Wednesday, April 8, 2015

वसुधैव कुटंबकम

मित्रो !
कितनी विडम्बना है कि हम "वसुधैव कुटंबकम" जैसे दर्शन की वकालत करते हैं किन्तु वास्तविकता यह है कि हमारे बीच से अनेक लोग उस परिवार को भी एक नहीं रख पाते जिसमें ईश्वर ने हमें जन्म दिया है। हमें "Charity begins at home" मुहाबरे को नहीं भूलना चाहिए। व्यवहारिकता से परे जीने की कल्पना मिथ्या है। अपने चारों ओर का दायरा बढ़ाने का काम अंदर से बाहर की ओर अपने पास से ही शुरू करना पड़ता है।



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