Saturday, September 30, 2017

निर्यात पर जंजीरें

मित्रो !
     जीएसटी लगने से पहले माल की व्यापार स्थल से निकासी पर लगने वाले केंद्रीय आबकारी शुल्क से राहत इस आधार पर मिलती थी कि माल निर्धारित अवधि में एक्सपोर्ट कर दिया जाय। छूट लेने के बाद निर्यात की आड़ में आबकारी शुल्क की चोरी हो, इसके लिए माल की निकासी पर शर्तें लगाईं गई थीं। जीएसटी में निर्यात से सम्बंधित कोई भी राहत निर्यात होने के पूर्व में नहीं ली जाती और कोई भी  राहत निर्यात के लिए माल की क्लियरेंस होने के बाद निर्यात के समय प्राप्त होने वाले दस्ताबेजों के आधार पर मिलती है।  अतः निर्यात से पूर्व माल के सम्बन्ध में लेटर ऑफ़ अंडरटेकिंग, बांड और बैंक गारंटी या टैक्स के भुगतान की शर्तें लगाना निर्यात पर जंजीरें डालने  जैसा है।
        In reference to conditions in respect of zero rated supply, it is noteworthy that conditions, under Central Excise, were prescribed for removal of goods for export, for the reason that relief from excise duty was sought at the stage of removal of goods. As it relates to export in GST regime, relief is sought on the basis of export documents. Then why conditions are being imposed on making export invoice and removal of export goods . No relief can be claimed unless the goods are exported. As soon as goods come into the export stream, proof of export becomes available with the taxable person. Then where does arise the necessity of conditions prescribed under sub-section (3) of section 16 of the Integrated Goods and Services Tax Act, 2017. After all, relief and refund is to be provided on the basis of documents evidencing export.

            Scheme provided for export cases is hampering the export and is bringing adverse impact on the economy of the country. 


Friday, September 29, 2017

ONE GOD FOR ALL सबका ईश्वर एक


मित्रो !
One who is creator of this Universe, one who is savior as well as destroyer of the nature, one who is ocean of compassion, one who gives us fruits of our actions, One who punishes the guilty, one who is fair judge, One who creates all, one who knows everything about everyone, one who has neither beginning nor end, whose dimensions are infinite, he who dwells in every particle, he who, although fragmented, is undivided, one who loves his creation, one who loves to see love among all beings, one who is hungry of love, He who is paramount, supreme, omniscient, he is the God. I bow to the God.
वह जो सृष्टि का कारण है, वह जो जो जगत का पालनहार भी है और संहारक भी है, वह जो दया का सागर है, वह जो कर्मों के फलों का दाता है, वह जो दोषियों को दण्डित करने वाला है, वह जो निष्पक्ष न्यायाधीश है, वह जो सबकी रचना करता है, वह जो सबके बारे में सब कुछ जानता है, वह जिसका न तो आदि है और न ही जिसका अंत है, जिसका विस्तार अनंत है, वह जो कण-कण में समाया हुआ है, वह जो खंड-खंड होकर भी अखंड है, वह जिसे अपनी सृष्टि से प्यार है, वह जो अपनी संतानों के बीच प्रेम देखना चाहता है, वह जो प्रेम का भूखा है, वह जो सर्वोपरि, सर्वश्रेष्ठ, सर्वज्ञानी है, वही ईश्वर है। मैं उस ईश्वर को प्रणाम करता हूँ।
हम ऊपर उल्लिखित गुणों वाले किसी ईश्वर की कल्पना ही कर सकते हैं, कोई मूर्ति नहीं बना सकते क्योंकि एक ही क्षण पर ऐसी किसी वस्तु जो अनंत विस्तार लिए हो और किसी छोटे कण में भी समायी हुयी हो की मूर्ति या चित्र कैसे बनाया जा सकता है। हम ऐसे गुणों को निरूपित करने वाले किसी प्रतीक की कल्पना ही कर सकते हैं। प्रतीक कुछ भी हो सकता है, प्रतीक अच्छा दिखता है या नहीं इसका ईश्वर से कोई सम्बन्ध नहीं होता। ईश्वर के स्मरण के लिए आवश्यक होता है उसमें विश्वास व्यक्त करना और उसकी सत्ता को स्वीकार करना। जो लोग प्रतिक के बिना ईश्वर का स्मरण कर सकते हैं उनके लिए ईश्वर के प्रतीक की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
मेरे विचार से किसी भी धर्म के अनुयायियों को ऐसा ईश्वर मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। प्रतीकों पर भी कोई विवाद नहीं करना चाहिए। भिन्न भिन्न प्रतीकों को भी लेकर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

Saturday, September 16, 2017

ताकि कानून के अनुपालन में कमी न हो

मित्रो !
मेरा मानना है कि -
      किसी भी कानून के प्राविधान जटिल तथा उनकी भाषा गूढ़ होने से, कानून की उपयोगिता बढ़ने के बजाय घट जाती है।  कानून के प्राविधान स्पष्ट और उनकी भाषा सरल होनी चाहिए ताकि कानून का पालन करने और कराने वाले लोग यह आसानी से समझ सकें कि कानून क्या अपेक्षा करता है।

Saturday, September 9, 2017

GST HAS COME INTO EXISTENCE BUT WITH DIFFICULTIES TO MANY

मित्रो !
      जीएसटी भारत में अस्तित्व में गया है यह एक वास्तविकता है किन्तु यह भी एक वास्तविकता है कि जीएसटी के कुछ क्षेत्रों में छोटे-बड़े दोनों प्रकार के कारोबारियों को कठिनाईयां हो रहीं हैं। ऐसी स्थिति  में जीएसटी के पूर्व मिल रहे राजस्व में बढ़ोत्तरी भले ही हो जाय किन्तु दायरा बढ़ने से जितना राजस्व प्राप्त होना चाहिए उतना राजस्व प्राप्त होना संदिग्ध है।
      मेरा मानना है जीएसटी के नक़्शे भरने के लिए अतिरिक्त जनशक्ति की आवश्यकता होने से कुछ लोगों को रोजगार अवश्य मिल सकता है किन्तु यह भी सत्य है कि जिस स्वरुप में जीएसटी लाया गया है उससे छोटे कारोबारों में लगे अनेक लोग बेरोजगार हो जाएंगे। छोटे कारोबारियों पर जीएसटी की कम्प्लायंस में लगने वाले समय और खर्च में बढ़ोत्तरी होगी, उनके व्यापार का दायरा सिकुड़ जायेगा। छोटे स्तर पर ही सही पर निर्यात घटेगा और विदेशी मुद्रा के अर्जन में भी कमी आएगी। छोटे कारोबारियों में इंटीग्रेटेड  टैक्स के कर अपवंचन  की प्रवृत्ति बढ़ सकती है।

      मेरा यह भी मानना है कि यदि जीएसटी एक बड़ा उद्देश्य है,  तब इसको सफलता पूर्वक लागू करने के लिए बड़ी सोच और सतर्कता की आवश्यकता है। मेरे विचार से संविधान के प्राविधानों और समय-समय पर उच्चतम न्यायलय द्वारा दिए गए निर्णयों को ध्यान में रखकर जीएसटी के अनेक प्राविधानों को सरलउपयोगी और मैत्रीपूर्ण बनाया जा सकता था। सामजिक-आर्थिक दशाओं और जटिलताओं (Socio-economic conditions and complexities) को ध्यान में रखकर नीति विषयक निर्णय लिए जाने की आवश्यकता है।

Friday, September 8, 2017

Meaning and Usage of Word Nil

Friends !
                Dictionary meanings of word 'Nil' are nothing or zero. Wherever the word 'nil' is used in reference to numbers or numerical calculations, it is zero and elsewhere it is nothing.

      शब्दकोष के अनुसार शब्द 'Nil' के अर्थ कुछ नहीं या शून्य हैं। जहां कहीं यह शब्द संख्याओं अथवा संख्यात्मक गणनाओं के सन्दर्भ में प्रयोग होता है, इसका अर्थ शून्य होता है अन्य स्थानों पर इसका अभिप्राय कुछ नहीं से होता है। 

      भारत सरकार द्वारा प्रकाशित विधि शब्दावली के अनुसार 'nil rate of duty, at the' के हिंदी समानार्थक शब्द "शून्य दर पर शुल्क" दिए गए हैं, शब्द निल के अर्थ 'कुछ नहीं', और 'शून्य' दिए गए हैं।

Monday, September 4, 2017

हमारे अपने शत्रु : Our Own Enemies

मित्रो !
       The enemies within us are so powerful that they have made us their slaves. Throughout our lives, we work to please them and we forget our own identity.

       
       हमारे अन्दर के शत्रु इतने शक्तिशाली हैं कि उन्होंने हमें अपना दास (slave) बना लिया है। जीवन भर हम उन्हें प्रसन्न करने के लिए कार्य करते रहते हैं और हम अपनी स्वयं की पहचान भूल जाते हैं।

Saturday, September 2, 2017

GST : A SUPPLY LEVIABLE TO TAX कर से उद्गृहणीय प्रदाय

GST : A SUPPLY LEVIABLE TO TAX
कर से उद्गृहणीय प्रदाय
मित्रो !
    किसी भी अधिनियम को एक single piece of legislation मानकर पढ़ा जाता है। किसी टैक्स से सम्बंधित अधिनियम में टैक्स की लेवी के लिए तीन  विन्दुओं पर घोषणा किया जाना अनिवार्य  होता है।
1. टैक्स किस इवेंट, यथा आय, माल की बिक्री, माल की खरीद, माल की सप्लाई, सेवाओं की सप्लाई, माल का अंतरण, आदि, पर कर लेवी किया जायेगा।
2. कर लेवी का आधार क्या होगा यथा  मूल्य का प्रतिशत, प्रति किलो ग्राम, प्रति लीटर, प्रति मीटर आदि।
3. व्यक्ति जो टैक्स की धनराशि का भुगतान करेगा और स्वतः टैक्स का भुगतान करने पर ऐसे व्यक्ति से टैक्स की वसूली की जाएगी।  
    यदि इनमें से किसी एक विन्दु पर घोषणा नहीं की गयी है तब टैक्स लेवी किया गया है ऐसा नहीं माना जा सकता है। टैक्स से तात्पर्य जनता के प्रयोजनों के लिए सरकार द्वारा कानून द्वारा प्रवर्तनीय प्रक्रिया के अंतर्गत जनता से धन की अनिवार्य रूप से उगाही से होता है।
    जहां किसी टैक्स लॉ में इस प्रकार प्राविधान बनाये गए हों जिनके अनुपालन में अंततः उगाही योग्य धनराशि अनिश्चय हो या फिर शून्य हो वहां टैक्स लेवी किया जाना नहीं माना जा सकता है। ऐसा निम्नलिखित परिस्थितियों में हो सकता है।
1. कर की दर शून्य (zero) या निल (nil) निर्धारित की गयी हो; अथवा
2. कर अधिनियम में एक प्राविधान टैक्स लगाने का हो किन्तु दूसरा प्राविधान करमुक्ति (exemption) दिए जाने का हो; अथवा
3. कर अधिनियम में एक प्राविधान कर लगाने का हो किन्तु दूसरा प्राविधान कर राशि कर दाता को बापस किये जाने (Refund) का हो; अथवा
4. कर अधिनियम में एक प्राविधान कर लगाने का हो किन्तु दूसरा प्राविधान कर राशि का रिबेट (Rebate) दिए जाने का हो।
    ऐसे प्राविधान जिन संव्यवहारों पर लागू होते हैं उनके सम्बन्ध में सभी कार्यवाही करने पर न तो करदाता पर कोई कर का बोझ पड़ता है और न ही सरकार को कोई राजस्व मिलता है। स्पष्ट है इन संव्यवहारों को टैक्स लेवी क्लॉज में शामिल किये जाने के बाबजूद इन पर कोई कर नहीं लगाया गया होता है।  ऐसे संव्यवहारों के टर्नओवर को टैक्स tax payer पेयर के सकल टर्नओवर में तो शामिल किया जा सकता है किन्तु ऐसे टर्नओवर को कर योग्य टर्नओवर में शामिल नहीं किया जा सकता है।
    ऐसा सोचना कि जिन संव्यवहारों के लिए कर की दर शून्य या निल (nil) निर्धारित है, उन पर कर उदग्राह्य (leviable) है क्योंकि कर की दर में संशोधन करके कर लगाया जा सकता है, उचित नहीं है। क्योंकि कानून में संशोधन किसी भी प्राविधान में किया जा सकता है, संशोधन की अपेक्षा में, संशोधन हो गया मानकर निर्णय नहीं लिया जा सकता है। Dictionary meanings और Glossary of legal terms के अनुसार zero और nil शब्द एक-दूसरे के पर्याय हैं। दोनों दरों पर कर निर्धारित करने से कोई राजस्व प्राप्त नहीं हो सकता है।
    कर योग्य और करमुक्त को लेकर माननीय सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वश्री ए. वी. फर्नांडीज़ वनाम दि स्टेट ऑफ़ केरल, निर्णय दिनांक अप्रैल 02, 1957 में निम्नप्रकार महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है :-
"There is a broad distinction between the provisions contained in the statute in regard to the exemptions of tax or refund or rebate of tax on the one hand and in regard to the non-liability to tax or non-imposition of tax on the other. In the former case, but for the provisions as regards the exemptions or refund or rebate of tax, the sales or purchases would have to be included in the gross turnover of the dealer because they are prima facie liable to tax and the only thing which the dealer is entitled to in respect thereof is the deduction from the gross turnover in order to arrive at the net turnover on which the tax can be imposed. In the latter case, the sales or purchases are exempted from taxation altogether. The Legislature cannot enact a law imposing or authorising the imposition of a tax thereupon and they are not liable to any such imposition of tax. If they are thus not liable to tax, no tax can be levied or imposed on them and they do not come within the purview of the Act at all. The very fact of their non- liability to tax is sufficient to exclude them from the calculation of the gross turnover as well as the net turnover on which sales tax can be levied or imposed."
     यहां पर माननीय उच्चतम न्यायलय ने दो तरह के करमुक्ति से सम्बंधित संव्यवहारों में अंतर किया है। एक प्रकार के ऐसे संव्यवहार हैं जिन पर कर लगाए जा सकने का अधिकार अधिनियम में प्राप्त नहीं है अर्थात ऐसे संव्यवहारों को अधिनियम से बाहर रखा गया है। उदहारण के लिए जीएसटी में Alcoholic liquor for human consumption की सप्लाई को बाहर रखा गया है, अस्थाई तौर पर Petroleum Crude, Diesel Oil, Petrol, Natural Gas और Aviation Turbine Fuel (ATF)  को भी जीएसटी से बाहर रखा गया है। ऐसे संव्यवहारों के टर्नओवर को अधिनियम के अधीन कुल टर्नओवर में भी शामिल नहीं किया जा सकता है। 
     माननीय उच्चतम न्यायलय के अनुसार दूसरे प्रकार की करमुक्ति वह होती है जिसके सम्बन्ध में अधिनियम में  exemption, refund  या rebate का प्राविधान उपलब्ध होता है। जिन संव्यवहारों के सम्बन्ध में exemption, refund या rebate के प्राविधान होते हैं उन संव्यवहारों के टर्नओवर को सकल टर्नओवर (Gross turnover) में शामिल किया जा सकता है किन्तु करयोग्य टर्नओवर (net turnover) में शामिल नहीं किया जा सकता है। करयोग्य टर्नओवर ऐसे संव्यवहारों के मूल्यों का योग होता है जिन पर कर उदग्राह्य ( aggregate of values of transactions leviable to tax) होता है।