मित्रो !
माननीय उच्चतम न्यायलय ने सर्वश्री पंजाब कॉटन मिल्स लिमिटिड बनाम स्टेट ऑफ़ पंजाब एन्ड एनदर निर्णय दिनांक अप्रैल 10, 1967, में निम्न प्रकार व्यवस्था दी है :
If a person is not liable for payment of tax at all, at any time, the collection of a tax from him with a possible contingency of refund at a later stage will not make the original levy valid.
माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णीत Steel Authority Of India Ltd. Vs. State Of Orissa & Ors. Etc. Etc. Date Of Judgment: 25/02/2000 मामला वर्क्स कांट्रैक्ट से सम्बंधित था। इसमें वर्क्स कांट्रैक्ट के सम्बन्ध में प्राप्त होने वाले सभी भुगतानों से स्त्रोत पर कटौती करने का प्राविधान था जबकि अंतर्राज्यीय बिक्री भी निहित थी जिस पर राज्य सरकार को कर लगाने का अधिकार नहीं था। इसके अतिरिक्त लेबर और सर्विसेज के सम्बन्ध में भी भुगतान होना था, इस पर भी बिक्री कर नहीं देय था। माननीय उच्च न्यायालय ने निम्न लिखित व्यवस्था देते हुए स्त्रोत पर कर की कटौती के प्राविधान को अवैध ठहराते हुए उसे समाप्त कर दिया।
In Bhawani Cotton Mills Ltd. vs. State of Punjab & Anr., (1967) 3 SCR 577, this Court said, - If a person is not liable for payment of tax at all, at any time, the collection of a tax from him, with possible contingency of refund at a later stage, will not make the original levy valid; because, if particular sales or purchase are exempt from taxation altogether, they can never be taken into account, at any stage, for the purpose of calculating or arriving at the taxable turnover and for levying tax.
Section 13AA should have been precisely drafted to make it clear that no tax was levied on that part of the amount credited or paid that related to inter-State sales, outside sales and sales in the course of import, particularly after the previous Section 13AA had been struck down by the Orissa High Court for the reason that it was couched in terms wider than were permissible to the State legislature and that judgment was accepted.
In the result, the appeal is allowed and the judgment and order under appeal is set aside. Section 13AA of the Orissa Sales Tax Act, as amended with effect from4th October, 1993 , is struck down as being
beyond the purview of the Orissa State Legislature. Such amount as has been
collected from the appellant under the provisions of Section 13AA shall
forthwith be refunded by the State.
माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णीत हिमाचल प्रदेश के एक मामले M/S Nathpa Jhakri Jt. Venture Vs. State OfHimachal Pradesh &
Ors. Date Of Judgment: 14/03/2000 (यह
मामला भी वर्क्स कांट्रैक्ट से ही सम्बंधित था) जिसमें हिमाचल प्रदेश सरकार के
बिक्रीकर कानून में स्त्रोत पर कर की कटौती के प्राविधान को चुनौती दी गयी थी
निम्न लिखित व्यवस्था देते हुए अवैध पाकर समाप्त कर दिया।
Explanation. – For the purpose of deduction of tax specified above, the value of supply shall be taken as the amount excluding the tax indicated in the invoice.
43C. Collection of tax at source
(1) Notwithstanding anything to the contrary contained in the Act or in any contract, arrangement or memorandum of understanding, every electronic commerce operator (hereinafter referred to in this section as the “operator”) shall, at the time of credit of any amount to the account of the supplier of goods and/or services or at the time of payment of any amount in cash or by any other mode, whichever is earlier, collect an amount, out of the amount payable or paid to the supplier, representing consideration towards the supply of goods and /or services made through it, calculated at such rate as may be notified in this behalf by the Central/State Government on the recommendation of the Council.
(2) The power to collect the amount specified in sub-section (1) shall be without prejudice to any other mode of recovery from the operator.
उपर्युक्त प्राविधानों की वैधता पर विचार हम माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए ऊपर संदर्भित निर्णयों के प्रकाश में विचार इस विषय पर शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली अगली पोस्ट में करेंगे।
यदि किसी कर-विधि में किसी संव्यवहार पर कोई कर leviable नहीं है, तब उसका निर्धारण संभव नहीं है और ऐसी ऐसी स्थिति में कर के रूप में किसी धनराशि की बसूली अवैध है।
यदि किसी कर-विधि में किसी संव्यवहार पर कोई कर
नहीं लगाया गया है (tax is not levied) तब उसका निर्धारण (Assessment) संभव नहीं है और ऐसी ऐसी स्थिति में कर के रूप में
किसी धनराशि की बसूली (Recovery) अवैध है।
स्त्रोत पर कर की कटौती कर बसूली की एक प्रक्रिया है। बिक्री-कर / वैट के अंतर्गत लगभग सभी राज्यों में सकर्म संविदाओं (Works Contracts) के मामलों में करदाता को उसके द्वारा की गयी मॉल की बिक्री पर माल के क्रेता द्वारा माल के मूल्य का भुगतान करते समय, भुगतान की जाने वाली धनराशि में से निर्धारित दर से निर्धारित प्रक्रिया के अंतर्गत कर की धनराशि की कटौती करके राजकोष में जमा की जाती है। यह कटौती माल के बिक्री संव्यवहार पर बिक्रेता द्वारा देय हुए कर के प्रति होती है। क्रेता द्वारा जमा की गयी धनराशि बिक्रेता द्वारा भुगतान की गयी कर की धनराशि मानी जाती है।
इस सम्बन्ध में विचारणीय यह है कि अगर किसी संव्यवहार पर कर नहीं लगना है तब क्या उससे सम्बंधित भुगतान करते समय भुगतांकर्त्ता द्वारा स्त्रोत पर कर की कटौती की जानी चाहिए? क्या कोई ऐसा कानून जो ऐसे संव्यवहार, जिस पर कर आरोपनीय नहीं है, से सम्बंधित भुगतान पर भी धनराशि की कटौती करने का प्राविधान रखता है और देय कर से अधिक भुगतान की गयी धनराशि को करदाता को बापस करने का प्राविधान रखता है संवैधानिक रूप से वैध है? इस सम्बन्ध में माननीय उच्चतम न्यायालय ने अनेक मामलों में निर्णय दिया है कि कटौती का ऐसा प्राविधान अवैध है। विधायिका को ऐसा प्राविधान बनाने का अधिकार नहीं है।
स्त्रोत पर कर की कटौती कर बसूली की एक प्रक्रिया है। बिक्री-कर / वैट के अंतर्गत लगभग सभी राज्यों में सकर्म संविदाओं (Works Contracts) के मामलों में करदाता को उसके द्वारा की गयी मॉल की बिक्री पर माल के क्रेता द्वारा माल के मूल्य का भुगतान करते समय, भुगतान की जाने वाली धनराशि में से निर्धारित दर से निर्धारित प्रक्रिया के अंतर्गत कर की धनराशि की कटौती करके राजकोष में जमा की जाती है। यह कटौती माल के बिक्री संव्यवहार पर बिक्रेता द्वारा देय हुए कर के प्रति होती है। क्रेता द्वारा जमा की गयी धनराशि बिक्रेता द्वारा भुगतान की गयी कर की धनराशि मानी जाती है।
इस सम्बन्ध में विचारणीय यह है कि अगर किसी संव्यवहार पर कर नहीं लगना है तब क्या उससे सम्बंधित भुगतान करते समय भुगतांकर्त्ता द्वारा स्त्रोत पर कर की कटौती की जानी चाहिए? क्या कोई ऐसा कानून जो ऐसे संव्यवहार, जिस पर कर आरोपनीय नहीं है, से सम्बंधित भुगतान पर भी धनराशि की कटौती करने का प्राविधान रखता है और देय कर से अधिक भुगतान की गयी धनराशि को करदाता को बापस करने का प्राविधान रखता है संवैधानिक रूप से वैध है? इस सम्बन्ध में माननीय उच्चतम न्यायालय ने अनेक मामलों में निर्णय दिया है कि कटौती का ऐसा प्राविधान अवैध है। विधायिका को ऐसा प्राविधान बनाने का अधिकार नहीं है।
माननीय उच्चतम न्यायलय ने सर्वश्री पंजाब कॉटन मिल्स लिमिटिड बनाम स्टेट ऑफ़ पंजाब एन्ड एनदर निर्णय दिनांक अप्रैल 10, 1967, में निम्न प्रकार व्यवस्था दी है :
If a person is not liable for payment of tax at all, at any time, the collection of a tax from him with a possible contingency of refund at a later stage will not make the original levy valid.
माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णीत Steel Authority Of India Ltd. Vs. State Of Orissa & Ors. Etc. Etc. Date Of Judgment: 25/02/2000 मामला वर्क्स कांट्रैक्ट से सम्बंधित था। इसमें वर्क्स कांट्रैक्ट के सम्बन्ध में प्राप्त होने वाले सभी भुगतानों से स्त्रोत पर कटौती करने का प्राविधान था जबकि अंतर्राज्यीय बिक्री भी निहित थी जिस पर राज्य सरकार को कर लगाने का अधिकार नहीं था। इसके अतिरिक्त लेबर और सर्विसेज के सम्बन्ध में भी भुगतान होना था, इस पर भी बिक्री कर नहीं देय था। माननीय उच्च न्यायालय ने निम्न लिखित व्यवस्था देते हुए स्त्रोत पर कर की कटौती के प्राविधान को अवैध ठहराते हुए उसे समाप्त कर दिया।
In Bhawani Cotton Mills Ltd. vs. State of Punjab & Anr., (1967) 3 SCR 577, this Court said, - If a person is not liable for payment of tax at all, at any time, the collection of a tax from him, with possible contingency of refund at a later stage, will not make the original levy valid; because, if particular sales or purchase are exempt from taxation altogether, they can never be taken into account, at any stage, for the purpose of calculating or arriving at the taxable turnover and for levying tax.
Section 13AA should have been precisely drafted to make it clear that no tax was levied on that part of the amount credited or paid that related to inter-State sales, outside sales and sales in the course of import, particularly after the previous Section 13AA had been struck down by the Orissa High Court for the reason that it was couched in terms wider than were permissible to the State legislature and that judgment was accepted.
In the result, the appeal is allowed and the judgment and order under appeal is set aside. Section 13AA of the Orissa Sales Tax Act, as amended with effect from
माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णीत हिमाचल प्रदेश के एक मामले M/S Nathpa Jhakri Jt. Venture Vs. State Of
To say that if a person is not liable for payment
of tax inasmuch as on completion of the assessment refund can be obtained at a
later stage is no solace, as noticed in Bhawani Cotton Mills Ltd. v. State of
Punjab & Anr., 1967 (3) SCR 577. Further, there is no provision for
certification of the extent of the deduction that can be made by the authority.
Therefore, we must hold that arbitrary and uncanalised powers have been
conferred on the concerned person to deduct upto 4 per cent from the sum
payable to the works contractor irrespective whether ultimately the transaction
is liable for payment to any sales tax at all. In that view of the matter, we
have no hesitation in rejecting the contention advanced on behalf of the State.
प्रस्तावित Goods and Services Tax (GST) से सम्बंधित मॉडल जीएसटी लॉ का ड्राफ्ट (Model GST Law Draft) जारी गया है। इसके अंतर्गत स्टेट जीएसटी एक्ट, सेंट्रल जीएसटी एक्ट और इंटीग्रेटेड जीएसटी एक्ट के ड्राफ्ट हैं। स्टेट और सेंट्रल जीएसटी, दोनों में राज्यों के अंदर होने वाली माल या सेवाओं अथवा माल और सेवाओं दोनों की आपूर्ति (supply) पर कर लगने, कर का निर्धारण और कर की बसूली के प्रस्तावित प्राविधान हैं। इंटीग्रेटेड जीएसटी लॉ में अंतर्राज्यीय वाणिज्य या व्यापार के क्रम में होने वाली माल या सेवाओं अथवा माल और सेवाओं दोनों की आपूर्ति (supply) तथा भारत के बाहर से आयात के क्रम में हिंे वाली माल की आपूर्ति पर कर लगने, कर का निर्धारण और कर की बसूली के प्रस्तावित प्राविधान हैं। उल्लेखनीय यह है कि इंटीग्रेटेड जीएसटी एक्ट के अंतर्गत सेंट्रल जीएसटी एक्ट के अनेक प्राविधान इंटीग्रेटेड जीएसटी में उसी तरह लागू माने जाने का उल्लेख है जैसे वे सीजीएसटी के मामलों में लागू होते हैं। ऐसे संदर्भित प्राविधानों में कर के भुगतान और कर की बसूली से सम्बंधित प्राविधान भी हैं। कर बसूली से सम्बंधित प्राविधानों के अंतर्गत स्त्रोत पर कर की कटौती का प्राविधान भी आता है। सेंट्रल जीएसटी एक्ट के ड्राफ्ट में स्त्रोत पर कर की कटौती के प्राविधान द्वारा 37 और 43C में किये गए हैं। धारा 37 की उपधारा (1) व धारा 43क की उपधारा (1) व उपधारा (2) निम्नप्रकार हैं :
37. Tax deduction at source
प्रस्तावित Goods and Services Tax (GST) से सम्बंधित मॉडल जीएसटी लॉ का ड्राफ्ट (Model GST Law Draft) जारी गया है। इसके अंतर्गत स्टेट जीएसटी एक्ट, सेंट्रल जीएसटी एक्ट और इंटीग्रेटेड जीएसटी एक्ट के ड्राफ्ट हैं। स्टेट और सेंट्रल जीएसटी, दोनों में राज्यों के अंदर होने वाली माल या सेवाओं अथवा माल और सेवाओं दोनों की आपूर्ति (supply) पर कर लगने, कर का निर्धारण और कर की बसूली के प्रस्तावित प्राविधान हैं। इंटीग्रेटेड जीएसटी लॉ में अंतर्राज्यीय वाणिज्य या व्यापार के क्रम में होने वाली माल या सेवाओं अथवा माल और सेवाओं दोनों की आपूर्ति (supply) तथा भारत के बाहर से आयात के क्रम में हिंे वाली माल की आपूर्ति पर कर लगने, कर का निर्धारण और कर की बसूली के प्रस्तावित प्राविधान हैं। उल्लेखनीय यह है कि इंटीग्रेटेड जीएसटी एक्ट के अंतर्गत सेंट्रल जीएसटी एक्ट के अनेक प्राविधान इंटीग्रेटेड जीएसटी में उसी तरह लागू माने जाने का उल्लेख है जैसे वे सीजीएसटी के मामलों में लागू होते हैं। ऐसे संदर्भित प्राविधानों में कर के भुगतान और कर की बसूली से सम्बंधित प्राविधान भी हैं। कर बसूली से सम्बंधित प्राविधानों के अंतर्गत स्त्रोत पर कर की कटौती का प्राविधान भी आता है। सेंट्रल जीएसटी एक्ट के ड्राफ्ट में स्त्रोत पर कर की कटौती के प्राविधान द्वारा 37 और 43C में किये गए हैं। धारा 37 की उपधारा (1) व धारा 43क की उपधारा (1) व उपधारा (2) निम्नप्रकार हैं :
37. Tax deduction at source
(1)
Notwithstanding anything contained to the contrary in this Act, the Central or
a State Government may mandate, -
(a) a
department or establishment of the Central or State Government, or
(b)
Local authority, or
(c)
Governmental agencies, or
(d) such
persons or category of persons as may be notified, by the Central or a State
Government on the recommendations of the Council,
[hereinafter referred to in this section as “the deductor”], to deduct tax at the rate of one percent from the payment made or credited to the supplier [hereinafter referred to in this section as “the deductee”] of taxable goods and/or services, notified by the Central or a State Government on the recommendations of the Council, where the total value of such supply, under a contract, exceeds rupees ten lakh.
[hereinafter referred to in this section as “the deductor”], to deduct tax at the rate of one percent from the payment made or credited to the supplier [hereinafter referred to in this section as “the deductee”] of taxable goods and/or services, notified by the Central or a State Government on the recommendations of the Council, where the total value of such supply, under a contract, exceeds rupees ten lakh.
Explanation. – For the purpose of deduction of tax specified above, the value of supply shall be taken as the amount excluding the tax indicated in the invoice.
43C. Collection of tax at source
(1) Notwithstanding anything to the contrary contained in the Act or in any contract, arrangement or memorandum of understanding, every electronic commerce operator (hereinafter referred to in this section as the “operator”) shall, at the time of credit of any amount to the account of the supplier of goods and/or services or at the time of payment of any amount in cash or by any other mode, whichever is earlier, collect an amount, out of the amount payable or paid to the supplier, representing consideration towards the supply of goods and /or services made through it, calculated at such rate as may be notified in this behalf by the Central/State Government on the recommendation of the Council.
(2) The power to collect the amount specified in sub-section (1) shall be without prejudice to any other mode of recovery from the operator.
उपर्युक्त प्राविधानों की वैधता पर विचार हम माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए ऊपर संदर्भित निर्णयों के प्रकाश में विचार इस विषय पर शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली अगली पोस्ट में करेंगे।
यदि किसी कर-विधि में किसी संव्यवहार पर कोई कर leviable नहीं है, तब उसका निर्धारण संभव नहीं है और ऐसी ऐसी स्थिति में कर के रूप में किसी धनराशि की बसूली अवैध है।
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