मित्रो !
प्यार और प्यार की भाषा, दोनों ही ऐसे होते हैं जिनको अबोध बच्चे से लेकर मृत्यु शैय्या पर पड़ा व्यक्ति दोनों ही समझते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि कोई भी प्यार खोना नहीं चाहता। अपने प्रिय को प्रसन्न रखने के लिए लोग न जाने क्या-क्या कर गुजरते हैं। इन्हीं कारणों से प्यार के बल पर हम अपने बच्चों को संस्कारी बनाये रखने में भी सफल हो सकते हैं। यह पोस्ट मेरी इसी सोच पर आधारित है।
प्यार में बहुत बड़ी शक्ति होती है। इसका उपयोग हम बच्चों को संस्कारी बनाने में कर सकते हैं। हमें चाहिए कि हम अनुकरणीय आचरण करते हुए अपने बच्चों को इतना प्यार दें कि उनके अन्दर आत्मीयता जन्म ले और वे कुछ भी अनुचित करने से पहले माँ-बाप का प्यार खो देने का डर महसूस करें।
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