मित्रो !
मैंने स्वयं से पूछा कि मानवता
दम तोड़ती क्यों नजर आती है?, उत्तर मिला "आदमी स्वार्थी
और उसका दिल छोटा हो गया है, इस छोटे दिल में भी इंसानी जज्बातों की जगह राग और द्वेष (passion and hatred) समाये हुए हैं।"
किसी शायर ने ठीक ही कहा
है:
रकवा तुम्हारे गाँव का मीलों हुआ
तो क्या,
रकवा तुम्हारे दिल का तो दो इंच भी
नहीं।
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