मित्रो !
यह विचारणीय है कि असत्य को सत्य ठहराने के लिए असत्य का ढिंढोरा पीटना कहाँ तक उचित है। मेरा विचार है कि -
असंख्य लोगों के उद्घोष से भी कोई असत्य सत्य नहीं हो जाता। सत्य तो है ही वही जो अस्तित्व में है। सत्य को बैसाखियों की आवश्यकता नहीं होती और असत्य को बैसाखियाँ लगाई ही नहीं जा सकतीं क्योंकि असत्य अस्तिवहीन होता हैं।
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