- मित्रो !
God has blessed all of us with valuable gift of love. We should understand love and thereafter -Live in love and inspire others to live with love.प्यार को जियें और औरों को प्यार से जीने के लिए प्रेरित करें। - Promote and propagate love.
Peace, Co-existence, Universal Approach Towards Religion, Life, GOD, Prayer, Truth, Practical Life, etc.
Monday, October 31, 2016
प्यार का अनमोल उपहार : Valuable Gift of Love
Thursday, October 27, 2016
इच्छाशक्ति का जागरण और अभिप्रेरण : Awakening and Motivation of Willpower
मित्रो !
(1) शारीरिक आत्म-नियंत्रण;
(2) मानसिक आत्म-नियंत्रण; और
(3) संसारिक आत्म-नियंत्रण।
मनोविज्ञान के अनुसार इच्छाशक्ति या संकल्प (Will या Volition) वह संज्ञानात्मक प्रक्रम है जिसके द्वारा व्यक्ति किसी कार्य को किसी विधि का अनुसरण करते हुए करने का प्रण करता है। संकल्प मानव की एक प्राथमिक मानसिक क्रिया है। इस आधार पर यह मान सकते हैं कि स्वस्थ मष्तिष्क में इच्छाशक्ति का जन्म होता है। स्वस्थ मष्तिष्क तो जन्म जात हो सकता है किन्तु मष्तिष्क में इच्छाशक्ति जन्म-जात नहीं है। जहाँ तक इच्छाशक्ति को अभिप्रेरित और जाग्रत किये जाने के सन्दर्भ में है मेरा मानना है कि प्रारम्भ में इस संकाय को अभिप्रेरित करने की आवश्यकता होती है किन्तु कुछ अभ्यास के उपरान्त यह क्रिया उपयुक्त वातावरण में स्वचलित हो जाती है।
इच्छाशक्ति का जागरण और अभिप्रेरण आत्म-नियंत्रण और एकाग्रता से ही किया जा सकता है। आत्म-नियंत्रण हमें तीन दिशाओं में करना होता है: (1) शारीरिक आत्म-नियंत्रण;
(2) मानसिक आत्म-नियंत्रण; और
(3) संसारिक आत्म-नियंत्रण।
शारीरिक आत्म-नियंत्रण के अंतर्गत हमें अपने को पूर्णतया स्वस्थ रखना होता है। आपने यह कहावत अवश्य ही सुनी होगी "A sound mind in a sound body". शारीरिक आत्म-नियंत्रण में अपेक्षित होता है कि आप संतुलित आहार लें, हल्का और सुपाच्य भोजन करें। अधिक कड़ुआ, तीखा, चटपटा और अपाच्य भोजन न करें। न अधिक सोएं और न अधिक जागें, उचित व्यवधान रहित पर्याप्त नींद अवश्य लें। यदि प्राणायाम नहीं भी करते हैं तब प्रतिदिन कुछ एक्सरसाइज अवश्य करें। मानसिक आत्म-नियंत्रण में काम, क्रोध, लोभ, मद, अहंकार आदि से दूर रहकर सतत विनम्र बने। अहंकार और झूठ से बचें। इन व्यसनों से बचने के लिए जब भी इनसे सम्बंधित इच्छाएं आपके मष्तिष्क में जन्म लें उनसे आप तुरंत मुंह मोड़ लें, उनकी पूरी तरह अनसुनी कर दें। संतोष धारण करें, क्षमा को अपनायें, कम बोलें, मधुर बोलें, वाणी पर नियंत्रण रखें। एकाग्रता (Concentration) का अभ्यास करें। सांसारिक आत्म-नियंत्रण में सांसारिक प्रलोभनों से बचें। दूसरों से वादा सोच-समझकर करें और वादा करने के बाद उसे समय से निभाएं। कभी किसी से छल - प्रपंच न करें। सभी से प्रिय बोलें।
मेरे विचार से इस प्रकार से आत्म-नियंत्रण रखे जाने पर इच्छाशक्ति अवश्य प्रबल होगी और हर क्षेत्र में सफलता हमारे हाथ लगेगी।
इच्छाशक्ति का जागरण और अभिप्रेरण : Awakening and Motivation of Willpower
इच्छाशक्ति का जागरण और अभिप्रेरण : Awakening and Motivation of Willpower
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Wednesday, October 26, 2016
विडम्बना : The Irony
मित्रो !
कैसी विडम्बना है कि हम उन उपकरणों, जो हमने अपनी अल्पकालिक सुविधा के लिए बनाये हैं, का रख-रखाव और रक्षा तो नियमित रूप से करते हैं किन्तु हम पृथ्वी और प्रकृति, जिन्होंने हमारा जन्म से पोषण किया है और जिनके कारण हम जीवित हैं, के रख-रखाव और रक्षा की हम कोई परवाह नहीं करते।
Earth, Nature, Maintenance, Birth,Irony,
Sunday, October 23, 2016
सकाम कर्म ही पुनर्जन्म का कारण : Cause of Rebirth : Deeds Performed with Desire of Fruits
मित्रो !
सकाम कर्म ऐसे कर्म होते हैं जो फल की इच्छा से किये जाते हैं। ऐसे कर्मों का कर्मों के अनुसार फल अवश्य मिलता है। कर्मों का फल मिलने का भी समय होता है, कुछ कर्मों का फल तुरंत मिलता जाता है, कुछ कर्मों का फल कर्म करने के कुछ समय बाद और कुछ कर्मों का फल काफी समय बाद, यहां तक कि मृत्यु के बाद मिलता है। जिन कर्मों का फल उसी जन्म में नहीं मिल पाता है उसका फल भोगने के लिए आत्मा नया शरीर धारण करता है। जो कर्म फल के लिए नहीं किये जाते हैं निष्काम कर्म कहलाते हैं। ऐसे कर्मों का फल जीवात्मा को नहीं भोगना पड़ता है। अतः ऐसे कर्म पुनर्जन्म का कारण नहीं बनते।
श्रीमद भगवद गीता में भगवन श्री कृष्ण द्वारा मानव शरीर को क्षेत्र (खेत) और इसके ज्ञाता को क्षेत्रज्ञ बताया गया है। कर्म करने और कर्म के फल का भोग / उपभोग करने के लिए शरीर और जीवात्मा का साथ होना आवश्यक है। पच-तत्व "क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा" से बना शरीर तब तक मिटटी है जब तक उसमें जीवात्मा का प्रवेश नहीं होता और जब जीवात्मा इस शरीर को छोड़ देता है तब जो कुछ बचता है वह यही पांच तत्व होते हैं। अतः फलों का भोग भी तभी किया जा सकता है जब जीवात्मा शरीर धारण किये हुए हो।
शरीर के बिना जीवात्मा कर्म और कर्म के फल का भोग नहीं कर सकता। किसी जन्म में किये गए ऐसे कर्मों, जिनके फलों का भोग उसी जन्म में संभव नहीं हो पाता, के फलों का भोग करने के लिए जीवात्मा नया शरीर धारण करता है।
deeds,God,Soul,Karma
Friday, October 21, 2016
गरीबी रेखा : Poverty Line
मित्रो !
गरीब वह व्यक्ति होता है जिसे अपनी आय को देखते हुए सामान्य जीवन जीने के लिए भी अपनी न्यूनतम बुनियादी आवश्यकताओं (minimum basic necessities) से समझौता करना पड़ता है। स्थानीय परिस्थितियों और बुनियादी आवश्यकताओं को देखते हुए अलग-अलग स्थानों और देशों में रह रहे व्यक्तियों के लिए ऐसी न्यूनतम आय भिन्न-भिन्न हो सकती है। एक गरीब व्यक्ति की बुनियादी आवश्यकताएं रोटी, कपड़ा और मकान तक सीमित हो सकतीं हैं किन्तु जिस देश में वह रह रहा है उस देश की सरकार अपने नागरिकों की बुनियादी आवश्यकताओं में एक न्यूनतम स्तर तक शिक्षा और चिकित्सा भी अनिवार्य रूप में शामिल कर सकती है। ऐसी स्थिति में अपेक्षित न्यूनतम आय सीमा भी अधिक हो जाती है। मंहगाई बढ़ने से भी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने की लागत बढ़ जाती है। किसी देश की सरकार, जो मंहगाई उन्मूलन का प्रोग्राम चलाती है उसे गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों को चिन्हित करने के लिए ऐसे सभी तथ्यों पर विचार करना चाहिए। मेरा मानना है कि -
किसी देश की सरकार अपने देश के नागरिकों के रहन-सहन के जिस न्यूनतम स्तर का पूरा होना आवश्यक मानती है, रहन-सहन के उस स्तर को प्राप्त करने और बनाये रखने के लिए आवश्यक आय से कम आय वाले नागरिकों को उस देश का गरीब नागरिक समझा जाना चाहिए।
Below Poverty Line : गरीबी रेखा के नीचे।
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Monday, October 17, 2016
उत्साह के बिना उत्सव कैसा : No festival without festivity
मित्रो !
उमंग, उछाह, विनोद, आमोद-प्रमोद, आदि, हमारे त्यौहारों में जान डाल देते हैं। इनके बिना कोई उत्सव या त्यौहार, त्यौहार होने का अहसास ही नहीं होता। त्यौहार के दिन यदि हमारे परिवार का कोई सदस्य अस्वस्थ हो या घर में कोई अन्य परेशानी हो तब त्यौहार फीका पड़ जाता है। उत्सव ही हमारे त्यौहारों को यादगार बनाते हैं।
उमंग, उछाह, विनोद, आमोद-प्रमोद, आदि, हमारे त्यौहारों में जान डाल देते हैं। इनके बिना कोई उत्सव या त्यौहार, त्यौहार होने का अहसास ही नहीं होता। त्यौहार के दिन यदि हमारे परिवार का कोई सदस्य अस्वस्थ हो या घर में कोई अन्य परेशानी हो तब त्यौहार फीका पड़ जाता है। उत्सव ही हमारे त्यौहारों को यादगार बनाते हैं।
संयुक्त
राष्ट्र द्वारा समय-समय पर अनेक अन्तर्राष्ट्रीय विश्व दिवस यथा मातृ दिवस, पितृ दिवस, मित्रता दिवस, भ्रातृ दिवस, नशा
मुक्ति दिवस,
योग दिवस, सामाजिक न्याय दिवस, आदि घोषित कर रखे हैं। इतनी अधिक
संख्या में दिवस घोषित किये जा चुके हैं कि इनका याद रख पाना भी आसान नहीं रह गया
है। यदि प्रत्येक दिवस को मनाया जाए तब अगर पूरे वर्ष नहीं तब वर्ष का एक बड़ा भाग
इसी में निकल जायेगा। और यदि न मनाया जाय तब अन्तर्राष्ट्रीय दिवस घोषित करने का
कोई औचित्य ही नहीं रह जाएगा। ऐसे में विषय विशेष के प्रति जन सामान्य के बीच कोई
जागरूकता (awareness)
लाना संभव नहीं
होगा।
मेरा विचार है कि अब तक जो विश्व दिवस घोषित
किये गए हैं उन्हें विभिन्न श्रेणियों में रखकर दिनों की संख्या को सीमित किया
जाना चाहिए। उदहारण स्वरुप स्वास्थ्य या बिमारियों से सम्बंधित दिवस हैं उनको एक
श्रेणी में स्वास्थ्य दिवस में रखा जाना चाहिए। ऐसा होने से दिवसों की संख्या
सीमित हो जाएगी और उन्हें उत्साह के साथ मनाया जा सकेगा। इस दिन विश्व स्वास्थ्य
संगठन की ओर से अथवा उनकी पहल पर सरकारों द्वारा उत्सवों, प्रदर्शनियों, शिविरों आदि का आयोजन किया जाना चाहिए।
मात्र विश्व दिवस कलेंडर में तिथि के आगे दिवस का नाम अंकित कर देने में सार्थकता
नहीं है। सनातन धर्म के अनुयायियों द्वारा अनेक मामलों में दिवसों को त्यौहारों के
रूप में मनाया जाता है और इस कारण उनका महत्व समाज में सहस्त्रों वर्ष गुजरने के
बाद भी बना हुआ है।
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उछाह,
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विनोद,
विश्व दिवस
Saturday, October 15, 2016
क्या आपने कभी सोचा है? : Have You Ever Thought?
मित्रो !
जब हम मन, बुद्धि
और शरीर से किसी क्रिया को बार-बार करते हैं तब कुछ समय बाद हम उस क्रिया को करने
के अभ्यस्त हो जाते हैं और उसके बाद उस क्रिया को करने के लिए हमें सोचना - विचारना
नहीं पड़ता। विचारणीय यह है कि हम अपने व्यक्तित्व विकास के लिए ऐसा क्यों
नहीं कर सकते ?
व्यक्तित्व के ऐसे कुछ क्षेत्र निम्नप्रकार हो सकते हैं
क्रोध पर नियंत्रण, सहनशीलता, मृदु भाषण, जरूरतमंदों
की सहायता, अहिंसा, दया भाव, आपसी सहयोग, क्षमा, सदभावना, आभार, सत्य भाषण, समयनिष्ठा, ईमानदारी, स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण, आदि।
(जिस क्रम में क्षेत्र / गुण अंकित किये गए हैं, वे महत्ता प्रदर्शित नहीं करते।)
When we do any act repeatedly applying our mind, intellect and body, we become accustomed of doing it and thereafter, we can perform such act without much thinking. The question is that why we do not apply this aspect for development of our personality?
Few such
aspects / fields of our personality may be as follows:
Control
over anger, Tolerance, Soft speech, Help to needy, Non-violence, Compassion,
Mutual co-operation, Forgiveness, Harmony, Gratitude, Truth, Punctuality, Honesty,
Cleanliness, Environment protection, etc.
Thursday, October 13, 2016
सर्वोच्च एकल ईश्वर : Supreme One God
मित्रो !
ईश्वर का विस्तार ऐसा है जिसका न कोई प्रारम्भ है और न ही जिसका कोई अंत है
अतः उसका वर्णन कर पाना मनुष्य की पहुँच से परे है। मेरा मानना है कि ईश्वर को
मानने वाले लोग मोटे तौर पर ईश्वर के बारे में मानते हैं कि ईश्वर –
1. इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड (cosmos) का रचयिता और नियंता है;
2. सर्वशक्तिमान, सर्वविद्यमान और सर्वज्ञानी है;
3. सर्वोच्च (Supreme) है, उसके समान या उससे बड़ा कोई दूसरा नहीं है।
यदि ऊपर उल्लिखित गुणों
वाले ईश्वर की कल्पना करें तब ईश्वर के ऊपर किसी अन्य ईश्वर या ईश्वर के समान्तर
किसी दूसरे ईश्वर अथवा ईश्वर के नीचे उसके समतुल्य किसी ईश्वर के होने की कल्पना
नहीं की जा सकती क्योंकि ऐसा होने पर ईश्वर सर्वोच्च नहीं रह जायेगा। ऐसी स्थिति
में महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि भिन्न-धर्मों में भिन्न-भिन्न ईश्वर अथवा एक
ही धर्म में अलग-अलग लोंगों के अलग-अलग ईश्वर क्यों हैं।
एक ऐसी विशालकाय पहाड़ी
की कल्पना करते हैं जो किसी भी मनुष्य द्वारा अगम्य है और जिस पर प्रत्येक स्थान
पर भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल खिले हुए हैं। इसके तलहटी में इसके चारों ओर मनुष्य
खड़े हैं जी पहाड़ी को देख रहे हैं। स्पष्ट है पहाड़ी की ओर देखने वाला कोई भी
व्यक्ति पहाड़ी का सीमित क्षेत्र ही देख पायेगा, भिन्न-भिन्न व्यक्ति पहाड़ी पर
अलग-अलग फूल होने की बात कहेंगे। अगर प्रत्येक व्यक्ति से कहा जाय कि वह पहाड़ी का
चित्र बनाये तब प्रत्येक व्यक्ति उसने जो कुछ देखा है वैसा ही चित्र बनाएगा।
किन्तु किसी भी व्यक्ति द्वारा बनाया गया चित्र पहाड़ी की प्रतिकृति (Replica) नहीं होगी क्योंकि पहाड़ी के बारे में उसका ज्ञान सीमित और अपूर्ण है। यही
स्थिति ईश्वर की प्रतिकृति (Replica) बनाने वालों की है, उनके द्वारा ईश्वर के बनाये गए चित्र या मूर्तियां ईश्वर की प्रतिकृतियां
नहीं है क्योंकि वे संपूर्ण ईश्वर का वर्णन नहीं करतीं। उनमें ईश्वर को देखने वाला
उतना ही ईश्वर देखता है जितना वह ईश्वर के बारे में ज्ञान रखता है।
ईश्वर सर्वत्र व्याप्त
होने के बाद भी अदृश्य है, उसका दर्शन केवल आस्थावान मनुष्यों द्वारा
ज्ञान चक्षुओं (eyes) द्वारा ही किया जा सकता है। सर्वत्र व्याप्त होने
के कारण उसे प्रतिकृति रखने या उसकी प्रतिकृति होने का कोई औचित्य या आवश्यकता
नहीं है, प्रतिकृतोयों की रचना या कल्पना मनुष्य की अपनी की हुयी है। इन
प्रतिकृतियों की रचना मनुष्य द्वारा ईश्वर में उसकी अपनी आस्था और ईश्वर के बारे
में उसके अपने ज्ञान के आधार पर हुयी है। विभिन्न मनुष्यों और समाजों में ईश्वर
में उनकी आस्था और ज्ञान में भिन्नता के कारण प्रतिकृतियों में असमानता और भिन्नता
आ गयी है।
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सर्वशक्तिमान,
सर्वोच्च
Friday, October 7, 2016
ईश्वर के प्रति अज्ञानता : IGNORANCE ABOUT GOD
मित्रो !
जब सम्पूर्ण जगत की रचना करने वाला ईश्वर एक है तब
ईश्वर क्या है, वह क्या चाहता है और क्या
करता है, को लेकर अलग-अलग लोंगों के
अलग-अलग विचार होने का कारण मनुष्य का ईश्वर के प्रति अज्ञानी या अल्प ज्ञानी होना
ही है।
When the creator of whole universe is one God then concept of separate God, by the different people, in the context of what God is, what He wants and what He does is due to our ignorance or incomplete knowledge about God.
Thursday, October 6, 2016
विचारों पर नियंत्रण Control Over Thoughts
मित्रो !
Controlling
Our Thoughts
Our mind
is birthplace of all kinds of good and bad or useful and useless thoughts. It
depends on our wisdom and decision to act upon a thought or to reject the
thought.
हमारा मन अच्छे-बुरे, उपयोगी - अनुपयोगी सभी प्रकार के विचारों की
जन्मस्थली है। यह हमारे निर्णय और विवेक पर निर्भर करता है कि किस विचार पर हम
कार्य करें और किस विचार को नकार दें। कुछ समय बाद मन हमारे द्वारा चयन किये जाने
वाले विचारों की प्रकृति को समझ जाता है और सामान्य परिस्थितियों में हमारी
आवश्यकतानुसार विचारो का सृजन करता है।
विचारों की प्रकृति पर हमारे अंदर की त्रैगुणी प्रकृति (सतो, रजो और तमो गुणों वाली प्रकृति) और बाह्य परिदृश्यों का भी प्रभाव पड़ता है। हमारे अंदर की तीन गुणों वाली प्रकृति हमारे रहन-सहन, खान-पान और आचार-विचार से प्रभावित होती है।
विचारों की प्रकृति पर हमारे अंदर की त्रैगुणी प्रकृति (सतो, रजो और तमो गुणों वाली प्रकृति) और बाह्य परिदृश्यों का भी प्रभाव पड़ता है। हमारे अंदर की तीन गुणों वाली प्रकृति हमारे रहन-सहन, खान-पान और आचार-विचार से प्रभावित होती है।
यदि हम चाहते हैं कि हमारे मन में बुरे और अनुपयोगी
विचारों के उत्पन्न होने पर अंकुश लगे तब हमें निम्नप्रकार आचरण करना चाहिए :-
1. उत्पन्न होने वाले विचारों की बुद्धि और विवेक का प्रयोग कर उनके अच्छे-बुरे या उपयोगी-अनुपयोगी होने की समीक्षा नियमित रूप से अभ्यास के रूप में की जानी चाहिए तथा बुरे या अनुपयोगी विचारों पर कार्यवाही से बचना चाहिए। ऐसा करने से कुछ समय बाद ऐसे विचारों के उत्पन्न होने में कमी आएगी।
2. कडुवे, तिक्त, अधिक मसालेदार, बासी और गरिष्ठ भोजन से बचना चाहिए। आवश्यकता से अधिक मात्रा में भोजन नहीं करना चाहिए। भोजन उचित मात्रा में समय से लेना चाहिए।
1. उत्पन्न होने वाले विचारों की बुद्धि और विवेक का प्रयोग कर उनके अच्छे-बुरे या उपयोगी-अनुपयोगी होने की समीक्षा नियमित रूप से अभ्यास के रूप में की जानी चाहिए तथा बुरे या अनुपयोगी विचारों पर कार्यवाही से बचना चाहिए। ऐसा करने से कुछ समय बाद ऐसे विचारों के उत्पन्न होने में कमी आएगी।
2. कडुवे, तिक्त, अधिक मसालेदार, बासी और गरिष्ठ भोजन से बचना चाहिए। आवश्यकता से अधिक मात्रा में भोजन नहीं करना चाहिए। भोजन उचित मात्रा में समय से लेना चाहिए।
3. सादा और स्वच्छ लिबास पहनना चाहिए। वस्त्र अधिक
टाइट नहीं होने चाहिए।
4. यथा संभव अधिक से अधिक अच्छी संगति में रहना चाहिए। कुसंगति से बचना चाहिए। अच्छे साहित्य का अध्ययन करना चाहिए।
5. कुत्सित विचारों को प्रेरित करने वाले दृश्यों, परिदृश्यों और साहित्य से बचना चाहिए।
6. आवाज मधुर न भी हो किन्तु बोल-चाल में विनम्र भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए, अभद्र भाषा या कड़क आवाज से बचना चाहिए जब तक कि पेशे में ऐसा करना अपेक्षित न हो।
4. यथा संभव अधिक से अधिक अच्छी संगति में रहना चाहिए। कुसंगति से बचना चाहिए। अच्छे साहित्य का अध्ययन करना चाहिए।
5. कुत्सित विचारों को प्रेरित करने वाले दृश्यों, परिदृश्यों और साहित्य से बचना चाहिए।
6. आवाज मधुर न भी हो किन्तु बोल-चाल में विनम्र भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए, अभद्र भाषा या कड़क आवाज से बचना चाहिए जब तक कि पेशे में ऐसा करना अपेक्षित न हो।
Sunday, October 2, 2016
Foresightedness : दूरदर्शिता
मित्रो !
व्यक्ति
को किसी रास्ते पर चलने से पूर्व यह अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए कि रास्ता कहाँ
जाता है, रास्ते पर क्या कठिनाइयां
आने वालीं हैं, उन पर विजय कैसे पाई जा
सकेगी और यात्रा का अंत क्या होगा। रास्ता दुरूह होने की स्थिति में क्या कोई अन्य
सुगम विकल्प हो सकता है।
किसी व्यक्ति को नया कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व निम्नलिखित पहलुओं पर विचार करने के उपरान्त कार्य करने का निर्णय लेना चाहिए:
किसी व्यक्ति को नया कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व निम्नलिखित पहलुओं पर विचार करने के उपरान्त कार्य करने का निर्णय लेना चाहिए:
लक्ष्य की उपयोगिता एवं आवश्यकता
उपकरणों और साधनों की उपलब्धता
लक्ष्य को प्राप्त करने के विभिन्न तरीके
लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आसान तरीका
लक्ष्य को प्राप्त करने में आने वाली कठिनाइयों
कठिनाइयों पर काबू पाने के लिए साधन और तरीके
Before a person starts a new work, he should consider
following aspects:
Necessity
and utility of achievement
Necessary
and available tools and means
Easiest
way to achieve the goal
Forthcoming
difficulties in achieving the goal
Ways and
means for overcoming difficulties
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उपलब्धता,
दूरदर्शिता,
साधन
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