Monday, July 30, 2018

इच्छाएं : DESIRES


मित्रो !
      सभी मनुष्यों के मन में इच्छाओं का उत्पन्न होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। यह व्यक्ति-विशेष को निर्णय लेना होता है कि वह किस इच्छा पर कार्यवाही करे और किस इच्छा का त्याग कर दे। मनुष्य को चाहिए कि वह उन इच्छाओं का दमन कर दे जिनके परिणाम विध्वंशकारी या किसी के लिए दुखदायी हो सकते हैं।

                In the minds of all human beings, process of coming into existence of desires is a normal process. It is for the individual to decide that on which desire he should act upon and which desire should be abandoned by him. A man should suppress those desires, consequences of which may either be destructive or may hurt to someone.



Sunday, July 29, 2018

Why a Healthy and Developed Brain Takes Wrong Decision


स्वस्थ और विकसित मस्तिष्क गलत निर्णय क्यों लेता है?
मित्रो / Friends!
      In the human body, mind (mind) is the birth place of desires. Desires continuously take birth inside the mind. The decision of acting upon a desire and of ignoring a desire is taken by the intellect of a man. Some desires, especially lust, is so strong that if a person's soul does not wake up or does not provide guidance to the intellect, then the person's intellect takes a wrong decision.
      Vasanaa, or lust, not only appears in form of strong sexual desire but it also manifests itself in form of strong urge for money or other worldly things, cravings for prestige, post or power, etc. When the lust succeeds in influencing the brain, the brain, in absence of any guidance from the soul, takes wrong decisions.
      मानव शरीर में मन (mind) इच्छाओं का जन्म स्थल होता है। इसमें लगातार इच्छाएं जन्म लेतीं रहतीं हैं। किस इच्छा पर क्या कार्यवाही की जानी है और किन इच्छाओं पर कार्यवाही नहीं करनी है इसका निर्णय मनुष्य की बुद्धि (intellect, brain) लेती है। कुछ इच्छाएं इतनी प्रबल होतीं हैं कि यदि मनुष्य की आत्मा जागृत न हो और बुद्धि का मार्गदर्शन न करे तब मनुष्य की बुद्धि मन से प्रभावित हुयी गलत निर्णय भी ले लेती है।
      वासना न केवल मजबूत यौन इच्छा के रूप में प्रकट होती है बल्कि यह धन या अन्य सांसारिक चीजों, प्रतिष्ठा, पद या शक्ति आदि के लिए दृढ़ आग्रह के रूप में भी प्रकट होती है। जब वासना बुद्धि को प्रभावित करने में सफल होती है, बुद्धि, आत्मा से किसी भी मार्गदर्शन की अनुपस्थिति में, गलत निर्णय लेती है।




Saturday, July 28, 2018

Be Compassionate, Save Nature


Friends! 
        Because of increased needs and expectations of continuously increasing population, dwindling tolerance and increased distances among human beings, there is continuous decay in natural resources and due to this situation is becoming alarming. In such a situation, the nature can be given relief to a large extent, only by promoting and cultivating eternal ascetic values.
      बढ़ती जनसंख्या की बढ़ती हुयी आवश्यकताओं और आकांक्षाओं तथा मनुष्यों के बीच बढ़ती दूरियों और घटती सहनशीलता से प्राकृतिक संसाधनों में निरंतर आ रही कमी के कारण स्थिति भयावह होती जा रही है। ऐसे में केवल शाश्वत सात्विक मूल्यों को अपना कर और बढ़ावा देकर ही प्रकृति को एक बड़ी सीमा तक राहत दी जा सकती है।



Thursday, July 26, 2018

तेरा ईश्वर मेरा ईश्वर YOUR GOD AND MY GOD


मित्रो!
     ईश्वर आस्था का विषय है। हर व्यक्ति का अपना ईश्वर होता है। समस्या उस समय उत्पन्न होती है जब कोई व्यक्ति अपने ईश्वर को दूसरों पर थोपने का प्रयास करता है। इसका कारण ईश्वर के प्रति हमारी अज्ञानता है।
YOUR GOD AND MY GOD
          God is the matter of faith. Every person has his own God. Problem arises when a person tries to impose his own God on others. The reason for this is our ignorance towards God.



Wednesday, July 25, 2018

मनुष्य के लिए मानव सेवा सर्वोपरि : FOR MEN HUMAN SERVICE IS SUPREME


मित्रो!
      हम भारत के निवासी और भारत के बाहर रहने वाले अधिकांश अनिवासी भारतीय  स्वामी विवेका नन्द जी और उनके विचारों का बहुत सम्मान करते हैं। स्वामी जी मानव सेवा को भक्ति (devotion) और मुक्ति (Salvation) से भी उच्च स्थान देते थे। विदेशों में भी जो लोग स्वामी के बारे में ज्ञान रखते हैं वह भी स्वामी जी का नाम आदर से लेते हैं। स्वामी जी द्वारा कहे गए कुछ शब्द मैं यहां नीचे उद्धृत कर रहा हूँ:

"Who cares for your bhakti and mukti? Who cares what your scriptures say? I will go into a thousand hells cheerfully if I can rouse my countrymen, immersed in tamas, to stand on their own feet and be men inspired with the spirit of karma-yoga. I am a follower only of he or she who serves and helps others without caring for his own bhakti and mukti."
Meanings:
      आपकी भक्ति और मुक्ति की परवाह कौन करता है? आपके शास्त्र क्या कहते हैं? की परवाह कौन  करता है।  मैं हज़ारों नरकों में प्रसन्नतापूर्वक जाऊंगा यदि मैं अँधेरे में डूबे हुए अपने देशवासियों को उनके अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए जाग्रत कर सका और उन्हें कर्म-योग की भावना से प्रेरित कर सका। मैं केवल उस स्त्री या पुरुष का अनुयायी हूँ जो अपनी भक्ति और मुक्ति की परवाह किए बिना दूसरों की सेवा और सहायता  करता है!
      यहां पर स्वामी विवेका नन्द जी भारत में रहने वाले किसी धर्म-विशेष के लोगों की बात नहीं करते, वे सभी भारत वासियों की बात करते हैं, किसी धर्म विशेष का उल्लेख किये बिना वे अपने को हर उस स्त्री या पुरुष का अनुयायी मानते हैं जो दूसरों की सेवा या सहायता करता है।

                Here Swami Viveka Nand ji does not talk about the people who reside in India and who follow any particular religion, he talks about all Indians, without mentioning any particular religion. Irrespective of any religion, caste or sex, he admits himself to be follower of every man or woman who serves and helps others.



Tuesday, July 24, 2018

राष्ट्रीय एकता : NATIONAL UNITY


मित्रो!
      जहाँ कुछ लोग जश्न मना रहे हों और कुछ अन्य लोग अपनी भूख मिटाने के लिए संघर्ष कर रहे हों तब सब मिल कर 'हम सब एक हैं' नारा कैसे बुलंद कर सकते हैं? आर्थिक एकता के बिना राष्ट्रीय एकता की सोच एक कल्पना मात्र है।
      अगर हम चाहते हैं कि सभी देशवासी एक साथ राष्ट्रीय एकता का नारा बुलंद करें तब हमें, धर्मों और जातियों के आधार पर भेद-भाव किये बिना, उनके लिए जो विकास की दौड़ में पिछड़ गए हैं, ऐसी नीतियां और योजनाएं बनाकर क्रियान्वित करनी होंगी जिनसे उनकी न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी हों और वे निडर होकर स्वछन्द वातावरण में सांस ले सकें।
      विभिन्न प्रकार के कार्यों को करने के आधार पर ऊँच-नीच का भेद-भाव  हमारी प्रगति और एकता में बाधक है।  हम जानते हैं कि कोई कर्म छोटा-बड़ा नहीं होता।  अतः कर्म के आधार पर मनुष्यों के बीच भेद-भाव किया जाना अनुचित है। जरूरत इस बात की है कि अगर कोई कार्य घृणित कार्य नहीं है तब न तो कार्य से घृणा की जाय और न ही कार्य करने वाले से।  आवश्यकता इस बात की है कि मानवीय स्तर पर तुच्छ कार्य करने वाले को वही सम्मान दिया जाय जो सम्मान बड़ा कार्य करने वाला पाता है।


छोटे दिल वाले की दौलत औरों के किस काम की


मित्रो!
      किसी शायर द्वारा कही गयी ये पंक्तियाँ मुझे बहुत अच्छी लगीं। आप भी पढ़ें और सोचें।
रकबा तुम्हारे गाँव का मीलों हुआ तो क्या,
रकबा तुम्हारे दिल का तो दो इंच भी नहीं।
तुम्हारे गाँव का खेत्रफल मीलों में फैले होने से कोई फर्क नहीं पड़ता अगर तुम्हारा दिल बहुत छोटा है।

Acreage of your village may be spread in miles,
It hardly matters if you have a very small heart.



Friday, July 20, 2018

गरीब की मदद : HELP OF THE POOR


मित्रो!
     गरीब को उधार देकर उसकी इज्जत, आबरू और जिंदगी का सौदा न करो।  अगर गरीब के लिए कुछ कर सकते हो तब दिल बड़ा रखो, गरीब की मदद करो और भूल जाओ।

     By lending money to the poor, do not deal with his prestige, honor and life. If you can do something for the poor, then have a brave heart, help the poor and forget.




आदमी बच्चा होता जा रहा है : MAN IS BECOMING A CHILD


मित्रो!
      मस्तिष्क के पूर्ण विकास के अभाव में बच्चे भले और बुरे में अंतर करने में असमर्थ होते हैं।  एक बच्चे के पास बहुत सारे खिलौने होने पर भी वह अन्य बच्चों के खिलौने छीन लेने को आतुर रहता है भले ही उससे अपने खिलौने न संभलते हों।  और यह कि बच्चा उन बच्चों के खिलौने छीन भी लेता है जो उससे कमजोर होते हैं। आज का आदमी भी बच्चा बना हुआ है, वह औरों का सब कुछ हथिया लेना चाहता है भले ही उससे अपनी सम्पदा न संभाली जा रही हो। यह सब मुझे विश्वास करने के लिए विवश करता है कि आज का मनुष्य बच्चा होता जा रहा है।
      In the absence of complete development of the brain, children are unable to differentiate between good and bad. Even if a child has lots of toys, he is eager to snatch toys from other children even and in doing so he does not bother about his own toys. And this, that the child also grabs toys of those children who are weaker than him. Today's man is also behaving like a child, he wants to grab everything else, even if he is not capable of handling his own properties. This compels me to believe that man, of today, is becoming a child.



Thursday, July 19, 2018

विडम्बना : पृथ्वी पर अत्याचार : THE IRONY : ATROCITIES ON EARTH


मित्रो !
कैसी विडम्बना है कि हम सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि और छाया ग्रहों राहु और केतु की  पूजा-अर्चना करते हैं और उनके रुष्ट होने से उनसे डरते भी हैं किन्तु पृथ्वी गृह जो हम सबका भार उठाये हुए है और  हमारे जीवन पर्यन्त हमारा पालन - पोषण करता है, उसकी पूजा कोई-कोई ही करता है।  अधिकांश लोग नित्य-प्रति उसे क्षति पहुंचा कर  घायल और अपमानित करते रहते हैं।

मैं जानता हूँ कि अगर तुम चाहो भी तो नहीं दे सकते, 
इस पावन पृथ्वी माँ को दवा उसके दुखते घावों की,
फिर भी अगर हिम्मत है, जज्बा है, तुममें कुछ करने का,
तो दया करो इस माँ पर, उसे कोई और नया घाव न दो।

I know that even you wish, you can't give medicine,
to this holy mother Earth, for her painful wounds.
Even then if emotions and courage are in you, to do something for her,
then be compassionate to the mother, do not give her any new wound.



Sunday, July 15, 2018

प्रजातान्त्रिक सरकारें और जनहित : Governments in Democratic Countries


मित्रो!
      प्रजातान्त्रिक देशों में प्रायः सरकारें बदलतीं रहतीं हैं किन्तु जनता के हित नहीं बदलते। सरकारें जनहित में फैसले लेकर कार्य करतीं हैं। जनहित यह अपेक्षा करता है कि सरकार बदलने की स्थिति में पूर्ववर्ती सरकार द्वारा छोड़े गए कार्यों को नयी सरकार पूरा करे जब तक कि नयी सरकार यह निर्णय नहीं लेती कि पूर्व सरकार द्वारा लिया गया निर्णय जनहित में नहीं था।
      सरकार जिस योजना को पूरा न किये जाने का निर्णय लेती है तब उसे निर्णय और उसके कारणों से जनता को भी अवगत करा देना चाहिए।
Governments in Democratic Countries
                In the democratic countries, Governments often change, but the interests of the public do not change. Governments take decisions in the public interest. The public interest expects that in the event of change of Government, the new Government will complete the work left incomplete by the previous Government. The Government do so unless the new Government takes the decision that decision taken by the former Government was not in the public interest.
               If the Government decides to not complete any plan, it should also communicate its decision and reasons thereof to the public.



Thursday, July 12, 2018

UTILITY OF LOGIC : तर्क की उपयोगिता


Friends!

        अनेक मामलों में हम असफल होते हैं क्योंकि नए कार्य शुरू करने से पहले हम उन पर तर्क पूर्ण ढंग से विचार नहीं करते। तर्क के आभाव में हमारी सही निर्णय लेने की क्षमता हमेशा एक अबोध बच्चे की निर्णय लेने की क्षमता के बराबर होती है जो सही और गलत के बीच अंतर नहीं कर सकता।   
                In many cases we fail because before starting new assignment, we do not apply logic. Without application of logic our capacity to take correct decision is always equal to decision taking capacity of an innocent child who cannot differentiate in between right and wrong.



Saturday, July 7, 2018

Questionable Definition of Aggregate Turnover in GST



मित्रो! 
      क्या CGST / SGST ACTS में दी गयी (expression) पद  "aggregate turnover"  की परिभाषा में कोई त्रुटियाँ / कमियां नजर आतीं हैं? पता नहीं मैं सही हूँ या नहीं, मुझे इस परिभाषा में अनेक कमियां / त्रुटियाँ नजर आतीं हैं। मेरा यह भी मत है कि इसको तुरंत संशोधित किया जाना चाहिए। मेरे द्वारा ऐसा सोचने के पीछे निम्न लिखित कारण हैं।
      पद "aggregate turnover"  केंद्रीय माल और सेवा कर अधिनियम (CGST Act) के अंग्रेजी पाठ्य और  हिंदी पाठ्य में अधिनियम की धारा 2 के क्लॉज (6) में निम्नप्रकार दिया गया है:
AS PER CGST ACT, CLAUSE (6) OF SECTION 2.
(6) “aggregate turnover” means the aggregate value of all taxable supplies (excluding the value of inward supplies on which tax is payable by a person on reverse charge basis), exempt supplies, exports of goods or services or both and inter-State supplies of persons having the same Permanent Account Number, to be computed on all India basis but excludes central tax, State tax, Union territory tax, integrated tax and cess;

AS PER CLAUSE (6) OF ACT IN HINDI TEXT
(6) "संकलित आवर्त" से सभी कराधेय प्रदायों (ऐसे आवक प्रदायों के मूल्‍य को अपवर्जित करके, जिस पर किसी व्‍यक्‍ति द्वारा विपरीत प्रभार के आधार पर कर का संदाय किया जाता है), छूट प्राप्‍त प्रदायों, माल या सेवाओं या दोनों के निर्यातों और अखिल भारतीय आधार पर संगणित सामान स्‍थायी खाता संख्‍यांक वाले व्‍यक्‍तियों के अंतरराज्‍यिक प्रदाय का संकलित मूल्‍य अभिप्रेत है, किंतु इसमें केंद्रीय कर, राज्‍य कर, संघ राज्‍यक्षेत्र कर, एकीकृत कर और उपकर अपवर्जित है;
अपने कथन के समर्थन में मैं आपका ध्यान निम्नलिखित तथ्यों की ओर आकर्षित करना चाहूंगा:
1. अधिनियम में पद "कराधेय प्रदाय" ("taxable supply) की परिभाषा CGST Act के सन्दर्भ में (in reference to CGST Act) दी गयी है। यह अधिनियम केवल राज्य के अंदर पूर्ती (intra-State supply) पर ही कर लगाने का प्राविधान करता है। अतः कराधेय प्रदायों में अंतर-राज्यीय प्रदाय (inter-State supplies) शामिल नहीं होंगे।
2. अधिनियम में पद "छूट प्राप्त प्रदाय" ("exempt supply") की परिभाषा CGST Act और  Integrated Goods and Services Tax Act (IGST Act)   दोनों के  सन्दर्भ में दी गयी है। अतः इस पद में राज्य के अंदर कर से पूर्णतः मुक्त प्रदायों के साथ-साथ अंतर-राज्यीय प्रदाय (inter-State supplies) जो IGST Act की धारा 6  में कर से पूर्णतः मुक्त हैं भी शामिल होंगे।
3. अधिनियम में पद "छूट प्राप्त प्रदाय" ("exempt supply") की परिभाषा में CGST Act और  Integrated Goods and Services Tax Act (IGST Act)   दोनों के अंतर्गत आने वाले "गैर-कराधेय प्रदाय" (non-taxable supply) अर्थात राज्य के अंदर गैर - कराधेय प्रदाय और अंतर-राज्यीय गैर- कराधेय प्रदाय शामिल हैं।
4. अंतर-राज्यीय प्रदायों को अलग से भी शामिल करने का उल्लेख किया गया है। किन्तु इसमें से अंतर-राज्यीय छूट प्राप्त प्रदाय जिसमें अंतर-राज्यीय गैर-कराधेय प्रदाय भी शामिल हैं को अंतर-राज्यीय प्रदायों से बाहर नहीं किया गया है।
5. हिंदी पाठ्य में केवल अंतर-राज्यीय प्रदायों को अखिल भारतीय स्तर लेने का उल्लेख है जबकि अंग्रेजी पाठ्य में सभी प्रदायों को अखिल भारतीय स्तर पर लिए जाने की बात कही गयी है।
6. ऐसे व्यवसायी भी हो सकते हैं जिनके पास किसी बजह से आयकर का स्थायी लेखा संख्या न हो किन्तु एग्रीगेट टर्नओवर उनका भी हो सकता है। अतः व्यवसायी को इंगित करने के लिए आयकर स्थायी लेखा संख्या से संदर्भित करना उचित नहीं है। aggregate turnover तो अपंजीकृत व्यक्ति का भी होता है।
7. हिंदी पाठ्य में दी गयी "छूट प्राप्त प्रदाय" की परिभाषा अंग्रेजी में दी गयी "exempt supply" से  भिन्न  है।  हिंदी भाषा में परिभाषा में अधिनियम के अंतर्गत जो प्रदाय "nil rate of tax" ("कर की शून्य दर) आकर्षित करते हैं शामिल नहीं हैं जबकि अंग्रेजी भाषा में दी गयी परिभाषा में शामिल हैं।
8. पद "exempt supply" (छूट प्राप्त प्रदाय) की अंग्रेजी और हिंदी पाठ्य में परिभाषाएं CGST Act की धारा 2 के क्लाज (47) में निम्नप्रकार दीं गयीं हैं:
(47) “exempt supply” means supply of any goods or services or both which attracts nil rate of tax or which may be wholly exempt from tax under section 11, or under section 6 of the Integrated Goods and Services Tax Act, and includes non-taxable supply;
(47) "छूट प्राप्‍त प्रदाय" से ऐसे किसी माल या सेवाओं या दोनों का प्रदाय अभिप्रेत है, जिसकी, एकीकृत माल और सेवा कर अधिनियम की धारा 6 के अधीन कर की दर शून्‍य हो या जिसे धारा 11 के अधीन कर से पूरी छूट दी जा सकेगी और इसके अंतर्गत गैर-कराधेय प्रदाय भी है;
      अंग्रेजी में प्रयुक्त वाक्यांश "which may be wholly exempt from tax under section 11, or under section 6 of the Integrated Goods and Services Tax Act" के स्थान पर हिंदी में वाक्यांश  "जिसकी, एकीकृत माल और सेवा कर अधिनियम की धारा 6 के अधीन कर की दर शून्य  हो या जिसे धारा 11 के अधीन कर से पूरी छूट दी जा सकेगी"  का प्रयोग किया गया है। विचारणीय है कि IGST Act की धारा 6 कर की दरों से सम्बंधित नहीं है अपितु कर से मुक्ति के सम्बन्ध में है।  IGST Act में कर की दर धारा 5 के अंतर्गत जारी विज्ञप्ति में ही निर्धारित की जा सकती हैं।
9. पद "taxable supplies" CGST Act के अंतर्गत आने वाली intra-State supplies से सम्बंधित है क्योंक "taxable supply" की परिभाषा में शब्द "under this Act" प्रयोग हुए हैं अतः पद "taxable supplies" में IGST Act के अंतर्गत आने वाली "inter-State supplies" शामिल  नहीं हैं किन्तु "inter-State supplies" से value of inward supplies on which tax is payable by a person on reverse charge basis बाहर नहीं की गयीं हैं।
10.  CGST Act में पद "inter-State supply" परिभाषित नहीं है।  IGST Act में कर "inter-State supply" पर कर लगाया गया है।  इस अधियम की धारा 7 प्रारम्भ होने से पूर्व ऊपर की पंक्ति में शब्द "inter-State supply" लिखे हुए हैं।  पार्लियामेंट के समक्ष प्रस्तुत विधेयक के क्लाज 7 के मार्जिनल नोट के रूप में यह शब्द प्रयोग हुए थे। धारा 7 के शीर्षक के रूप में भी यह शब्द अंकित नहीं हैं। यह उल्लेखनीय है कि इन शब्दों का प्रयोग धारा के पाठ्य में कहीं नहीं हुआ है।  अंदर जो पद परिभाषित माना जा सकता है वह "supply of goods or services or both in the course of inter-State trade or commerce" है। मेरे विचार से पद "inter-State supply" या "inter-State supply of goods or services or both" और "supply of goods or services or both in the course of inter-State trade or commerce" एक ही (one and the same) नहीं हैं किन्तु सरकार इन्हें एक मान रही है। अगर मैं मान भी लूँ कि यह दोनों एक हैं तब यह विचारणीय हो जाता है कि  इस धारा की उपधारा (5) के क्लाज (a) में जो सप्लाई संदर्भित है वह "export of goods or services or both" है। इसे भी "supply of goods or services or both in the course of inter-State trade or commerce" माने जाने का प्राविधान किया गया है।  ऐसी स्थिति में पद "aggregate turnover" में पद  "export of goods or services or both" और पद "inter-State supply" दोनों को शामिल किये जाने का कोई औचित्य नहीं रह जाता।
                अगर यह मान लेते हैं कि पद "aggregate turnover" की परिभाषा में संदर्भित "inter-State supply" का  अभिप्राय IGST Act की धारा 7 में परिभाषित "supply of goods or services or both in the course of inter-State trade or commerce" से नहीं है तब IGST Act की धारा 7 की उपधारा (5) के क्लॉज (b) के अंतर्गत संदर्भित विशेष आर्थिक क्षेत्र के सम्बन्ध में किये  जाने वाले प्रदाय  (supplies), जहां सप्लायर या प्राप्तकर्त्ता और विशेष आर्थिक क्षेत्र एक ही राज्य में स्थित होंगे, पद "aggregate turnover"  और कुछ अन्य प्रदाय भी परिभाषा में शामिल नहीं रह जाएंगे।
                मेरे विचार से परिभाषा में "aggregate turnover" means aggregate of values of all types of supplies of all goods or services or both made by the same person from any place in India जैसी approach होनी चाहिए थी।

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Monday, July 2, 2018

व्यवहारिक बात - 2 : PATRIOTISM


मित्रो!
      हम अपने व्यवहार में परिवर्तन लाकर अपनी मातृ भूमि की सेवा भले न कर पाएं किन्तु उसके कष्टों को कम अवश्य कर सकते हैं। यह भी राष्ट्र प्रेम है।
      हमें जन्म देने वाली माँ जन्म देते ही पृथ्वी माँ की गोद में दाल देती है। पृथ्वी माँ हमारे जीवन भर हमारा लालन-पालन करती है, हमारी आवश्यकताओं को पूरा करती है। किन्तु  हमारे बीच अनेक लोग ऐसे हैं जो पृथ्वी माँ द्वारा हमारे उपभोग के लिए दी गयी वस्तुओं को आवश्यकता से अधिक प्राप्त कर उनका कुछ भाग बर्बाद  कर देते हैं। पृथ्वी माँ उसकी सतह पर विद्यमान हर चेतन का भार उठाती है और उसके जीवित रहने के लिए उनके उपभोग की वस्तुएं उपलब्ध कराती है। इस कार्य में उसके संसाधनों का क्षय होता है जिसमें से कुछ  की भरपाई वह स्वयं कर लेती है किन्तु कुछ की उसके द्वारा भरपाई किया जाना संभव नहीं होता है। जिनकी भरपाई की जा सकती है उनके उगने में भी समय लगता है।
    दूसरी ओर बढ़ती जनसंख्या का अतिरिक्त बोझ भी पृथ्वी पर लगातार बढ़ता जा रहा है। इस कारण हमारी आवश्यकताएं बढ़तीं जा रहीं हैं।  
    हम सुख-सुविधाओं की चाहत में नयी वस्तुओं का अविष्कार करने में लगे हैं।  इसके साथ ही हम कुछ ऐसी वस्तुओं का निर्माण भी कर रहे हैं जो हमारे लिए ही विनाशकारी हैं। प्रक्रिया में पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है, पृथ्वी की उर्वरता समाप्त हो रही है। 
जरूरत इस बात की है कि हम पृथ्वी पर बढ़ते बोझ को घटाएं। इसके लिए जरूरी है कि हम ▬
1. हम अपनी आवश्यकताओं को सीमित रखें।
2. वस्तुओं का आवश्यक्तानुसार  ही उपभोग करें। .
3. दुरुपयोग और बर्बादी रोकें।
4. प्रकृति से ताल-मेल बना कर जीना सीखें।
5. जनसंख्या की बृद्धि को सीमित करें।
6. आवास अपनी आवश्यकता को देखते हुए बनाएं। पृथ्वी को कंक्रीट के जंगल बनाने से यथासंभव बचें।
7. प्राकृतिक संशाधनों को संरक्षित करें।
8. माँ वसुंधरा को उसकी खोई हुयी हरियाली को लौटाएं।
9. सहनशीलता और सौहार्द बढ़ाएं।
10. गुमराह होने से बचें।
     किसी भी धर्म के लोग क्यों न हों, सन्तानें अधिक पैदा करने के नारे बंद होने चाहिए। धर्म की आड़ में अधिक बच्चे पैदा करने की बात मिथ्या है।  मैंने ऐसे किसी परिवार को नहीं देखा जिसके द्वारा अपना परिवार दो बच्चों तक सीमित रखने पर उसका धर्म और समाज से बहिष्कार कर दिया गया हो। मेरा मानना है कि धर्म गुरुओं के साथ सरकार को बैठक करके हल निकाला जाना चाहिए। अधिक जनसँख्या होने पर उनकी आवश्यकताएं पूरी नहीं की जा सकतीं।  जनसंख्या बढ़ने से बेरोजगारी और अपराध बढ़ते हैं।
     हमें अपने में सुधार करने के लिए इसकी प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए कि दूसरे लोग करें तब हम भी करेंगे। सभी क्षेत्रों में किन्हीं कारणों से हम सुधार करने के लिए भले ही सक्षम न हों किन्तु यदि हम सुधार करने का संकल्प लेते हैं तब हमें सुधार के अनेक अवसर हमारे घर में ही मिल जाएंगे।