Friday, March 27, 2015

आस्था का पत्थर : IDOL WORSHIP



मित्रो !
एक कथा के अनुसार महाभारत काल में द्रोणाचार्य कौरवों और पाण्डवों के धनुर्विद्या के गुरु थे। महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार एकलव्य नाम का एक युवक धनुर्विद्या सीखने के उद्देश्य से द्रोणाचार्य के आश्रम में आया किन्तु निषादपुत्र होने के कारण द्रोणाचार्य ने उसे अपना शिष्य बनाना स्वीकार नहीं किया। निराश हो कर एकलव्य वन में चला गया। उसने द्रोणाचार्य की एक मिटटी की मूर्ति बनाई और उस मूर्ति को गुरु मान कर धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगा। एकाग्रचित्त से साधना करते हुये अल्पकाल में ही वह धनु्र्विद्या में अत्यन्त निपुण हो गया। एक दिन पाण्डव तथा कौरव राजकुमार गुरु द्रोण के साथ आखेट के लिये उसी वन में गये जहाँ पर एकलव्य आश्रम बना कर धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहा था। राजकुमारों का कुत्ता भी था। संयोगवश कुत्ता भटक कर एकलव्य के आश्रम में जा पहुँचा। एकलव्य को देख कर वह भौंकने लगा। कुत्ते के भौंकने से एकलव्य की साधना में बाधा पड़ रही थी अतः उसने अपने बाणों से कुत्ते का मुँह बंद कर दिया। एकलव्य ने इस कौशल से बाण चलाये थे कि कुत्ते को किसी प्रकार की चोट नहीं लगी। कुत्ते के लौटने पर कौरव, पांडव तथा स्वयं द्रोणाचार्य यह धनुर्विद्या का यह कौशल देखकर आश्चर्य चकित रह गए और बाण चलाने वाले की खोज करते हुए एकलव्य के पास पहुँचे। उन्हें यह जानकर और भी आश्चर्य हुआ कि द्रोणाचार्य को मानस गुरु मानकर एकलव्य ने स्वयं ही अभ्यास से यह विद्या प्राप्त की है। एकलव्य ने द्रोणाचार्य को प्रणाम किया और आशीर्वाद माँगा। इस पर द्रोणाचार्य ने एकलव्य से उसका हाथ का अंगूठा गुरु दक्षिणा के रूप में मांग लिया। एकलव्य ने बिना कोई देर किये अपना अंगूठा काट कर द्रोणाचार्य को भेंट कर दिया।
इस कथा पर यदि हम ध्यान दें तो हम पाते हैं कि यह एकलव्य की आस्था ही थी कि वह मिटटी के पुतले में अपने गुरु द्रोणाचार्य को देखता था और उनकी देख-रेख में धनुर्विद्या का अभ्यास करता था। प्रश्न यह उठता है कि जब आस्था होने पर मिटटी की मूर्ति में गुरु की अनुभूति की जा सकती है तब आस्था होने पर ईश्वर, जो सर्वत्र विध्यमान है की पत्थर की मूर्ति में अनुभूति क्यों नहीं की जा सकती।
मेरा विचार है की ईश्वर एक आस्था है जिसे सजीव या निर्जीव किसी भी वस्तु में व्यक्त किया जा सकता है। आस्था का कोई आकार या स्वरुप नहीं होता। यह शून्य में भी व्यक्त की जा सकती है . निर्जीव या सजीव जिसमें आस्था व्यक्त की जा सकती है किसी भी रूप या आकार में हो सकता है। बिना आस्था के पत्थर पत्थर है और जिस पत्थर में आस्था है वह पत्थर ईश्वर का रूप है।

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