मित्रो !
प्यार और नफ़रत दोनों ही हमारे अन्दर होते हैं। यह दोनों ही बाह्य कारणों से प्रेरित होते हैं। जैसे सुसुप्ता अवस्था में पड़ा बीज अनुकूल हवा और पानी पाकर अंकुरित होने लगता है उसी प्रकार प्यार और घृणा भी अपने-अपने अनुकूल वातावरण पाकर क्रियाशील हो उठते हैं।
मेरा विचार है कि प्यार और नफ़रत दोनों पर नियंत्रण पाने के लिए आत्म संयम का होना आवश्यक है। प्यार या नफ़रत के बीज बोने की आवश्यकता नहीं होती केवल उनके अनुकूल वातावरण बनाना होता है।
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