मित्रो !
दावा कोई कुछ भी करे पर सच्चाई यही है कि यहॉं हर इंसान केवल अपने लिए ही जी रहा है, जिसको दूसरों की मदद करने में सुख मिलता है वह दूसरों की मदद करके अपने लिए सुख जुटा रहा है, जिसको दूसरों को दुःख देकर ख़ुशी मिलती है वह ऐसा करके अपने लिए क्षणिक सुख कमा रहा है। सामाजिक रिश्तों के मामलों में भी यही लागू होता है।
दोनों प्रकार के इंसानों में से प्रथम प्रकार का इंसान, जो दूसरों की मदद करके अपने लिए सुख कमा रहा है, दूसरे प्रकार के इंसान, जो दूसरों को दुःख देकर अपने लिए क्षणिक सुख कमा रहा है, से बेहतर है क्योंकि वह जीवन में अच्छा कर्म का आनंद तो ले ही रहा है साथ ही अच्छे कर्म के अच्छे फल के रूप में मिलने वाला सुख या तो इसी जीवन में अथवा मरणोपरान्त भोगेगा, वहीं दूसरा इंसान जीवन में क्षणिक सुख का आनंद तो ले रहा है किन्तु बुरे कर्म के बुरे फल के रूप में मिलने वाला दुःख या तो इसी जीवन में अथवा मरणोपरान्त भोगेगा।
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