Friday, November 20, 2015

बच्चों के प्रति अपराध चिंता का विषय


मित्रो !
      यों तो बच्चों के प्रति किसी भी प्रकार के अपराध का होना एक चिंता का विषय है किन्तु बच्चों के यौन शोषण सम्बन्धी अपराधों का बढ़ना विशेष चिंता का विषय है। बच्चों का यौन शोषण केवल अपराध ही नहीं उनके प्रति क्रूरता भी है। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के द्वारा संकलित किये गए आंकड़ों से प्रकाश में आता है कि वर्ष 2013 की तुलना में वर्ष 2014 में बच्चों के प्रति विभिन्न प्रकार के अपराधों में लगभग 50 प्रतिशत की बृद्धि हुयी है। वर्ष 2013 में जहाँ रिपोर्टेड अपराधों की संख्या 58224 रही थी वही 2014 में यह संख्या बढ़ कर 89423 हो गयी है। संकलित आंकड़ों के अनुसार इनमें से यौन शोषण (Rape and sexual assault) के मामलों की संख्या मामलों की कुल संख्या का लगभग 21.41 प्रतिशत दोनों वर्षों में रही है। यौन अपराधों के बढ़ने की दर 2012 की अपेक्षा 2013 में लगभग 45 % और 2013 की अपेक्षा 2014 में लगभग 55 % रही है। हम सभी जानते हैं कि अनेक कारणों से अपराधों के सभी मामले रिपोर्ट नहीं हो पाते हैं। वास्तविक आंकड़े इनसे कहीं अधिक होंगे। 
    यहाँ पर मेरा उद्देश्य बच्चों के प्रति होने वाले यौन शोषण के मामलों से सम्बंधित आंकड़ों के विश्लेषण करने का नहीं है और न ही मेरा उद्देश्य घटनाओं के प्रकाश में आने के बाद उन पर कार्यवाही की ओर ध्यान आकर्षित करने का है। मेरी चिंता इस बात को लेकर है कि ऐसी घटनाएं न हों इसके लिए क्या कोई उपाय किये जा रहे हैं, यदि उपाय किये जा रहे हैं तब क्या वे पर्याप्त हैं, उन उपायों की जानकारी क्या सभी जनों को पहुंचाई जा रही है। यदि उपाय नहीं किये जा रहे हैं तब क्या उपाय किये जा सकते हैं। ऐसे उपाय कौन सुझाये? 
   लोग चिंतित तो दिख रहे हैं। यह बात समय समय पर विभिन्न लोगों द्वारा दिए गए वक्तब्यों यथा मोबाईल फोन के कारण ऐसे मामले बढ़ रहे हैं, हमारे पहनाबे में बदलाव की बजह से ऐसे मामले बढ़ रहे हैं, आदि-आदि से जाहिर होता है। हो सकता है वे गलत कह रहे हों, हो सकता है उनमें कुछ सच्चाई भी हो किन्तु बिना विश्लेषण किये नकार देना सही नहीं कहा जा सकता है। मेरा मानना है कि इस विषय पर समाज सुधारकों, मनोवैज्ञानिकों और चिंतकों द्वारा उन कारणों का पता लगाया जाना चाहिए जिन कारणों से ऐसे मामलों में बृद्धि हो रही है। उन्हें सुरक्षात्मक उपाय भी सुझाना चाहिए। अविभावकों को ऐसे सुझावों पर कार्यवाही करनी चाहिए। इसी सन्दर्भ में मेरी यह पोस्ट प्रस्तुत है। 
   बच्चों के प्रति होने वाले योन अपराधों के प्रति समाज सुधारक, मनोवैज्ञानिक विश्लेषक और चिंतक चुप क्यों हैं? अगर स्वेच्छा से कोई इस कार्य के लिए आगे नहीं आता तब क्या सरकार का दायित्व नहीं बनता कि वह इस विषय पर ऐसे लोगों की एक कमिटी गठित करे जो वर्तमान परिवेश में कारणों और सुरक्षात्मक उपायों पर रिपोर्ट प्रस्तुत करे।


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