मित्रो !
तीन गुणों वाली प्रकृति, अहंकार, मन, बुद्धि और इन्द्रियों के
कारण जीवात्मा सभी प्रकार के अच्छे और बुरे कर्म करता
है।
प्रकृति = जीव की सतो, रजो और तमो गुणों वाली जन्म से मिली
प्रकृति।
अहंकार = जीव के अंदर "मैं हूँ",
"मैं कर्त्ता
हूँ" और "मैं ही भोक्ता हूँ" का अहम् भाव।
इन्द्रियाँ = पांच (आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा) ज्ञानेन्द्रियाँ और हाथ,
पैर, वाणी, जननेन्द्रिय और गुदा पांच
कर्मेन्द्रियाँ।
ज्ञानेन्द्रियों
में आँख से देखने, कान से सुनने, नाक से सूंघने, जीभ से स्वाद लेने, और त्वचा से स्पर्श करने
से ज्ञान प्राप्त होता है। कर्मेन्द्रियों में हाथ और पैरों से कार्य करने, वाणी से बोलने, जननेन्द्रिय से संतान पैदा करने और गुदा से मल त्याग करने का कार्य होता है।
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