Proposed Export Treatment Under GST In India
मित्रो !
प्रस्तावित
माल और सेवा कर (Goods
and Services Tax) से सम्बंधित ड्राफ्ट मॉडल जीएसटी लॉ और आईजीएसटी
लॉ के संशोधित प्रारूपों, जैसे
कि Central
Board of Excise & Customs (CBEC), भारत सरकार द्वारा फरबरी 23, 2017 को
लांच की गए मोबाइल ऐप में उपलब्ध है, के अनुसार –
जीएसटी में एक्सपोर्ट के क्रम में माल की सप्लाई पर छूट जारी रखने का उद्देश्य
है। लेकिन पहले टैक्स जमा करना है फिर एक्सपोर्ट के निर्धारित साक्ष्य देकर जमा की
गयी धनराशि का रिफंड क्लेम करना है। अथवा माल व्यापार स्थल से हटाने से पूर्व
कर विभाग (tax department) में बांड (security bond) जमा कर अनुमति प्राप्त
की जाय बाद में जब माल एक्सपोर्ट हो जाय उसके बाद निर्धारित साक्ष्य देकर इनपुट टैक्स क्रेडिट की धनराशि का रिफंड
का क्लेम दाखिल किया जाय। विभाग जांच के बाद क्लेम सही पाए जाने पर तीन माह के अंदर रिफंड देगा। यह प्रक्रिया कारोबारियों
की कठिनाइयां बढ़ाने वाली और उनकी वर्किंग कैपिटल के एक बड़े भाग को अवरुद्ध करने वाली है। इससे जीएसटी की कम्प्लाइंस कॉस्ट बढ़ेगी और समय तथा श्रम का दुरुपयोग भी होगा। एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार ऐसी व्यवस्था
असंवैधानिक भी है।
ड्राफ्ट का प्रारूप तैयार करने वाले विद्वान अधिकारियों ने उपर्युक्त आशय के
प्राविधान Central Excise से लिए हैं किंतु ऐसा
करते समय वे यह भूल गए है कि - The taxable event under the Central Excise law is
‘manufacture’ and the liability of Central Excise Duty arises as soon as the
goods are manufactured. Before clearance of goods from area of manufacture,
excise invoice is to be prepared and amount of excise duty is to be
self-assessed by the manufacturer even if goods are to be shifted for storage
at some other place.
दूसरे Central Excise के प्राविधानों के अन्तर्गत निर्माण स्थल से माल हटाने की तिथि से छह माह के अंदर या आगे बढ़ाये गए समय में एक्सपोर्ट किया जा सकता है।
In
the GST, taxable event is "supply of goods and / or services". Where
goods are being supplied in the course of export, taxable event will be
"supply of goods in the course of export". Here taxable event will
not arise before goods come in the stream of export. Since the event is to be
kept exempt from levy of GST, supplier will not be required to pay tax. As soon
as the goods are cleared for export, the documents required for claiming
exemption are available with the supplier.
In
the aforesaid circumstances, there is no need of the provision like in the
Central Excise for depositing tax or for submitting security bond in respect of
supply taking place in the course of export.
यह विचारणीय है कि यदि किसी संव्यवहार पर कर देय नहीं है तब यह व्यवस्था नहीं की जा सकती कि taxpayer से पहले कर जमा कराया जाय और बाद में उसे ऐसी धनराशि बापस कर दी जाय। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने मेसर्स भवानी कॉटन मिल्स लिमिटेड वनाम पंजाब राज्य एवं अन्य, निर्णय दिनांक 10-04-1967 मामले में ऐसी व्यवस्था को अवैध (invalid) ठहराया (held invalid) है।
"If a person is not liable
for payment of tax at all, at any time, the collection of a tax from him with a
possible contingency of refund at a later stage will not make the original levy
valid."
प्रस्तावित
व्यवस्था से इंस्पेक्टर
राज को बढ़ावा
मिलेगा और कारोबारियों
के व्यापार
में लगी वर्किंग
कैपिटल प्रतिकूल रूप में
प्रभावित होगी।
एक्सपोर्ट के क्रम में माल की सप्लाई पर कर
लगाने (tax levy) के उद्देश्य से सप्लाई को अंतर्राज्यीय सप्लाई माने जाने का प्राविधान
किया गया है। यह संविधान के अनुरूप नहीं है। अप्रमाणित एक्सपोर्ट सप्लाई राज्य के अंदर
की सप्लाई या अंतर-राज्यीय सप्लाई में से कोई भी सप्लाई हो सकती है।
एक
बात और
भी विचारणीय यह है
कि संविधान में
राज्यों को
"supply of goods and / or services which takes place in the course
of export out of the territory of India"
पर कर लगाने
की संविधान के
आर्टिकल 286 में
मनाही है लेकिन
जो सप्लाई "in
the course of export" न होकर अन्यथा
एक्सपोर्ट है पर
कर लगाने का
अधिकार राज्यों को भी
प्राप्त है। उदाहरण के लिए अमेरिका में रहने वाला अनिवासी
भारतीय (NRI) अपने साथ भारत से एक गिटार खरीद कर अमेरिका ले जाता है। इस उदहारण में
भी गिटार का एक्सपोर्ट हो जाता है। किन्तु इस उदहारण में गिटार की सप्लाई
"supply of goods in the course of export of goods out of the territory of
India" नहीं है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय बिक्री कर अधिनियम, 1957
में धाराएं 3 व 5 लागू होने तक की अवधि के मामलों में अनेक बार यह निर्णय दिया है कि
संविधान के अनुच्छेद 269 व 286 में प्रयुक्त शब्दों "in the course of" विशिष्ट
अर्थ रखते हैं।
मेरा विचार और सुझाव भी है कि यदि मॉडल ड्राफ्ट में प्रस्तावित व्यवस्था में यथोचित परिवर्तन नहीं किया गया है तब सम्बंधित पक्षों को अपना पक्ष सरकारों के सामने रखना चाहिए। मेरा यह भी मानना है कि जीएसटी काउन्सिल की संस्तुतियां पार्लियामेंट या राज्यों की अस्सेम्बलीज़ के लिए बाध्यकारी प्रभाव नहीं रखतीं हैं।