Saturday, October 24, 2015

मारि-मूरि मैरा बैठाये तौ का हुर्र भई

मित्रो ! 
         खेतों में कुछ फसलें मक्का, ज्वार, बाजरा आदि जब पकने के करीब खड़ीं होतीं हैं अथवा फलों के बगीचे में आम, अमरूद आदि के पेड़ों पर फल लगे होते हैं तब कुछ पक्षी उन्हें खाने आ जाते हैं । पक्षियों को भगाने (उड़ाने) के लिए खेत या बगीचे में जमीन से 8-10 फीट ऊँचाई पर एक मचान (मंच) बना दिया जाता है। उस मचान पर एक व्यक्ति गुलेल (2-3 इंच लम्बी और लगभग 2 इंच चौड़ी रस्सी से बनी जाली में लम्बाई के अंत में दोनों और एक - एक मीटर लम्बी डोरी बाँध कर बनाई गयी गुलेल) लेकर बैठ जाता है। वह थोड़े-थोड़े समय बाद गुलेल से छोटे-छोटे ईंट या गिट्टी पत्थर के छर्रे पौधों के ऊपर फेकता हुआ मुंह से हुर्र की अबाज निकालता है। यदि खेत या बगीचे में पौधों पर कोई पक्षी होते हैं तब वे उड़ जाते हैं। इससे फसल का नुकसान नहीं होता।
इसी से सम्बंधित कहाबत है "मारि-मूरि मैरा बैठाये तौ का हुर्र भई।"
(मारि-मूरि =पिटाई करके अर्थात जोर जबरदस्ती करके); मैरा = मचान; बैठाये = बैठा देने से; तौ = तो; का = क्या; हुर्र = हुर्र - हुर्र की आबाज; भई = हुई।
अर्थ यह है की अगर कोई व्यक्ति मचान (मैरा) पर बैठ कर पक्षी भगाने का कार्य करने का इच्छुक न हो और उसको मजबूर करके मचान पर बैठा दिया जाय तब यह जरूरी नहीं कि वह पक्षी भगाए ही। कहने का तात्पर्य यह है कि अगर किसी व्यक्ति पर कोई ऐसा कार्य करने के लिए दबाव बनाया जाय जिसको करने का वह इच्छुक न हो तब ऐसा व्यक्ति ऐसा कार्य या तो करेगा नहीं या फिर अनमने ढंग से आधा-अधूरा ही करेगा।



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