मित्रो !
किसी कार्य को संपादित करने के लिए, कार्य के अनुसार अपेक्षित साधनों, उपयुक्त शक्ति, अपेक्षित श्रम और कार्य सम्पादित करने की इच्छा का होना आवश्यक होता है। यदि अपेक्षित साधनों में ही उपयुक्त शक्ति और अपेक्षित श्रम को शामिल मान लिया जाय तब हम कह सकते हैं कि किसी कार्य को सम्पादित करने के लिए संसाधनों और कार्य सम्पादन की इच्छा की आवश्यकता होती है।
जिस व्यक्ति द्वारा कार्य का सम्पादित किया जाना अपेक्षित होता है उसके लिए, कार्य की प्रकृति को देखते हुए, संसाधनों के तीन स्त्रोत हो सकते हैं। सभी संसाधन उसके शरीर से ही प्राप्त हो जांय अथवा सभी संसाधन उसके शरीर के बाहर से प्राप्त हों अथवा कुछ संसाधन उसके शरीर से प्राप्त हों और शेष संसाधन उसके शरीर के बाहर से। संसाधन किसी भी स्त्रोत से प्राप्त हों, कार्य करने की इच्छा कार्य करने वाले की अपनी होती है। जहां कार्य करने वाला किसी अन्य व्यक्ति के निर्देश पर करता है वहाँ पर भी कार्य करने की इच्छा उसकी अपनी होती है।
कार्य करने की इच्छा के अभाव में न तो सक्रियता आती है और न ही कार्य प्रारम्भ किया जा सकता है। कार्य करने की इच्छा ही कार्य संपादन के दौरान निरंतरता बनाये रखती है। संसाधनों के अभाव में कार्य करने की इच्छा एक कल्पना, स्वप्न, सोच या योजना ही कही जा सकती है, कार्य का प्रारम्भ होना नहीं माना जा सकता।
इन्ही विचारों ने मुझे यह कहने के लिए प्रेरित किया है कि :
किसी कार्य के सम्पादन के लिए साधन, शक्ति, श्रम और कार्य करने की इच्छा की आवश्यकता होती है। इनमें कार्य करने की इच्छा का विशिष्ट स्थान होता है। इच्छा के अभाव में किसी कार्य का प्रारम्भ किया जाना भी संभव नहीं है। इच्छा के अभाव में मुंह में उंडेला गया पानी भी हलक के नीचे नहीं उतर सकता।
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