Friday, March 27, 2015

सत्य के लिये प्रमाण आवश्यक नहीं


प्रिय मित्रो!
ऐसा विश्वास या धारणा, जिससे हमें अपने चरित्र निर्माण में सहायता मिलती हो, समाज को एक सही दिशा मिलती हो और किसी का अहित न होता हो, को, उसके स्त्रोत और सत्यता पर तर्क या परीक्षण किये बिना, सत्य मान कर अपना लेना चाहिये। जो सबके लिए हितकारी है वह असत्य कैसे हो सकता है?
अधिकाँश लोगों का विश्वास है कि ईश्वर है। वह समस्त श्रष्टि को नियंत्रित करता है और उसने हमारे लिए प्रकृति का सृजन किया है। वह दयालु है और हम सभी से सभी प्राणियों पर दयाकरने की अपेक्षा करता है। वह महान्यायधीश है, हमसे सभी के प्रति न्याय करने की अपेक्षा करता है। वह दीन -दुखियों और जरूरतमंदों की सहायता करता है और हमसे दीन - दुखियों और जरूरतमंदों की सहायता करने की अपेक्षा करता है। ऐसा सब कुछ हमारे लिए और समाज के लिए हितकारी है, किसी का अहित नहीं होता है। अतः इस पर तर्क किये बिना यह मान लेना चाहिए कि ईश्वर है एक सत्य है।
लोगों का विश्वास है कि मनुष्य द्वारा किये गए सभी भले - बुरे कर्मों का फल उसे भोगना पड़ता है। इसे मान्यता देने से हम बुरे कर्मों के करने से बचते हैं। हम जानते हैं कि प्रत्येक क्रिया का क्रिया के अनुरूप परिणाम होता है। अतः हम सोच सकते हैं कि बुरे कर्म का परिणाम भी बुरा होगा। बुरा परिणाम हमारे और समाज के लिए अहितकर होगा। ऐसे विश्वास से हमारा चरित्र विकास होता है, हम बुरे कर्म के दंड से बचते हैं। समाज अपराधों से बचता है और सभ्य समाज का निर्माण होता है। यह सब हमारे और समाज के लिए हितकारी है। अतः इस धारणा कि मनुष्य द्वारा किये गए सभी भले - बुरे कर्मों का फल उसे भोगना पड़ता है, पर बिना कोई तर्क किये इसे हमें सत्य मान लेना चाहिए।

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