मित्रो !
हमारा
अंतःकरण (conscience) हमारे
नैतिक मूल्यों का पोषक होता है। जिस व्यक्ति का अपना ज़मीर (conscience) क्रियाशील नहीं
होता अथवा जो व्यक्ति अपना ज़मीर बेच देता है, उसके
अन्दर नैतिक मूल्य नहीं पलते। नैतिक और अनैतिक में भेद के बिना ऐसे व्यक्ति का आचरण
अनियंत्रित हो जाता है।
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