Friday, March 27, 2015

बिना कुछ खोये बहुत कुछ मिले तो क्यों न लें?



प्रिय मित्रो !
हम लोगों में से बहुत से लोग ऐसे होंगे जो पानी, बिजली, गैस तथा अन्य अनेक चीजों का प्रयोग करते समय उनके दुरुपयोग पर ध्यान नहीं देते अथवा उनके उपयोग में मितव्यता नहीं वर्तते। भोजन पकाते समय आवश्यकता से अधिक भोजन पका लेते हैं, भोजन लेते समय अपनी थाली में आवश्यकता से अधिक रख लेते हैं और बाद में थाली में छोड़ देते हैं जो कूड़े के साथ फेंक दिया जाता है। बिजली पानी के स्त्रोत खुले छोड़ देते हैं। हम अपने उपयोग के लिए प्रकृति से अनेक चीजें लेते हैं किन्तु उनकी भरपाई पर ध्यान नहीं देते।
कुछ लोग जो बिजली, पानी के स्त्रोत खुले छोड़ देते हैं से अगर उन्हें सचेत किया जाय तब वे कहते हैं क्या फर्क पड़ता है वह ईमानदारी से बिल का भुगतान करते हैं। आप सोंचें तो बहुत फर्क पड़ता है, हमारे किसानों को या गाँव में रहने वाले बहिन - भाइयों को विजली इसलिए नहीं मिल पाती की बिजली की कमी है। इस स्थिति से शहर भी अछूते नहीं हैं। घरेलू उपयोग की बिजली की कटौती होती है। हमारे उद्योगों को बिजली नहीं मिल पाती, उत्पादन प्रतिकूल रूप में प्रभावित होता है। अन्य ईन्धन महंगा होने से उत्पाद का मूल्य बढ़ाने से महंगाई बढ़ती है। पानी की स्थिति अच्छी नहीं है, वाटर लेबल गिरता जा रहा है।
अगर हम मितव्यता बरतें और दुरुपयोग रोकें तब केवल हमारे खर्चे में ही कमी नहीं आएगी, संसाधनों की बचत हो सकेगी जिसका उपयोग हम आगे कर सकेंगे। इसका एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू भी है। इस काम को हम तभी कर सकेंगे जब हम संजीदा होंगे, किसी भी वस्तु का प्रयोग करते समय हमें हर बार सोचना पड़ेगा कि हमें दुरुपयोग रोकना है और मितव्यता बरतनी है। इससे आपकी सोच में बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा। इसका परिणाम यह होगा कि हम अन्य क्षेत्रों में भी अनुशासित और संजीदा होकर कार्य करेंगे। इससे हमारी सोच और चरित्र भी बदलेगा।
मेरा यही मानना है कि यदि बिना कुछ खोये बहुत कुछ मिल रहा हो तब बहुत कुछ लेने में विलम्ब नहीं करना चाहिए।

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