Peace, Co-existence, Universal Approach Towards Religion, Life, GOD, Prayer, Truth, Practical Life, etc.
Saturday, December 31, 2016
एक चिंतन / विश्लेषण : नव वर्ष पूर्व संध्या
नव वर्ष पूर्व
संध्या पर क्या खोयें, क्या पायें
मित्रो !
समय सदैव गतिमान रहता है और हमें ऐसा अवसर कभी नहीं देता कि हम अपने जीवन के बीते हुए समय में की गयी भूलों का, उन पलों जिनमें ऐसी भूलें की गयीं थी में जाकर, सुधार कर सकें। जीवन के किसी गुजरे पल में की गयी किसी त्रुटि को कभी भी गुजरे हुए पल में जाकर ठीक किया जाना संभव नहीं है, केवल भविष्य में उसकी पुनरावृत्ति का रोका जाना ही संभव है। यह तभी संभव हो सकता है जब हम अपने द्वारा कृत कार्यों और व्यवहृत आचरण का समय-समय पर अनुश्रवण करते रहे और अपने क्रिया-कलापों के उचित या अनुचित होने का विश्लेषण करते रहे।
वैसे तो मेंरा विचार है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने द्वारा प्रतिदिन किये गए आचरण और कार्यों की समीक्षा के लिए 5 मिनट का समय आरक्षित कर देना चाहिए। इस समय में उसे दिन भर के क्रिया-कलापों की समीक्षा करके गलत और सही का निर्धारण करते रहना चाहिए। यह समय रात्रि में सोने से पहले का 5 मिनट का समय हो सकता है। किन्तु किन्हीं कारणों से यदि हम ऐसा नहीं करते तब हमें यह कार्य प्रकृति द्वारा निर्धारित एक वर्ष के प्रत्येक अंतराल की समाप्ति पर अवश्य कर लेना चाहिए। इस दिन हमें गुजरे वर्ष में किये गए कार्यों और व्यवहृत किये गए आचरण की समीक्षा कर पता लगाना चाहिए कि जीवन में हम सही रास्ते पर जा रहे हैं अथवा नहीं? हमें जीवन में सही रास्ते पर बने रहने के लिए क्या अपनाना है और क्या छोड़ना है? जीवन के ऐसे कौन से ऐसे पहलू हैं जो अपेक्षित होते हुए भी उपेक्षित रहे हैं। यदि जीवन में तनाव है तब किन कारणों से। यदि जीवन में खुशी का अभाव है तब इसके पीछे क्या कारण रहे हैं ... ।
आज जबकि वर्ष 2016समाप्त होने जा रहा है, मेरा आपसे अनुरोध है कि आप New Year's Eve पर इस सम्बन्ध में विचार करने के साथ-साथ निम्नलिखित विन्दुओं पर भी विचार अवश्य करें :
1. क्या आपके अपने बड़ों के प्रति आपके क्रिया-कलाप ऐसे रहे हैं
जो उनका आशीर्वाद पाने के लिए उचित एवं पर्याप्त कहे जा सकें?
2. क्या आप उनको, जो आप से प्यार और सरंक्षण की अपेक्षा करते हैं, को उचित सरंक्षण और प्यार दे पाने
में सफल रहे हैं?
3. क्या आप अपने परिवारीय सदस्यों की आवश्यकताएं पूरी करने, उन्हें प्यार, सरंक्षण और खुशी देने में सफल रहे
हैं?
4. क्या आपने उनके, जो आप पर निर्भर हैं, भविष्य को सुरक्षित करने के कोई प्रयास किये हैं?
5. क्या आप अपने कर्तव्यों और दायित्वों के प्रति ईमानदार और
निष्ठावान रहे हैं?
6. आप क्रोध और ईर्ष्या पर किस सीमा तक नियंत्रण पाने में सफल
रहे हैं?
7. समाज में आपकी छवि कैसी रही है?
8. क्या आपके निर्णय निष्पक्ष रहे हैं?
9. क्या आपके कृत्य आपको यथोचित सम्मान और प्यार दिलाने के लिए
पर्याप्त रहे हैं?
10. क्या आपने किसी अवसर पर किसी असहाय या जरूरत मंद की सहायता की
है?
11. वे कौन से क्रिया-कलाप हैं जो आपको नहीं करना चाहिये था?
12. क्या आपने कोई ऐसे कृत्य भी किये हैं जो सृजनात्मक नहीं थे?
13. आप अपने अबांछित विचारों पर नियंत्रण रख पाने में कहाँ तक सफल
रहे हैं?
14. क्या आप अपनी गलतियों पर शर्मिंदा हुये हैं?
15. क्या आप दूसरों की ऐसी गलतियों के लिए जिनके लिए आप उन्हें
क्षमा कर सकते थे किन्तु फिर भी आप उनको क्षमा करने में विफल रहे हैं?
16. क्या आपने समय का सदुपयोग किया है?
17. क्या आप अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहे हैं? आपकी जीवन शैली स्वास्थ्य पर प्रतिकूल
प्रभाव तो नहीं डाल रही है?
18. क्या आपके बच्चे आपके सरंक्षण में उचित मार्ग पर प्रसस्त हो
रहे हैं?
19. ऐसे कौन से अनुपयोगी क्रिया-कलाप रहे हैं जिनसे आप छुटकारा
पाना चाहेंगे?
20. ऐसे कौन से नए क्रिया-कलाप हो सकते हैं जो आपके लिए उपयोगी हो
सकते हैं?
मेरा विश्वास है कि मेरे मित्र इस दिशा में अपना योगदान देकर मुझे कृतार्थ करेंगे।
सुस्वागतम 2017 : WELCOME 2017
नव वर्ष 2017 के आगमन पर मैं सभी जनों, मित्रों और शुभचिंतकों का यथायोग्य अभिवादन और अभिनन्दन करता हूँ। मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि वह सभी को नव वर्ष में अच्छे स्वास्थ्य,सुख एवं समृद्धि का आशीर्वाद दे तथा आप सभी आत्म-विश्वास, आत्म-सम्मान, सकारात्मक सोच और आशावादी दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ कर वांछित सफलतायें प्राप्त करें।
आइये 2016 को अलविदा कहें
मित्रो !
आइये 2016 को अलविदा कहें
आइये 2016 को अलविदा कहें
वर्ष 2016 की विदाई बेला पर मैं सभी स्वजनों और अन्य सभी जनों के प्रति यथायोग्य सम्मान व्यक्त करते हुए उनका अभिवादन करता हूँ, उनसे मुझे अब तक जो प्यार, स्नेह या सम्मान मिला उसके लिए मैं उनके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ तथा मुझसे उनके प्रति अब तक जाने - अनजाने में हुयी गुस्ताखियों और त्रुटियों के लिए मैं उनसे क्षमा माँगता हूँ।
Thursday, December 29, 2016
अहंकार तो आप में भी है
मित्रो !
प्रत्येक जीवित व्यक्ति के पंच-तत्वों से बने शरीर में पांच कर्मेन्द्रियों और पांच ज्ञानेन्द्रियों के अतिरिक्त मन, बुद्धि और अहंकार भी होते हैं। अहंकार के प्रभाव में ही जीवात्मा शरीर को अपना मानता है तथा शरीर द्वारा किये कर्मों का अपने को कर्त्ता और कृत कर्मों के फलों का अपने को भोक्ता मानता है। शरीर में इसी अहंकार से ग्रसित जीवात्मा ही व्यक्ति का "मैं" (I) होता है।
Wednesday, December 28, 2016
क्रोधित व्यक्ति अंधा कैसे? How a Person in Anger Becomes Blind
मित्रो !
हमारे सामने रखी किसी वस्तु पर जब तक हमारा ध्यान (mind) केंद्रित नहीं होता तब तक वस्तु का प्रतिबिम्ब हमारी आँखों में बनने के बाबजूद भी हम वस्तु को नहीं देख पाते। क्रोध में ग्रसित व्यक्ति की बुद्धि क्रोध के कारणों पर केंद्रित होती है। ऐसी स्थिति में होने पर व्यक्ति न तो अन्य वस्तु देखता है और न ही अन्य विषय पर सोचता है। उसका ध्यान अपने हित और अहित पर भी नहीं जाता। इसी कारण कहते हैं कि क्रोध में व्यक्ति अँधा हो जाता है और उसकी आँखों पर पट्टी पडी होती है।
क्रोधित व्यक्ति को क्रोध से छुटकारा दिलाने के लिए उपाय भी यही होता है कि जिस वस्तु या कारण को लेकर कोई व्यक्ति क्रोधित है उससे उस व्यक्ति का ध्यान हटाकर किसी अन्य विषय या वस्तु पर केंद्रित कर दिया जाय।
Saturday, December 24, 2016
धर्म धारण करने से : ईश्वर पूजा करवाने को अवतार नहीं लेता
मित्रो !
श्रीमद भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण द्वारा ईश्वर
के समय-समय पर अवतरित होने के कारण अधर्म का विनाश और धर्म की स्थापना करना बताये गए हैं। गीता और
रामायण धार्मिक ग्रन्थ हैं, उनमें क्या करने योग्य है और क्या करने योग्य नहीं है का वर्णन
है। उनका संरक्षण और प्रचार-प्रसार आवश्यक है। उनका संरक्षण और उचित सम्मान हमारा कर्तव्य
हैं। किन्तु धर्म का अर्थ धारण करने से होता
है। महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि धार्मिक ग्रंथों की उपयोगिता केवल उनकी पूजा करने में
है अथवा उनमें कही गयी बातों पर आचरण करने में है।
मेरा विचार है कि धर्म ग्रन्थ केवल संरक्षण और पूजा के लिए ही नहीं हैं,
हमें उनमें कही गयी
बातों / दिए गए सिद्धांतो को अपने व्यावहारिक जीवन में अपनाना चाहिए। हमें यह नहीं
भूलना चाहिए कि शाश्वत मूल्य सदैव अपरिवर्तित रहते हैं। अन्य मामलों में धर्म ग्रंथों में कही गयी बातों
को आधुनिक जीवन की परिस्थितियों के परिपेक्ष्य में देखना और समझना चाहिए।
यह मेरी समझ से पर है कि ईश्वर के द्वारा बताये गए सिद्धांतों के विपरीत आचरण करके
कोई ईश्वर को कैसे प्रसन्न कर सकता है। क्या
ऐसा करना ईश्वर से बगावत करना नहीं होगा?
यह सब हमें यह सोचने पर विवश करता है कि -
जो व्यक्ति ईश्वर
द्वारा स्वयं अवतरित होकर प्रस्तुत किये गए आदर्शों, जिनका वर्णन धर्म ग्रंथों में है,
पर न चलकर उनके विपरीत
आचरण करता हो उसका ईश्वर और धर्म को मानने और ईश्वर की पूजा करने का दावा सही नहीं
ठहराया जा सकता। ईश्वर के अवतरण का उद्देश्य
मनुष्य से अपनी पूजा करवाने का नहीं होता।
Tuesday, December 20, 2016
वे स्वर्ग को भी नर्क बना लेंगे
मित्रो !
शायद लोग यह भूल गए हैं कि जिनको दया और प्रेम से घृणा है, जिनको हिंसा, अमानवीय व्यवहार, मार-काट, लूट-खसोट और निरीह लोंगों पर जुल्म ढाना प्रिय है, अगर उनको स्वर्ग मिल भी जाय तब वे स्वर्ग को भी नर्क बना लेंगे।
दुःख इस बात का है कि स्वर्ग की चाहत रखने वाले ऐसे लोंगों की कमी नहीं है। सोचने की बात है कि ऐसे लोंगों को ईश्वर स्वर्ग क्यों देगा।
Friday, December 16, 2016
Tuesday, December 13, 2016
Monday, December 12, 2016
गुमराह होता आदमी
मित्रो !
मनुष्य अपने को ईश्वर के रंग में रंगने के बजाय ईश्वर को ही अपने अनेक रंगों में रंगने में व्यस्त है। ऐसा करके वह अपनी सीमित सोच से असीमित की रचना का असफल प्रयास कर रहा है।
रचना से रचयिता सभी मायनो में बड़ा होता है। ईश्वर इस जगत में समस्त जड़ और चेतन, जिनमें मनुष्य भी शामिल है, का रचयिता है। इसलिए जगत के समस्त जड़ और चेतन से ईश्वर बड़ा है। अतः किसी भी जड़ या चेतन में ईश्वर की रचना कर पाने की योग्यता और क्षमता नहीं है।
Friday, December 9, 2016
Tuesday, December 6, 2016
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