Wednesday, June 3, 2015

भृष्टाचार


मित्रो !

मुझे नहीं मालूम कि भृष्टाचार के उन्मूलन के लिए कटिबद्ध सरकारों ने इस तरह की कोई सूची बनबाई है कि नहीं कि भृष्टाचार के लिए क्या-क्या तरीके अपनाये जाते हैं। मेरा विचार है कि अगर फसल से खर-पतवार निकालना है तब पहली आवश्यकता खर - पतवार की पहचान करने की ही होती है। यहां पर जिस वृतांत का उल्लेख करने जा रहा हूँ वह भृष्टाचार के कुछ स्वरूपों से ही सम्बंधित है।
उन दिनों मैं अपनी सेवा के लगभग तीन वर्ष पूरे कर चुका था और एक जनपद के मुख्यालय पर प्रभारी बिक्री कर अधिकारी के पद पर कार्यरत था। उत्तर प्रदेश से प्रोफेशन टैक्स समाप्त किया जा चूका था तथा लंबित पुराने मामलों को निबटाने के लिए विभिन्न मंडलों में एक-एक असिस्टेंट प्रोफेशन टैक्स अफसर तैनात थे। मेरे मंडल में भी लगभग ५८ वर्ष उम्र के एक अधिकारी तैनात थे। वे पूर्व में राज्य के सचिवालय में कार्य कर चुके थे। अनुभवी अधिकारी थे। मंडल में मिलाकर कुल 7 अधिकारी कार्यरत थे। सभी ने यह निर्णय किया था लंच आवर्स में सभी अधिकारी चाय मेरे कार्यालय कक्ष में ही लेंगे। चाय पर कुछ इधर-उधर की चर्चा होना भी स्वाभाविक थी। 
एक दिन असिस्टेंट प्रोफेशन टैक्स अफसर ने किसी सन्दर्भ में इस पर चर्चा शुरू कर दी कि लोग राजकीय कोष को किस-किस तरह भृष्टाचार के द्वारा नुकसान पहुंचाते हैं। उन्होंने इस सम्बन्ध में तीन तरीकों का उल्लेख किया। उनका कहना था एक तरह के भृष्टाचारी पब्लिक से रिश्वत लेकर सरकार को विभिन्न देयों की वास्तविक रूप में देय धनराशियों से कम धनराशियां राजकीय कोष में जमा कराते हैं। दूसरे तरह के भृष्टाचारी सरकारी सम्पत्तियों की वास्तविक मूल्य से कम मूल्य पर बिक्री करके क्रेता से रिश्वत के रूप में धनराशि ले लेते हैं। तीसरे तरीके के भृष्टाचारी सरकार द्वारा बनाई जाने वाली विकास की योजनाओं के लिए स्वीकृत धनराशि में से कम धनराशि खर्च करके शेष धनराशि को साझा कर लेते हैं। इसकी शुरुआत योजना का बजट इस्टीमेट बनाने से हो जाती है। बजट वास्तविक खर्च होने वाली धनराशि से अधिक का बनाकर स्वीकृत करा लिया जाता है। योजनाओं के क्रियान्वन में लगने वाला माल कम दर का घटिया किस्म का होता है किन्तु उसका बिल अच्छी क्वालिटी का माल दिखाकर अधिक मूल्य का माल दिखा दिया जाता है। बिक्रेता से माल खरीद का फर्जी बिल प्राप्त कर लिया जाता है। विभिन्न संस्थानों में उपयोग में आने वाली वस्तुओं की खरीद के लिए प्राप्त धनराशि से कोई खरीद न करके खरीद के फर्जी बिल प्राप्त कर लिए जाते हैं। अपने परिचित ठेकेदारों को ठेके दिलवा दिए जाते हैं और उनको मिलने वाली धनराशि से अपना हिस्सा ले लिया जाता है। इस तरह के असिस्टेंट प्रोफेशन टैक्स अधिकारी ने अनेक अन्य उदाहरण दिए। उनका कहना था कि तीसरे प्रकार से किया जाने वाला भृष्टाचार बहुत बड़े स्तर पर होता है और इसका नेट वर्क बहुत विस्तृत होता है। इसके लिए खर्च करने का तरीका ढूढ़ा जाता है। 
मैं समझता हूँ कि असिस्टेंट प्रोफेशन टैक्स अधिकारी द्वारा उस समय जो तरीके भृष्टाचार के बताये गए थे वे आजकल अपनाये जाने वाले तरीकों की संख्या की तुलना में बहुत कम हैं। वर्तमान में सरकारी नौकरी दिलवाने के नाम पर भृष्टाचार का बहुत बड़ा उद्योग चल रहा है। इससे अयोग्य लोग भी सरकारी नौकरियों में आ जाते हैं और वे अपने द्वारा नौकरी पाने के लिए दी गयी रकम की वसूली भृष्टाचार द्वारा शुरू कर देते हैं। 
एक अन्य प्रकार का भृष्टाचार ऐसा है जिसमें जनता अपने कोई कार्य करवाने के लिए, कोई दस्ताबेज पाने के लिए या अन्य कोई सुविधा पाने के लिए, जिसके लिये वे कानूनी रूप से पाने के हकदार होते हैं, सरकारी और अर्ध-सरकारी कार्यालयों में जाते है किन्तु उनका ऐसा कार्य बिना सुविधा शुल्क लिए नहीं किया जाता। इस प्रकार के भृष्टाचार का विस्तार बहुत अधिक है। यह भृष्टाचार सिस्टम में बुरी तरह समाया हुआ है। कुछ मामलों में जनता को यह भी ज्ञात नहीं रह गया है कि यह भृष्टाचार है, जनता यह समझती है कि यह शुल्क है और कानूनन देय है। भृष्टाचार के नाम पर भी जनता से कुछ अवांछनीय तत्वों द्वारा बसूली की जाती है। 
मेरा विचार है कि भृष्टाचार रोकने की कार्यवाही में पहला कदम भृष्टाचार को जानने का ही हो सकता है। उसके उपरान्त विभिन्न प्रकार के भृष्टाचार को कैसे रोका जा सकता है, इस पर अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिए। विभिन्न प्रकार के भृष्टाचार के पीछे कारणों का भी अध्ययन किया जाना चाहिए। भृष्टाचार समुद्र की लहरें गिनने पर भी पनप सकता है। एक स्त्रोत बंद करने पर नया स्त्रोत भी खुल सकता है। इस कार्य के लिए दो स्थायी सेल अलग-अलग बनाये जाने चाहिए। यह सेल समस्या का लगातार अध्ययन करते रहे और फीडबैक देते रहें। एक महत्वपूर्ण कार्य जनता को इस सम्बन्ध में जागरूक करने और शिक्षित करने का भी किया जाना चाहिए। 
भृष्टाचार रोकने की दिशा में कार्यवाही पर मेरे द्वारा टिप्पणी किया जाना मुनासिब नहीं है। सच पूछिए तो इस कार्य के लिए मेरे पास डेटा भी नहीं है। इसका निर्णय मैं आप और जनता पर छोड़ता हूँ।


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