मित्रो !
जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा किये गए किसी कार्य का स्वयं को कर्त्ता (doer / performer) मानकर कार्य करने का श्रेय (Credit) स्वयं ले लेता है तब कार्य के फलस्वरूप मिलने वाले दंड (punishment) या पारितोषक (reward) को लेने से इन्कार (refuse) नहीं कर सकता। जीवात्मा से क्रियाशील हुए (activated) मनुष्य का शरीर कर्म तो स्वयं करता है किन्तु जीवात्मा मिथ्या (false / untrue) रूप में ऐसे कर्म का कर्त्ता स्वयं को मान लेता (admits / accepts) है और इस कारण उसे कर्म के फलों का उपभोक्ता बनना पड़ता है। इस प्रकार जीवात्मा कर्मों का कर्त्ता और कर्म - फलों (results of actions ) का भोक्ता (user) बन जाता है।
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