मित्रो !
जब किसी व्यक्ति के किसी कृत्य से किसी दूसरे व्यक्ति को कष्ट पहुँचता है तब कर्म फल के अनुसार गलती करने वाला दण्ड का भागी बनता है और वह व्यक्ति जिसको कष्ट पहुँचा है कष्ट का प्रतिफल पाने का हक़दार बनता है। यदि कष्ट पाने वाला व्यक्ति कष्ट देने वाले को क्षमा न करे तब उसके अन्दर क्रोध और बदले की भावनायें जन्म ले लेतीं हैं जो उसके लिए विनाशकारी होतीं हैं। क्षमा दान से आनन्द की अनुभूति होती है। इन्हीं भावों से प्रेरित होकर मैंने प्रस्तुत विचार निम्नप्रकार व्यक्त किया है।
क्षमा दान मिल जाने से गलती करने वाले को अपने किये से छुटकारा नहीं मिल जाता, कर्मफल के रूप में उसे इसके प्रतिकूल परिणाम भोगने ही होते हैं किन्तु दूसरे की गलतियों को क्षमा कर देने वाला क्रोध और बदले की विनाशकारी आग से बच जाता है। वह क्षमादान देकर अपने लिए सुख कमा लेता है और उसको हुई क्षति के प्रतिफल का हकदार भी बन जाता है।
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