मित्रो !
हमारा शरीर आँख, कान, नाक, त्वचा और जिव्हा पाँच ज्ञानेन्द्रियों द्वारा बाहर से इनपुट्स लेता है और पाँच कर्मेन्द्रियों हाथ, पैर, वाणी, जननेन्द्रिय और गुदा द्वारा बाह्य कार्य करता है। ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा हम रूप, ध्वनि, गन्ध, स्पर्श और स्वाद इनपुट्स के रूप में लेते हैं। इन सभी इन्द्रियों के ऊपर मन (Mind) शरीर के अंदर ग्यारहवीं इन्द्रिय मानी गयी है। इसे अन्तः इन्द्रिय भी कह सकते हैं। हमारा मन विभिन्न प्रकार के विचारों, जिनमें हमारी इच्छाएं भी शामिल हैं, की उत्पत्ति का स्त्रोत है। इसमें विभिन्न प्रकार के विचार उत्पन्न होते रहते हैं। यह विचार मन द्वारा बुद्धि (Brain) को प्रेषित किये जाते हैं। बुद्धि मन से प्राप्त विचारों पर कार्यवाही करने का निर्णय लेता है। इस स्तर पर बुद्धि किसी विचार को अस्वीकार भी कर सकती है। जिस विचार पर कार्यवाही का निर्णय बुद्धि द्वारा लिया जाता है वह कार्यवाही या तो शरीर के अंदर होनी होती है या फिर शरीर के बाहर। शरीर के अंदर होने वाली कार्यवाही के लिए बुद्धि अन्दर के सम्बंधित अंगों को सन्देश / निर्देश भेजता है, शरीर के बाहर कार्यवाही के लिए सम्बंधित कर्मेन्द्रियों को सन्देश / निर्देश भेजता है। जिन विचारों पर कार्यवाही नहीं किये जाने का निर्णय बुद्धि लेती है वे नष्ट हो जाते हैं। विचारों में हमारी इच्छायें भी शामिल होतीं है।
मेरा विचार है कि यदि हम बुद्धि का समय से समुचित उपयोग करें तब हम अपने को अवांछित कार्य करने, लोभ-लालच, क्रोध, हिंसा, अहंकार, आदि से रोक सकते हैं। हमें अपने ज्ञान के भंडार को बढ़ाना चाहिए और इस पर विचार करना चाहिए कि किस प्रकार के विचारों पर कार्यवाही करना उचित है और किस प्रकार के विचारों पर कार्यवाही करना अनुचित है। मेरा मानना है कि हमारी बुद्धि में इस ज्ञान के भण्डार से बुद्धि को उचित निर्णय लेने में आवश्यक सहायता मिलेगी।
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