का नाम देना मैंने उचित नहीं समझा क्योंकि किसी देश की संस्कृति पर मेरे द्वारा टिप्पणी करने का कोई औचित्य नहीं है।


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