मित्रो !
हमें अपने व्यावहारिक जीवन में कभी - कभी अन्य
व्यक्तियों को अप्रिय सन्देश देने होते हैं अथवा कोई ऐसी बात बतानी होती है जो
सुनने वाले के हितों के विरुद्ध होने से उसे अच्छी न लगे, वह ऐसी बात बताने का वह बुरा मान बैठे और
हमारे और उसके बीच संबंधों में खटास आ जाय। कुछ सन्देश या बातें ऐसी हो सकतीं हैं
जिनके सुनने पर श्रोता को आघात पहुंचे। ऐसी स्थिति में हमें तथ्य को बताने में
आवश्यक सावधानी बरतनी चाहिए ताकि श्रोता के स्वास्थ्य या हमारे और श्रोता के बीच
मधुर संबंधों पर यदि संभव हो
तब कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े अथवा कम से कम प्रतिकूल प्रभाव पड़े।
कुछ लोग किसी अपने परिचित, हितैषी या सम्बन्धी से ऐसी बात, जिसके सुनने पर ऐसा परिचित, हितैषी या सम्बन्धी उत्तेजित हो सकता है
अथवा बुरा मान सकता है, कहने से
पूर्व शब्दों "बुरा न माने तो एक बात कहूँ" का प्रयोग करते हैं। थोड़ा
रूककर यह भी कह देते है "अच्छा छोड़िये, रहने
दीजिये" . इसकी प्रतिक्रिया श्रोता पर यह होती है कि वह कड़ुई बात सुनने के
लिए मानसिक रूप से तैयार हो जाता है और स्वयं बात बताये जाने का अनुरोध करने लगता
है। ऐसी स्थिति में वक्ता और श्रोता के मध्य मधुर संबंधों पर या तो कोई प्रभाव
नहीं पड़ता अथवा अस्थायी रूप से नगण्य प्रभाव पड़ता है।
इसी प्रकार किसी के प्रियजन की मृत्यु का सीधे समाचार दिए जाने से बचा जाता है। अप्रत्यक्ष रूप से इस प्रकार वार्ता की जाती है कि सुनने वाला समझ जाय कि उसके प्रियजन की मृत्यु हो गयी है। इस सम्बन्ध में मुझे बचपन में पढ़ी एक कहानी याद आ रही है। एक राजा ने अपने बूढ़े हाथी की देखभाल के लिए चार सेवक रख दिए और उनसे कहा कि उनमें से प्रत्येक दिन एक व्यक्ति उसे (राजा को) हाथी के स्वास्थ्य के बारे में बताएगा किन्तु हाथी के मरने की बात नहीं कहेगा। जो सेवक हाथी के मरने की बात कहेगा उसे मृत्यु दंड मिलेगा। सेवकों में से बारी-बारी से एक सेवक प्रतिदिन राजा के पास जाता और राजा को हाथी के स्वास्थ्य के बारे में बताता। कुछ दिन बाद हाथी मर गया। उस दिन जिस सेवक को हाथी के स्वास्थ्य के बारे में राजा को बताना था वह और अन्य दो सेवक मृत्यु दंड के भय से राजा के पास जाने को तैयार नहीं हुए। चौथा व्यक्ति राजा के पास जाने को तैयार हो गया। वह राजा के पास गया। यथोचित अभिवादन के बाद बोला "महाराज ! आज तो हाथी का विचित्र हाल है, वह न तो उठता है न ही बैठता है, न ही सांस लेता है, न कुछ खाता है न ही पानी पीता है.." इतना सुनकर राजा बोल पड़ा की क्या हाथी मर गया। इस पर सेवक बोला "महाराज ! यह मैं नहीं कहता, ऐसा आप कह रहे हैं" यह सुनकर राजा उस सेवक पर प्रसन्न हुआ और उसे पुरष्कृत किये जाने का आदेश दिया।
इसी प्रकार किसी के प्रियजन की मृत्यु का सीधे समाचार दिए जाने से बचा जाता है। अप्रत्यक्ष रूप से इस प्रकार वार्ता की जाती है कि सुनने वाला समझ जाय कि उसके प्रियजन की मृत्यु हो गयी है। इस सम्बन्ध में मुझे बचपन में पढ़ी एक कहानी याद आ रही है। एक राजा ने अपने बूढ़े हाथी की देखभाल के लिए चार सेवक रख दिए और उनसे कहा कि उनमें से प्रत्येक दिन एक व्यक्ति उसे (राजा को) हाथी के स्वास्थ्य के बारे में बताएगा किन्तु हाथी के मरने की बात नहीं कहेगा। जो सेवक हाथी के मरने की बात कहेगा उसे मृत्यु दंड मिलेगा। सेवकों में से बारी-बारी से एक सेवक प्रतिदिन राजा के पास जाता और राजा को हाथी के स्वास्थ्य के बारे में बताता। कुछ दिन बाद हाथी मर गया। उस दिन जिस सेवक को हाथी के स्वास्थ्य के बारे में राजा को बताना था वह और अन्य दो सेवक मृत्यु दंड के भय से राजा के पास जाने को तैयार नहीं हुए। चौथा व्यक्ति राजा के पास जाने को तैयार हो गया। वह राजा के पास गया। यथोचित अभिवादन के बाद बोला "महाराज ! आज तो हाथी का विचित्र हाल है, वह न तो उठता है न ही बैठता है, न ही सांस लेता है, न कुछ खाता है न ही पानी पीता है.." इतना सुनकर राजा बोल पड़ा की क्या हाथी मर गया। इस पर सेवक बोला "महाराज ! यह मैं नहीं कहता, ऐसा आप कह रहे हैं" यह सुनकर राजा उस सेवक पर प्रसन्न हुआ और उसे पुरष्कृत किये जाने का आदेश दिया।
यद्यपि उक्त कहानी "वाक-पटुता" से सम्बंधित है किन्तु
यह परोक्ष रूप में मृत्यु का सन्देश देने का ऐसा तरीका बताती है जिससे सुनाने वाला
क्रोधित या दुखी नहीं हुआ।
विभिन्न परिस्थितियों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के संवादों का
प्रयोग किया जा सकता है। संवादों का उद्देश्य श्रोता को अप्रिय सुनाने के लिए
मानसिक रूप से तैयार करने का होना चाहिए।
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