मित्रो
!
कर्म, कर्मफल और पुनर्जन्म के सिद्धान्तों के
अनुसार मनुष्य स्वयं अपने भाग्य की रचना करता है। फल प्राप्ति की इच्छा से किये गए
सभी अच्छे-बुरे कर्मों के फल मनुष्य को इसी जन्म में या अगले जन्मों में भोगने
पड़ते हैं। गीता के अनुसार कर्म के चयन का अधिकार मनुष्य को प्राप्त है।
मनुष्य के
भाग्य में उसके स्वयं के द्वारा फल प्राप्ति की इच्छा से पूर्व जन्मों में किये गए
कर्मों में से ऐसे कर्मों के फल होते हैं जिनके फल उसे पूर्व जन्मों में प्राप्त
नहीं हुए होते हैं। ऐसे कर्म संचित कर्म जाने जाते हैं। संचित कर्म मनुष्य के अपने
द्वारा किये गए कर्मों की पूँजी होती है, ऐसे
कर्म ही मनुष्य के भाग्य की रचना करते हैं।
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