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श्रीमद भगवद गीता के अध्याय (chapter) 2 के श्लोक 47 में भगवन श्री कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि मनुष्य कौन सा कर्म (work / act / action) करे और कौन सा कर्म न करे इसका निर्णय लेना उसके अधिकार क्षेत्र में है किन्तु कर्म के फल के चयन करने (selection of good result or bad result, success or failure) का अधिकार उसे प्राप्त नहीं है। ऐसा इसलिए कहा गया है ताकि अनुचित कर्म करने वाला या उचित प्रकार से कर्म न करने वाला अच्छा फल (अच्छा परिणाम) का चयन (selection) न कर सके। श्लोक की पहली पंक्ति का आशय यही है। पूरा श्लोक निम्नप्रकार है -
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥४७॥
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