Saturday, October 24, 2015

बुराई पर विजय


मित्रो !
        कोई भी व्यक्ति अपने अन्दर या बाहर की बुराई पर तब तक विजय नहीं पा सकता जब तक कि - 1. वह बुराई से अनजान है ; 2. उसके दिल में बुराई के प्रति नफ़रत का भाव नहीं है ; और 3. उसमें बुराई से छुटकारा पाने या बुराई को समाप्त करने के लिए अपेक्षित इच्छाशक्ति तथा सामर्थ्य नहीं है। 
        बुराई से कोई व्यक्ति दो परिस्थितियों में अनभिज्ञ हो सकता है, प्रथम तो यह कि वह यह न जानता हो कि अमुक प्रकार की प्रवृत्ति एक बुराई है दूसरे यह कि वह इस बात से अनभिज्ञ हो कि वह ऐसी प्रवृति का शिकार है अथवा ऐसी प्रवृति अस्तित्व में है। ऐसा होने पर बुराई दूर करने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता। अगर व्यक्ति बुराई से अनभिज्ञ नहीं है तब दूसरा प्रश्न यह है कि वह ऐसी प्रवृति के प्रति घृणा का भाव रखता है अथवा नहीं। जब तक उसके अन्दर बुराई के प्रति घृणा का भाव नहीं होगा तब तक उसके अन्दर बुराई से छुटकारा पाने की भावना जन्म नहीं लेगी। 
       घृणा का भाव उत्पन्न होने पर व्यक्ति के अन्दर बुराई से छुटकारा पाने की इच्छा उत्पन्न होगी। इसी से उसमें इच्छाशक्ति विकसित होगी। अनेक बुराइयों के मामले में व्यक्ति की इच्छाशक्ति ही बुराई से छुटकारा दिलाने के लिए आवश्यक सामर्थ्य का कार्य भी करती है।


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