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ईमानदारी, विनम्रता, सज्जनता, सादगी, दया और मधुर वाणी जैसे आभूषण जिसके पास हैं और जो इनकी महत्ता को जानता है उसके पास अतुलनीय अक्षय पूँजी होती है। इस कारण ऐसे व्यक्ति के लिए अन्य किसी आभूषण, हीरे-जवाहरात, रुपये- पैसे का कोई मोल नहीं होता।
महत्वपूर्ण यह है कि अक्षय पूँजी अर्जित करने के लिए किसी आर्थिक पूँजी निवेश की आवश्यकता नहीं होती। अक्षय पूँजी का चलन यूनिवर्सल है, यह भौगोलिक सीमाओं से मुक्त है। इसकी मान्यता लोक में होने के साथ-साथ परलोक में भी है। ऐसा शायद इसलिए है कि इसे ईश्वर की भी मान्यता प्राप्त है।
आभूषण, हीरे-जवाहरात, रुपये-पैसे रुपी पूँजी खर्च करने के साथ घटती जाती है, ऐसी पूँजी में ह्रास चिंता का विषय बनता है और पूँजी समाप्त होने पर व्यक्ति कंगाल हो जाता है। किन्तु ईमानदारी, विनम्रता, सज्जनता, सादगी, दया और मधुर वाणी रुपी पूँजी ज्यों-ज्यों खर्च की जाती है त्यों-त्यों बढ़ती जाती है, व्यक्ति लगातार ख़ुशी का अनुभव करता है और वह उत्तरोत्तर माला-माल होता जाता है।