Wednesday, July 8, 2015

योग : YOGA


मित्रो !
श्रीमद भगवद गीता अध्याय ६ का श्लोक १६ निम्नप्रकार है :
नात्यश्नतस्तु योगोअस्ति न चैकान्तमनश्रत:। 
न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन।।
हे अर्जुन ! जो अधिक खाता है या बहुत कम खाता है, जो अधिक सोता है या जो पर्याप्त नहीं सोता उसके योगी बनने की कोई संभावना नहीं है। 
आगे श्लोक १७ में निम्नप्रकार कहा गया है :
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु। 
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा।।
जो खाने, सोने, आमोद-प्रमोद तथा काम करने की आदतों में नियमित रहता है, वह योगाभ्यास द्वारा समस्त भौतिक क्लेशों को नष्ट कर सकता है।

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